चातकों की मानसून (व्यंग्य)

Monsoon
ANI
संतोष उत्सुक । Jun 21 2025 12:40PM

खुद बिगाड़े वर्षा और जल प्रबंधन को बिसराकर नैनो तकनीक और दूर संवेदी उपग्रहों की मदद से मानसून के पारम्परिक अग्रदूत चातकों को ट्रैक किया जा रहा है। पक्षियों को परेशानी हो तो हो, वो तो धरती पर आए ही मानव सेवा के लिए।

बरसात का मौसम स्वार्थी इंसान को प्रबंधन सीखने को बार बार प्रेरित करता है लेकिन खुद को विकास के सीमेंट में नाक तक दबा चुके इंसान को पता नहीं चल रहा कि अब क्या करे। हर बरस शासन और प्रशासन के प्रबंध ध्वस्त होते रहे हैं। कई साल पहले से देश के मौसम विज्ञानी मानसून की उलझी गुत्थी सुलझाने के लिए पक्षियों को पटाने की कोशिश करते रहे हैं। निश्चित रूप से यह वैसा ही है खुद अपना स्वास्थ्य बिगाड़कर पारम्परिक इलाज की शरण में जाएं। भुलाए जा चुके चातक पक्षियों को फुसलाकर उनके शरीर पर अत्याधुनिक ट्रांसमीटर चिपका कर कोशिश कर रहे हैं ताकि चालाक इंसान को उनके प्रवास का पता चलता रहे। 

खुद बिगाड़े वर्षा और जल प्रबंधन को बिसराकर नैनो तकनीक और दूर संवेदी उपग्रहों की मदद से मानसून के पारम्परिक अग्रदूत चातकों को ट्रैक किया जा रहा है। पक्षियों को परेशानी हो तो हो, वो तो धरती पर आए ही मानव सेवा के लिए। चतुर व स्वार्थी इंसान द्वारा कुदरत को असीमित नुक्सान पहुंचाने के बावजूद भी चातक ने अपना आचरण व व्यवहार नहीं बदला। उनका मूल चरित्र ही ऐसा नहीं है। वे हर बरस दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में मानसून के साथ वे उत्तरी भारत में दस्तक देते हैं और मानसून खत्म होते होते वापिस हो लेते हैं। क्या राजनीतिक वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक चिंतक व मानसून वैज्ञानिक इस बात को समझते  हैं या समझना नहीं चाहते कि कुदरती जलवायु संतुलन क्या है और इसे कैसे बरकरार रखा जा सकता है, जलवायु परिवर्तन में विकास और वृक्षों की क्या भूमिका है।

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वक़्त ने करवट ली है इस बार तो मानसून ने भी पुरानी रिवायतें तोड़ दी हैं। प्रकृति के बच्चे चातक पक्षी समझा सकते हैं कि मानसून के साथ प्रकृति का क्या पारम्परिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध है। इस साल आशंकित बाढ़ का पानी, वफ़ादारी की मानसून को फिर ढूंढेगा। बरसों पहले एक सरकारी बजट में वफादारी के लिए जाने जाने वाले कुत्तों को खिलाए जाने वाले बिस्कुट सस्ते किए गए थे, लगता है फिर से वैसा करने की ज़रूरत है। उन बिस्कुटों को ज्यादा आकर्षक, स्वादिष्ट, सुरक्षित घोषित कर बिगड़े हुए इंसान को नियमित समय पर खिलाए जाने चाहिए ताकि कुदरत के प्रति वफादारी की संभावनाएं इंसानी शरीर में पुन पनप सके। होशियार आदमी पानी का उचित प्रबंधन करना ही नहीं चाहता। उसके सामने बाढ़ होती है और वह स्वार्थों की आड़ में छिपा रहता है। चातक इंसान को मानसून प्रबंधन में सहयोग करेगा तो निश्चित ही अगली इंसानी परियोजना यह होगी कि ऐसा कौन सा पक्षी है जो स्पष्ट उपाय बता सके कि बाढ़ को आने से कैसे रोका जा सकता है क्यूंकि इंसान द्वारा किए जा रहे सभी उपाय हमेशा बाढ़ में बहते रहे हैं। लगता है तकनीक और विज्ञान ज्यादा हो रहा है तभी पक्षियों से सीखने के दिन आ गए हैं।

- संतोष उत्सुक

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