उतारने का रुझान (व्यंग्य)

किसी ज़माने में शालीन वस्त्रों को इज्ज़त समझा जाता था अब तो सीधे सीधे इज्ज़त उतारने का ट्रेंड भी पनप रहा है। अपनी भी और दूसरों की भी। सार्वजनिक रूप से या असामाजिक सोशल मीडिया पर ऐसा करना बेहतर माना जाने लगा है।
हमारे निरंतर विकसित होते जा रहे समाज में राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक क्षेत्र में एक दूसरे को उतारने, फंसाने और गिराने का रुझान हमेशा बना रहता है। प्रवृति कब बदल जाए कह नहीं सकते। अलग अलग क्षेत्रों के कर्णधार, विशेषज्ञ और महाज्ञानी पूरा ध्यान रखते हैं कि किसी को गिराने और दूसरे को उठाने का रुझान बरकरार रहे। बाज़ार इस सम्बन्ध में बहुत सहयोग करता है। इस बात के पीछे मंतव्य यह दिया जाता है कि जो गिरेगा वही उठेगा। अर्थशास्त्र यह कहता है कि जो उठता रहेगा, एक दिन गिरेगा। आजकल उतारने की प्रवृति ज़ोरों पर है। कुछ चीज़ें तो समय के साथ स्वयं उतर जाती हैं लेकिन जो चीज़ें नहीं उतारनी चाहिएं उन्हें भी उतारने की प्रवृति बढ़ती जा रही है। मिसाल के तौर पर कपड़े उतारने की दिशा में सक्रियता बढ़ रही है।
बरसात के मौसम में यह रुझान अब बाढ़ सा लगने लगा है। प्रसिद्ध महिलाओं में, वस्त्र सम्बंधित सोच, शर्मनाक शैली में धंस रही है। जिसे देखो कपड़े कम पहनने, छोटे पहनने या उतारने पर उतारू है। उतारने के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय फैशन यानी महा नवोन्मेषी शैली में, शरीर पर कपड़े फंसाने का रुझान भी बढ़ता जा रहा है। कम से कम आकार का कपड़ा लेकर, महंगे से महंगा वस्त्र डिजाईन करने का समय है। कपड़ों में नंगे होने का रुझान है। कपड़े उतारकर दूसरों को आकर्षित, प्रभावित और भ्रमित करने की परम्परा व्यवसाय होती जा रही है। यह प्रवृति प्रसिद्ध और धनवान लोगों के जीवन से चलकर, निकलकर आम लोगों के दिमाग पर चढ़ रही है। हम यह विचार इंजेक्शन के रूप में अपने बच्चों के शरीर में भी लगा रहे हैं।
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किसी ज़माने में शालीन वस्त्रों को इज्ज़त समझा जाता था अब तो सीधे सीधे इज्ज़त उतारने का ट्रेंड भी पनप रहा है। अपनी भी और दूसरों की भी। सार्वजनिक रूप से या असामाजिक सोशल मीडिया पर ऐसा करना बेहतर माना जाने लगा है। इज्ज़त उतारते समय यह भूल जाने की प्रवृति है कि अमुक उम्र में छोटा है या बड़ा। अपना सम्मान बदरंग करने की प्रवृति प्रसिद्ध व्यक्तियों में बढ़ रही है। यह लोग एक दूसरे की प्रतिष्ठा की दही करना खूब पसंद करते हैं। किसी भी महत्त्वपूर्ण मसले पर रायता फैलाना इन्हें पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक कद बढ़ना लगता है। तन चाहा मन चाहा करने वाले लोग फख्र महसूस करते हुए कई बार ऐसी हरकतें भी करते हैं कि मर्यादा खिंचती रबड़ की तरह लम्बे समय तक परेशान होती रहे। राजनेता वायदा कर पांच साल तक अपने वायदों की छील जनता के सामने सरे बाज़ार उतारते रहते हैं। उतारने की प्रवृति कम करने के लिए, लगता है अब कोचिंग सेंटर खोलने पड़ेंगे।
- संतोष उत्सुक
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