उपवास का मौसम (व्यंग्य)

Season of fasting (satire)
विजय कुमार । Apr 18 2018 3:45PM

आजकल बेमौसमी उपवासों का दौर चल रहा है। वैसे तो साल में दो बार नवरात्र आते हैं। दो मौसम के संधिकाल में नौ दिन कम खाने या कुछ नहीं खाने से पेट को आराम मिलता है। इससे पूरे शरीर की आंतरिक शुद्धि हो जाती है।

आजकल बेमौसमी उपवासों का दौर चल रहा है। वैसे तो साल में दो बार नवरात्र आते हैं। दो मौसम के संधिकाल में नौ दिन कम खाने या कुछ नहीं खाने से पेट को आराम मिलता है। इससे पूरे शरीर की आंतरिक शुद्धि हो जाती है। इसलिए भारत में करोड़ों लोग ये उपवास करते हैं। 

संयुक्त राष्ट्र संघ की वार्षिक बैठक प्रायः सितम्बर-अक्तूबर में होती है। उन दिनों शारदेय नवरात्र चल रहे होते हैं। वहां जाकर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विधिवत उपवास करते हैं। दुनिया के बड़े नेताओं के साथ वार्ता करते समय खाने की मेज पर नींबू पानी लेते उन्हें देखा जाता है। सुना है वे पिछले 40 साल से ये उपवास कर रहे हैं।

भारत में कुछ लोग एकादशी पर उपवास करते हैं, तो कुछ लोग मंगल, गुरुवार या शनिवार को। महिलाओं के जिम्मे तो ये पूरा विभाग ही है। साप्ताहिक और पाक्षिक उपवासों के अलावा कभी पति के शुभ के लिए, तो कभी बच्चों के हित के लिए उपवास। शर्मा जी कहते हैं कि महिलाएं रसोई में दिन भर कुछ न कुछ खाती ही रहती हैं। तभी उनके लिए कई उपवासों की व्यवस्था बनायी गयी है। कई लोग व्रत रखते हैं। पता नहीं वह खाने का होता है या न खाने का। दिन भर भूखे रहना और फिर रात को कई गुना गरिष्ठ भोजन। इससे लाभ होता है या हानि, ये व्रत करने वालों से ही पूछें। क्योंकि मेरा उपवास या व्रत की बजाय कम खाने में विश्वास है।

मुसलमान नियमित उपवास तो नहीं करते; पर साल में एक बार वे भी महीना भर रोजे रखते हैं। लेकिन इसके पीछे का तर्क समझ में नहीं आता। क्योंकि कभी रोजे सर्दियों में पड़ते हैं, तो कभी गरमी या वर्षा में। दिन में भूखे-प्यासे रहकर रात में खाते रहना। जैन पंथ में भी एक-दो दिन से लेकर कई महीने और फिर शरीर त्याग के लिए ‘संथारा’ की व्यवस्था है। वस्तुतः उपवास का सम्बन्ध शरीर की आंतरिक शुद्धि से है; पर उसमें नियमितता बनी रहे, इसके लिए हमारे संतों और मनीषियों ने उसे धर्म से जोड़ दिया। कई उपवास निर्जल भी होते हैं। वैसे व्रत, उपवास, रोजा, अनशन, भूख हड़ताल, प्रायोपवेशन और संथारा जैसी चीजें ऊपर से देखने पर एक जैसी लगती हैं; पर उनके उद्देश्य और व्यवहार में भारी अंतर है।

लेकिन इन दिनों कुछ और ही किस्म के उपवास चर्चा में हैं। पिछले दो-तीन साल से अन्ना हजारे के उपवास ने अखबारों में बहुत सुर्खियां बटोरी हैं। जब उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में उपवास किया, तो पूरा देश हिल गया था। ये देखकर कई बड़े कांग्रेसी मंत्रियों ने वहां आकर उन्हें मनाया; पर उस अनशन से फायदा उठाया केजरी ‘आपा’ ने। वे दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो गये और अन्ना को अधर में छोड़ दिया। इसके बाद अन्ना ने पहले मुंबई में और फिर दिल्ली के उसी मैदान में अनशन किया; पर उनका जादू नहीं चला। 

असल में अन्ना का दिल्ली में पहला अनशन ‘केजरीवाल एंड पार्टी’ द्वारा प्रायोजित था। इस बात को सीधे और सच्चे अन्ना समझ नहीं पाए; पर इस बार ऐसा नहीं हुआ। लोग मोदी से कुछ नाराज भले ही हों; पर उनके विरोधी नहीं हैं। अन्ना के बाद बाबा रामदेव ने भी अनशन किया; पर कांग्रेस सरकार ने आधी रात में उन्हें डंडे मारकर भगा दिया। फिर तो बाबा ने सरकार को उखाड़ने का संकल्प ले लिया और उसे पूरा करके ही माने। दिल्ली आने से पहले मोदी ने भी अमदाबाद में तीन दिन सद्भावना उपवास किया था। मीडिया वाले सद्भावना को तो भूल गये; पर मुल्ला टोपी न पहनने को आज तक गाते रहते हैं।

अब कुछ चर्चा उस ‘भरपेट उपवास’ की भी हो जाए, जिसने उसे उपहास का पात्र बना दिया। पिछले दिनों कांग्रेस वालों ने निर्धनों पर हो रही हिंसा के विरोध में छोले-भटूरे खाकर दिल्ली में चार घंटे का उपवास किया; पर बुरा हो उस दिलजले का, जिसने ये फोटो इंटरनेट पर डाल दी। बस, फिर क्या था ? भा.ज.पा. वालों के साथ ही मीडिया को भी चटपटा मसाला मिल गया। टी.वी. चैनल दिन भर छोटे-भटूरे दिखाकर दर्शकों का पेट भरते रहे।  

यह देखकर भा.ज.पा. वालों ने भी तीन दिन बाद देश भर में उपवास किया। उनका कहना था कि कांग्रेस ने संसद नहीं चलने दी। यह उपवास उसके विरोध में है। सभी नेता उपवास पर बैठे; पर मोदी ने उपवास के बावजूद चेन्नई में पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में भाग लिया। बेचारे नेता नीबू पानी का घूंट पीकर रह गये। उपवास तो सबने किया; पर मीडिया में मोदी ही छाए रहे। 

किसी ने ठीक ही कहा है कि राजनीतिक उपवासों की बड़ी महिमा है। चूंकि उसमें उपवास कम और दिखावा अधिक होता है। पिछले साल म.प्र. के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसानों पर हुई हिंसा के प्रायश्चित स्वरूप दो दिन का उपवास किया था। 2007 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने रामसेतु शीघ्र तुड़वाने के लिए दो घंटे का उपवास किया। उनके कोमल बिस्तर के आसपास कई कूलर और ए.सी. लगाये गये। इसे उपवास की बजाय पाखंड कहना शायद अधिक उचित होगा। 

शर्मा जी का मत है कि चुनाव पास आते ही नेतागण उपवास से जनता की सहानुभूति बटोरने का प्रयास करते हैं; पर चुनाव जीतते ही उन्हें न जनता का ध्यान रहता है और न ही उपवास का। हां, उनके घर और दफ्तरों में चाय-नाश्ते के लाखों रुपये के बिल जरूर आने लगते हैं। 

उपवास की राजनीति पर कोई शोध छात्र चाहे, तो डॉक्टरेट कर सकता है। मेरे पास इसके लिए बहुत सामग्री है। सुना है अब डा.प्रवीण तोगड़िया भी उपवास करने वाले हैं। रामजी उनका भला करें।

-विजय कुमार

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