महापंडित थे राहुल सांकृत्यायन, घुमक्कड़ शास्त्र की रचना की

Profile of Rahul Sankrityayan
[email protected] । Apr 13 2018 5:18PM

राहुल सांकृत्यायन ऐसे महापंडित थे जिन्होंने बिना विधिवत शिक्षा हासिल किए विविध विषयों पर करीब 150 ग्रंथों की रचना की और अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा यात्राओं में लगा दिया।

हिंदी साहित्य की विलक्षण प्रतिभाशाली हस्तियों में से एक राहुल सांकृत्यायन ऐसे महापंडित थे जिन्होंने बिना विधिवत शिक्षा हासिल किए विविध विषयों पर करीब 150 ग्रंथों की रचना की और अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा यात्राओं में लगा दिया। राहुल सांकृत्यायन ने पूरे भारत के अलावा तिब्बत, सोवियत संघ, यूरोप और श्रीलंका की यात्राएं कीं। बाद में उन्होंने अपने अनुभवों पर घुमक्कड़ शास्त्र की रचना की जो घुमक्कड़ों के लिए निर्देशपुस्तक से कम नहीं है। आजमगढ़ के एक गांव में अप्रैल 1893 में पैदा हुए राहुल सांकृत्यायन ने विधिवत शिक्षा हासिल नहीं की थी और घुमक्कड़ी जीवन ही उनके लिए महाविद्यालय और विश्वविद्यालय थे। अपनी विभिन्न यात्राओं के क्रम में वह तिब्बत भी गए थे। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष कुमार पंकज के अनुसार राहुल सांकृत्यायन ने दुर्लभ बौद्ध साहित्य को एकत्र करने की दिशा में काफी काम किया। वह तिब्बत से बौद्ध धर्म की हस्तलिखित पोथियां खच्चरों पर लाद कर लाए थे और बाद में उनका यहां प्रकाशन भी करवाया था।

राहुल सांकृत्यायन की रचनाओं का दायरा विशाल है। उन्होंने अपनी आत्मकथा के अलावा कई उपन्यास, कहानी संग्रह, जीवनी, यात्रा वृतांत लिखे हैं। इसके साथ ही उन्होंने धर्म एवं दर्शन पर कई किताबें लिखीं। उनकी बहुचर्चित कृतियों में से एक 'वोल्गा से गंगा' के बारे में कुमार पंकज का कहना है कि जिस शैली में यह पुस्तक लिखी गई है हिंदी में कम ही पुस्तकें उस शैली में हैं। प्रागैतिहासिक काल यानी पांच हजार से भी अधिक पुरानी सभ्यता से आधुनिक काल तक मानव की प्रगति का जिक्र करते हुए इस कृति की जो शैली है वह काफी रोचक एवं सरस है।

कुमार पंकज के अनुसार इस शैली में 'सबेरा संघर्ष गर्जन' और 'महायात्रा' जैसी कम ही पुस्तकें हैं। हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार भगवान सिंह के अनुसार राहुल सांकृत्यायन को इतिहास की विशेष समझ थी हालांकि उन्होंने विधिवत शिक्षा हासिल नहीं की थी। इतिहास की समझ विकसित होने में उनके देशभ्रमण की अहम भूमिका थी। भगवान सिंह के अनुसार कई भाषाओं के ज्ञाता राहुल सांकृत्यायन जितने विद्वान थे निजी जीवन में उतने ही व्यावहारिक एवं सरल थे। उन्होंने राहुल सांकृत्यायन से हुई कई भेंटों का जिक्र करते हुए कहा कि 1951 में वह सोवियत संघ से लौटे थे और इलाहाबाद में एक विशेष गोष्ठी आयोजित की गई थी। उस गोष्ठी में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई थी कि शोध का स्तर गिर रहा है। इस चिंता का निराकरण करते हुए राहुलजी ने कहा था कि शोध के शुरू होने की प्रक्रिया में गुणवत्ता की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। बाद में स्थिति ठीक होने लगती है।

ऐसे ही एक वाकए का जिक्र करते हुए भगवान सिंह ने कहा कि राहुलजी एक बार एक स्कूल गए। वहां स्कूल ने शिकायत की कि कई बच्चे पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। इस पर उनका सहज जवाब था कि अगर कुछ बच्चे भी पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं तो यह कम नहीं है। अपने आखिरी दिनों में राहुल सांकृत्यायन पक्षाघात सहित कई बीमारियों के शिकार हो गए। भगवान सिंह के अनुसार वह काफी दुखद क्षण था। पक्षाघात से ग्रसित हो जाने के बाद वह अपने बच्चों को भी नहीं पहचान पा रहे थे। 14 अप्रैल 1963 को उनका निधन हो गया।

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