गागर में सागर है पर्यावरण की महत्ता बताती ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ (पुस्तक समीक्षा)

पिछले कुछ वर्षों से साल का कोई ऐसा महीना नहीं गुजरता, जब बिगड़ते पर्यावरण की बेहद चिंताजनक और ध्यान खींचने वाली कोई खबर दुनिया के किसी कोने से न आती हो। वास्तव में 21वीं सदी की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी या आतंकवाद नहीं है। इनसे भी बड़ी समस्या हर तरह का बढ़ता प्रदूषण है, जिसके कारण धरती पर लगातार विनाश का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल पर्यावरण प्रदूषण आज एक भूमण्डलीय समस्या बन गई है।
वरिष्ठ पत्रकार और समसामयिक, राजनीतिक व पर्यावरण विषयों के प्रिंट मीडिया में लोकप्रिय विश्लेषक योगेश कुमार गोयल की बहुचर्चित किताब ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ वास्तव में धरती की इसी विराट समस्या को संबोधित है। वास्तव में पर्यावरण किसी एक देश, एक समाज या एक इलाके की समस्या नहीं है बल्कि इसकी जद में अब पूरी दुनिया है। इसीलिए योगेश कुमार गोयल की इस किताब का नजरिया वैश्विक है। किताब में कुल 19 अध्याय हैं और ये सभी अध्याय वास्तव में दुनिया की विराट प्रदूषण जनित समस्या को एक नजर में देखने का उपक्रम हैं। इस तरह देखा जाए तो हिन्दी अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित उनकी 190 पेज की इस किताब में धरती की समस्त पर्यावरणीय समस्याएं एक क्रम में मौजूद हैं। इसलिए अगर विषय वस्तु को ध्यान में रखते हुए इसे गागर में सागर कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
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किताब में मौजूद हर अध्याय वास्तव में प्रदूषण की किसी समस्या या उससे पैदा हुई स्थिति का चित्रण है। किताब के पहले अध्याय ‘प्रकृति की मूक भाषा को समझें’ में दुनिया का ध्यान इस तरफ खींचा गया है कि धरती में रह-रहकर जो उथल-पुथल की कुदरती घटनाएं घट रही हैं, उनके पीछे छिपे संकेतों को समझें। ये धरती में इंसान की ज्यादती का नतीजा हैं। किताब का यह अध्याय बताता है कि आधुनिकरण और औद्योगिकीकरण में कहां हमने कुदरत की नैतिक सरहद का उल्लंघन किया है, जिसके नतीजे हमारे सामने हैं। किताब का दूसरा अध्याय वायु प्रदूषण को समर्पित है, जो वास्तव में मौजूदा दौर का सबसे बड़ा प्रदूषण संकट है। हर साल दुनियाभर में 20 लाख से ज्यादा लोग जहरीले वायु प्रदूषण के कारण मौत के घाट उतर जाते हैं। वायु प्रदूषण हाल के सालों में सामने आयी प्रदूषण की सबसे बड़ी समस्या है, जिसके चलते सिर्फ इंसान ही नहीं, हरी-भरी प्रकृति की भी सांसें थम सी रही हैं।
किताब में जल प्रदूषण, खासकर जल-स्रोतों पर गहराते प्रदूषण की समस्या को भी बारीक निगाहों से देखा गया है। इसी क्रम में ध्वनि प्रदूषण पर भी किताब में बहुत ही सरस सामग्री है। बेलगाम उपभोग के चलते संकट का सबब बने प्लास्टिक की विनाशकारी भूमिका को भी लेखक ने बड़े विस्तार और गंभीरता से अपनी किताब में समेटा है। इस मायने में भी यह किताब खास है क्योंकि इसमें अकादमिक रूखाई नहीं है। चूंकि लेखक बहुत सारे विषयों का जानकार है, इसलिए भी किताब में जबरदस्त जानकारियों के साथ-साथ एक रोचक पठनीयता है।
किसी पत्रकार की गंभीरता से लिखी गई किताब इसलिए भी दूसरे लेखकों से ज्यादा उपयोगी होती है क्योंकि इसे न केवल सहजता से पढ़ा जा सकता है बल्कि आसानी से गहराती प्रदूषण की समस्या को बिना किसी बौद्धिक आतंक के समझा जा सकता है। जबकि बड़े-बड़े अकादमिक विशेषज्ञों की लिखी गई किताबें इस पैमाने पर खरी नहीं उतरतीं। योगेश कुमार गोयल एक सक्रिय लेखक हैं और देशभर के विभिन्न समाचारपत्रों में करीब-करीब उनके हर दिन महत्वपूर्ण लेख छपते हैं, उन्हें लेखन का लंबा अनुभव है। इसलिए उनकी किताब में लंबे-लंबे अनावश्यक और उबाऊ विवरण कतई नहीं हैं, जो आमतौर पर पाठकों के लिए किसी किताब को पढ़ने की सबसे बड़ी बाधा होते हैं।
‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ इतनी रोचक और सरल जुबान में लिखी गई है कि इसे कोई भी सामान्य पाठक पढ़कर अच्छे पर्यावरण का महत्व और प्रदूषण की गहराती समस्या को समझ सकता है। इस पुस्तक को लिखने में लेखक ने काफी शोध और मेहनत की है। लेखक ने इस किताब में अपने तर्कसम्मत विचारों, संदर्भों के साथ उदाहरण भी दिए हैं और तथ्यों के साथ गहरा विश्लेषण भी किया है। निसंदेह यह पुस्तक स्थायी महत्व की है। प्रदूषण को कम करने हेतु पुस्तक में कई मौलिक एवं व्यावहारिक सुझाव भी दिए गए हैं, जिसका फायदा सरकार और नागरिकों द्वारा उठाया जा सकता है। मीडिया केयर नेटवर्क, नई दिल्ली से प्रकाशित यह पुस्तक अमेजन डॉट इन पर बिक्री के लिए उपलब्ध है, जहां से पाठक इसे खरीद सकते हैं।
https://www.amazon.in/Pradushan-Saansein.../dp/8193716817
पुस्तक: प्रदूषण मुक्त सांसें
लेखक: योगेश कुमार गोयल
पृष्ठ संख्या: 190
प्रकाशक: मीडिया केयर नेटवर्क, 114, गली नं. 6, एमडी मार्ग, गोपाल नगर, नजफगढ़, नई दिल्ली-110043
मूल्य: 260 रुपये
समीक्षक: लोकमित्र
- लोकमित्र
(लोकमित्र विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान ‘इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर’ में वरिष्ठ सम्पादक हैं)
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