बोल भारत तूने क्या देखा (कविता)

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शिखा अग्रवाल । Sep 14 2023 11:10AM

हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है, यह हमारे अस्तित्व एवं अस्मिता की भी प्रतीक है, यह हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति की भी प्रतीक है। हिंदी दिवस के अवसर पर कवियत्री ने हिंदी कविता बोल भारत तूने क्या देखा में देश को सर्वोपरि रखा है।

हिन्दी विश्व की एक प्राचीन, समृद्ध तथा महान भाषा होने के साथ ही हमारी राजभाषा भी है, यह हमारे अस्तित्व एवं अस्मिता की भी प्रतीक है, यह हमारी राष्ट्रीयता एवं संस्कृति की भी प्रतीक है। कवियत्री ने हिंदी कविता बोल भारत तूने क्या देखा में देश को सर्वोपरि रखा है।

बोल भारत तूने क्या देखा...!

मेरा जन्म देखा,

मेरा विकास देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

कालजयी रचनाओं में मेरा सरल रुप देखा,

कबीर, रैदास की कलम से छलका मेरा सौम्य रूप देखा,

कविताओं में मेरा सम्मान देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

देवनागरी लिपि में मेरा आकार देखा,

दिनकर, सुरदास के सुरों में सजा मेरा गहना देखा,

देश के कोने-कोने में मेरा डेरा देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

बोली मैं मेरी मिठास देखी,

बड़ों के लिए सम्मान देखा,

छोटों के लिए प्रेम देखा,

मां की ममता में मुझे पलते देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

मेरे ज्ञान का समंदर देखा,

मेरे अक्षरों का अथाह भंडार देखा,

बिन्दु दर बिन्दु ..हो चाहे चन्द्र बिन्दु,

अर्थ का अनर्थ करते किसने देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

एक शब्द के भाव अनेक,

अनेक भावों के शब्द एक,

प्रेम-पत्र के पन्नों पर,

शब्दों की गंगा को क्या किसी ने परखा,

बोल भारत तूने क्या देखा..!

बरखा, बादल, बहारों की बौछार में,

नृत्य करते कृष्ण की बांसुरी में,

राधा के प्रेम-सागर में,

मेरा अमर रुप बताओ किसने देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

रावण की वीणा हो,

या हो शिव का तांडव,

संस्कार, सभ्यता, संस्कृति,

या हो स्वर,रस,छंद, दोहे की अभिव्यक्ति,

सुरों के साज़ में क्या मुझको सज़ा देखा ,

मेरा अपरिभाषित आवरण किसने देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

अंग्रेजी पाठशालाओं में,

सरकारी महकमों में,

सार्वजनिक स्थानों पर

मेरा अंतिम समय किसने देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

कदम दर कदम घड़ी की सुइयां सरकती है,

किताब दर किताब सांसे मेरी घुटती है,

बोली भी अब मेरी न रही,

ये सोच अश्रु धारा मेरी बहती है,

क्या इतना वीभत्स रूप है मेरा,

क्या भारत नहीं रहा अब घर मेरा,

बेघर होते मुझे किसने देखा,

बोल भारत तूने क्या देखा...!

- शिखा अग्रवाल, 

भीलवाड़ा

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