अजरबैजान vs आर्मीनिया: एक पुराना क्षेत्रीय संघर्ष

Azerbaijan vs Armenia
अभिनय आकाश । Oct 28 2020 5:17PM

10 अक्टूबर से लेकर अब तक तीन बार जंगबंदी का ऐलान हो चुका है लेकिन तीनों बार हुआ कि कुछ ही घंटों बाद अर्मेनिया और अज़रबैजान ने एक दूसरे पर फिर से हमले शुरू कर दिए।। पहले भी दोनों देशों में संघर्ष विराम फेल हो चुका है।

एशिया और यूरोप के बार्डर पर एक भयानक जंग पिछले एक महीने से चल रही है। लेकिन 29 दिनों से चल रही जंग के शांत होने की उम्मीद को तीसरी बार झटका लगा है। जमीन के छोटे से टुकड़े के लिए चले आ रहे जंग के बीच दोनों देशों ने युद्ध विराम लागू करने पर सहमति जताई और इसके कुछ ही घंटों बाद एक बार फिर से आर्मीनिया और अजरबैजान ने एक-दूसरे पर उकसावे का इल्ज़ाम लगाते हुए गोलीबारी की। अर्मेनिया और अजरबैजान दुनिया के नक्शे में दो छोटे से देश हैं। मगर इसमें एक तरफ से एक ईसाई देश आर्मीनिया है तो उसके ठीक सामने खड़ा है एक इस्लामिक मुल्क अजरबैजान। तुर्की और पाकिस्तान ने अजरबैजान की तरफ से लड़ने के लिए अपने कई जिहादी भेजे हैं। इसलिए इसे 21वीं सदी का धर्म युद्ध कहा जा रहा है। अज़रबैजान आर्मीनिया के बीच के युद्ध का इतिहास, भूगोल और पावर पॉलिटिक्स का आज एमआरआई स्कैन करेंगे। 

ये वो ठिकाना है जहां यूरोप और एशिया मिलते हैं। ठीक उसी मुहाने पर दो देश, दो सेनाएं, दो सभ्यताएं युद्ध कर रही। गोले बरस रहे, बम गिराए जा रहे। मल्टीबेरर राकेट हमला कर रहे हैं। 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद ये पहला मौका है जब दुनिया में इतनी भयानक जंग हो रही है। बड़े-बड़े हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है। रिहाइशी इलाके तबाह किए जा रहे हैं। बस्तियां उजारी जा रही हैं। इस जंग में एक तरफ है ईसाई देश आर्मीनिया तो दूसरी तरफ है इस्लामिक मुल्क अज़रबैजान। दोनों ही देश में 4400 वर्ग किलोमीटर जमीन के टुकड़े के लिए एक सदी से भी ज्य़ादा वक्त से लड़ रहे हैं। जिस जमीन के छोटे से इलाके के लिए आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जंग हो रही है उस इलाके का नाम है नागोर्नो-काराबाख़। महज डेढ़ लाख आबादी वाला नागोर्नो-काराबाख़ आज बड़ी ताकते के पर्दे के पीछे से होने वाले युद्ध का अखाड़ा बन गया है। 

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नागोर्नो-काराबाख़ का युद्ध क्यों?

नागोर्नो-काराबाख़ के इलाके की खूनी जंग दरअसल, एक इलाके की लड़ाई है। 

दो धर्मों के बीच युद्ध है। 

अपना प्रभुत्व जमाने का संघर्ष है।

बड़ी ताकतों के बीच एक किस्म का प्राॅक्सी वार है।

आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख़ में छिड़ा युद्ध एक सदी से भी पुराने इस झगड़े में 27 सितंबर से युद्ध चल रहा है। आइए जानते हैं नागोर्नो-काराबाख़ के बारे में कुछ बातें-

  • नागोर्नो काराबाख़ 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाक़ा है।
  • पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं।
  • सोवियत संघ के विघटन से पहले ये एक स्वायत्त क्षेत्र बन गया था जो अज़रबैजान का हिस्सा था।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाक़े को अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, लेकिन यहां की अधिकांश आबादी आर्मीनियाई है।
  • आर्मीनिया समेत संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य किसी स्व-घोषित अधिकारी को मान्यता नहीं देता।
  • 1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध में 30 हज़ार से अधिक लोगों की जानें गईं। उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया।
  • उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया. 1994 में यहाँ युद्धविराम की घोषणा हुई थी, उसके बाद भी यहाँ गतिरोध जारी है और अक्सर इस क्षेत्र में तनाव पैदा हो जाता है।
  • 1994 में यहां युद्धविराम हुआ जिसके बाद से यहां गतिरोध जारी है।
  • तुर्की खुल कर अज़रबैजान का समर्थन करता है।
  • यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना है।
  • इस इलाक़े को लेकर 27 सितंबर 2020 को एक बार फिर आज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच जंग शुरू हो गई।

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तुर्की, पाकिस्‍तान, इजरायल हैं अजरबैजान के 'दोस्‍त'

नागोर्नो-काराबाख की जंग में तुर्की और उसका पिछलग्‍गू पाकिस्‍तान खुलकर अजरबैजान का समर्थन कर रहे। तुर्की ने पिछले साल अजरबैजान के साथ 10 संयुक्‍त सैन्‍य अभ्‍यास किए थे। खबरों में कहा गया था क‍ि अजरबैजान के अंदर तुर्की अपना एक स्‍थायी सैन्‍य अड्डा बनाने में जुट गया। नागोर्नो-काराबाख में जारी वर्तमान जंग में तुर्की खुलकर हथियारों की मदद कर रहा। तुर्की के ड्रोन विमान आर्मीनिया में कहर ढा रहे हैं। आर्मीनिया का दावा है कि तुर्की ने अपने F-16 लड़ाकू विमान भी अजरबैजान को दिए।

माइक पोम्पियो ने दी थी समझौते की जानकारी

दोनों देशों के बीच समझौते की के बाद ऐसा लगने लगा था कि युद्ध के बादल छंटते नजर आ रहे हैं। जिसकी जानकारी अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो  ने देते हुए कहा था कि दोनों देश युद्ध विराम के लिए तैयार हो गए हैं। जिसके बाद अमेरिका समेत तीनों देशों ने संयुक्त बयान जारी किया। अर्मेनिया के विदेश मंत्री जोहराब म्नातसाकान्यान और अजरबैजान के विदेश मंत्री जेहुन बायरामोव आधी रात को युद्ध विराम द्वारा लागू करने और पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों देशों के साथ अमेरिका ने संयुक्त बयान भी जारी किया है। जिसमें बताया गया है अर्मेनिया और अजरबैजान 10 अक्टूबर को मास्को में जिस मानवीय संघर्ष विराम के लिए सहमत हुए थे। उसे लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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ज्यादा देर नहीं टिका समझौता

10 अक्टूबर से लेकर अब तक तीन बार जंगबंदी का ऐलान हो चुका है लेकिन तीनों बार हुआ कि कुछ ही घंटों बाद अर्मेनिया और अज़रबैजान ने एक दूसरे पर फिर से हमले शुरू कर दिए। पहले भी दोनों देशों में संघर्ष विराम फेल हो चुका है। 

इससे पहले भी दोनों देश संघर्ष विराम के लिए राजी हो चुके हैं...लेकिन ये संघर्ष विराम 10 मिनट भी नहीं चल पाया था और उसके बाद दोनों देशों ने एक दूसरे पर गोलाबारी शुरू कर दी थी। नए संघर्ष विराम से एक दिन पहले भी अर्मेनिया और अजरबैजान ने एक दूसरे के इलाकों को निशाना बनाया था। फिलहाल इस युद्ध से दोनों देशों का भारी नुकसान हुआ है और सैकड़ों लोग मारे गए हैं। ऐसे में युद्ध विराम आम नागरिकों के लिए बहुत अच्छी खबर है। लेकिन लोग भी इस बात को लेकर डरे हुए हैं कि युद्ध विराम की उम्र कितनी है। आर्मीनिया ने अज़ेरी सेना पर नागरिक इलाकों पर बमबारी करने का आरोप लगाया है। वहीं अज़रबैजान ने आम लोगों को मारने के आरोप से इनकार किया है और कहा है कि वह संघर्ष विराम लागू करने के लिए राज़ी है, लेकिन इसके लिए पहले आर्मीनियाई सेनाओं को युद्धस्थल छोड़कर जाना होगा।

कुलमिलाकर कहे तो युद्ध वह आग है, जिसमें मानव के लिये जीवन-निर्वाह के साधन, पर्यावरण, साहित्यकारों का साहित्य, कलाकारों की कला, वैज्ञानिकों का विज्ञान, राजनीतिज्ञों की राजनीति और भूमि की उर्वरता भस्मसात् हो जाती है। शांति के लिए सब कुछ हो रहा है, ऐसा सुना जाता है। युद्ध भी शांति के लिए, स्पर्धा भी शांति के लिए, अशांति के जितने बीज हैं, वे सब शांति के लिए, यह वर्तमान विश्व नेतृत्व के मानसिक झुकाव की भयंकर भूल एवं त्रासदी है। बात चले विश्वशांति की और कार्य हों अशांति के तो शांति कैसे संभव हो ? विश्वशांति के लिए परमाणु बम आवश्यक है, यह घोषणा करने वालों ने यह नहीं सोचा कि यदि यह उनके शत्रु के पास होता तो। इसलिये युद्ध का समाधान असंदिग्ध रूप में शांति, अहिंसा और मैत्री है। कोई भी राष्ट्र कितना भी युद्ध करे, अंत में उसे समझौते की टेबल पर ही आना होता है। - अभिनय आकाश

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