समाज की धड़कन है ''साझा मन'' (पुस्तक समीक्षा)

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दीपक गिरकर । Feb 28 2019 6:33PM

वसुधा जी ने अपने आसपास के परिवेश, वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं के प्रति उनकी जो अनुभूतियाँ, संवेदनाएं हैं, उनको लघुकथाओं के माध्यम से साझा करने का प्रयास किया है।

सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक, भाषा तथा पर्यावरण से जुड़े विषयों पर कविता, लघुकथा, कहानी इत्यादि विधाओं में देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में वसुधा गाड़गिल की रचनाओं का निरंतर प्रकाशन हो रहा है। साझा मन वसुधा गाड़गिल का पहला लघुकथा संग्रह है। इसके पूर्व वसुधा जी ने मीडिया की भाषा पुस्तक का संपादन किया था। वसुधा जी ने अपने आसपास के परिवेश, वर्तमान समय में व्यवस्था में फैली अव्यवस्थाओं, विसंगतियों, विकृतियों, विद्रूपताओं के प्रति उनकी जो अनुभूतियाँ, संवेदनाएं हैं, उनको लघुकथाओं के माध्यम से साझा करने का प्रयास किया है और वे अपने इस प्रयास में सफल हुई हैं। यह संग्रह सकारात्मकता के बीज रोपित करती लघुकथाओं का एक सशक्त दस्तावेज़ है।

वसुधा जी ज़मीन से जुड़ी हुई एक चिंतनशील और विचारक लेखिका हैं जो अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को बदलने का स्वप्न देखती हैं। इस संग्रह की लघुकथाओं को पढ़कर ऐसा लगता है जैसे छोटी-छोटी घटनाएं लेखिका को विचलित करती हैं। इस संग्रह की हर लघुकथा पाठकों और साहित्यकारों को प्रभावित करती है। इस संकलन में 98 लघुकथाएं संकलित हैं। इस लघुकथा संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ साहित्यकार एवं लघुकथाकार सतीश राठी ने लिखी है।

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ऑक्सीजन, रेत के दाने, मेहमान, भास्कर, गुरुदक्षिणा सहित और भी लघुकथाएं मानवीय संवेदनाओं को झंकृत कर के रख देती हैं। लघुकथा जंग में जिंदगी की जंग जीत जाने पर किस प्रकार खुशियों का सावन आँखों से बरस कर जीवन बचाने वाले का आभार प्रकट करता है इसे बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया गया है। सौगात, तमाचा, विपन्नता जैसी लघुकथाएं समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करती है। कीटनाशक, योद्धा जैसी लघुकथाएं स्त्रियों पर हो रहे अत्याचार, अनाचार कर रहे मुखौटों को सब के सामने लाने की कोशिश करती है। समाज में फैल रही विकृति की विषबेल किशोरावस्था को अपने शिकंजे में किस प्रकार से ले रही है इसे व्यक्त करती है विषबेल लघुकथा। उष्मा लघुकथा में लेखिका ने मातृत्व भाव को रेखांकित किया है।

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ठगी लघुकथा में एक जगह यह वर्णन दृष्टव्य है- "अरे-अरे, मेरा सिक्का!" संन्यासी चिल्लाया। घर्रर्रर्र… बस आगे बढ़ गयी थी। संन्यासी बस के पीछे दौड़ रहा था। बस की खिड़की से महिला ने संन्यासी को सिक्का दिखाकर कहा- "सब माया है...!"। लघुकथा कैंडल लाईट डिनर में लेखिका लिखती है "हूँ... अंधेरे में जीना, कैसी बात कर रही हो मम्मी!" अंशुल अंधेरे पर गुस्सा निकालते हुए बोला। "देखो न बेटा, अंधेरे ने हम सबको जोड़ा है और मेरी खुशियों के दायरे को बढ़ा दिया!" डायनिंग टेबल पर मोमबत्ती की हल्की-हल्की रोशनी में दूर होती ज़िंदगियाँ पास आ रही थीं। दोहरे चरित्र, सांप्रदायिक बैर, राजनीतिक परिदृश्य, शिक्षा जगत में व्याप्त भाषा विवाद, जातिवाद, मातृत्व भाव, रिश्तों में चेतना, नैतिक और आदर्श जीवन मूल्यों की स्थापना, बाज़ारवादी दृष्टिकोण, नारी शोषण इन सब विषयों पर लेखिका ने अपनी कलम चलाई हैं।

वसुधा जी की लेखनी का कमाल है कि उनकी लघुकथाओं के चित्र जीवंत हैं और सभी रचनाएं वर्तमान समय व समाज की वास्तविकता हैं। लेखिका ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से समय के सच को अभिव्यक्त किया है। लगभग सभी लघुकथाएं भाषा, कथ्य एवं विषयवस्तु की दृष्टि से पाठकों के हृदय में गहरे चिह्न छोड़ जाती हैं। इस संग्रह की लघुकथाएं समाज में नकारात्मकता को ललकारते हुए सकारात्मकता लाने का प्रयास करती हैं। वसुधा जी ने समाज के मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रों को संवेदना के साथ उकेरा है। संग्रह की सभी लघुकथाएं संवेदनाओं को झकझोरती पाठकों को गहरे विमर्श के लिए विवश करती हैं। 131 पृष्ठ का यह लघुकथा संग्रह आपको कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर कर देता है। यह लघुकथा संग्रह सिर्फ़ पठनीय ही नहीं है, संग्रहणीय भी है।

पुस्तक: साझा मन

लेखिका: वसुधा गाड़गिल

प्रकाशक: रूझान पब्लिकेशन्स, एस-2, मैपल अपार्टमेंट, 163, ढाका नगर, सिरसी रोड, जयपुर-302012

मूल्य: 150 रूपए

पेज: 131

-दीपक गिरकर

(समीक्षक)

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