अंग्रेजों ने भारत का नहीं भारत ने ब्रिटेन का विकास किया, आखिर कितना पैसा चुराकर ले गए अपने मुल्क, औपनिवेशिक कब्जे के 190 वर्षों की अनसुनी कहानी

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jan 23 2023 4:55PM

1757 से 1947 तक ब्रिटिश औपनिवेशिक कब्जे के 190 वर्षों की कहानी ने भारत को कैसे सोने की चिड़िया से इस हाल में पहुंचा दिया। ये आधुनिक इतिहास की अनकही कहानियों में से एक है।

हम सभी भारतीय लोग बचपन से ही सुनते आ रहे हैं कि भारत कभी सोने की चिड़िया हुआ करता था। इसी वजह से विदेशी आक्रांताओं और अंग्रेजों ने इस देश को अपना गुलान बनाया और अपार संपत्ति लूटकर चलता हो गए। अंग्रेजों के जमाने की कहानियाों तो आपने खूब सुनी होंगी। करीब 200 सालों के अपने शासन में अंग्रेजों ने भारत को न केवल बेहिसाब दर्द दिए, बल्कि सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश को ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया, जहां हमें अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए कर्ज लेने की भी नौबत आ जाती है। 1757 से 1947 तक ब्रिटिश औपनिवेशिक कब्जे के 190 वर्षों की कहानी ने भारत को कैसे सोने की चिड़िया से इस हाल में पहुंचा दिया। ये आधुनिक इतिहास की अनकही कहानियों में से एक है। कांग्रेस सांसद और पूर्व विदेश मंत्री शशि थरूर ने 2017 की अपनी पुस्तक, द इनग्लोरियस एम्पायर: व्हाट द ब्रिटिश डिड टू इंडिया में कहानी को बताने की पूरी कोशिश की है।  उदाहरण के लिए, औपनिवेशिक अंग्रेजों द्वारा भारत से बाहर निकाली गई मुद्रास्फीति-समायोजित संपत्ति की मात्रा क्या थी? औपनिवेशिक अधिकारियों के काम करने का तरीका क्या था? क्या भारत को क्षतिपूर्ति की मांग करनी चाहिए  और इसकी विश्वसनीय गणना कैसे की जा सकती है?

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इनमें से कुछ सवालों का जवाब अब अर्थशास्त्री प्रोफेसर उत्सा पटनायक ने दिया है। उसने हाल ही में कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस में निबंधों का एक संग्रह प्रकाशित किया था जिसमें दो शताब्दी लंबी ब्रिटिश चोरी की विधि, आज के मुद्रा मूल्य पर इसकी गणना, और पुनर्मूल्यांकन के संभावित तरीके का विवरण दिया गया है। महत्वपूर्ण रूप से प्रोफेसर पटनायक ने उन बातों का उल्लेख किया है जिसका थरूर अपनी पुस्तक एन एरा ऑफ डार्कनेस: द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया में नहीं किया है। उत्सा ने ब्रिटिश चोरी को आंकड़ों के जरिये दर्शाया है। उत्सा पटनायक ने लगभग सभी पहलुओं की बारीकी से जांच की और ये निष्कर्ष निकाला कि अंग्रेज भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 3,19,29,75,00,00,00,000.50 रुपए) की संपत्ती लूटकर ले गए। ये 1765 से 1938 के बीच हुई घटनाओं के आधार पर डेटा है। 45 ट्रिलियन डॉलर असल में इतना ज्यादा है कि ये यूनाइटेड किंगडम की जीडीपी से 17 गुना ज्यादा है। जब रॉबर्ट क्लाइव ने 1757 में पलाशी (प्लासी) की लड़ाई में बंगाल के नवाब सिराज उद-दौला को नवाब के सेनापति, देशद्रोही मीर जाफर को रिश्वत देकर हरा दिया, तो अंग्रेजों के लिए असली पुरस्कार बंगाली से कर वसूलने का अधिकार था। नवाब ने एक मामूली कर लगाया था, जिससे किसानों को उचित जीवन यापन करने की अनुमति मिली। 1765 तक, नवाब पर क्लाइव की विजय के आठ वर्षों के भीतर, सब कुछ बदल गया। बंगाल में कर तिगुना कर दिया गया। 

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बंगाल, अकाल और व्हाइट मैन्स बर्डन

1770 में बंगाली की 30 मिलियन की आबादी में से 10 मिलियन लोग भुखमरी से मर गए। लगभग 173 साल बाद 1943 में जब द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ा हुआ था। मधुश्री मुखर्जी अपनी पुस्तक में दावा करती हैं कि बंगाल में जब अकाल अपने चरम पर था तब करीब 70 हजार टन चावल भारत से बाहर भेज दिया गया। ये उस दौर की बात है जब अंग्रेज भारत जैसे देशों को गुलाम बनाना अपना नैतिक अधिकार समझते थे। अंग्रेजों ने इसे व्हाइट मैन्स बर्डन की संज्ञा दी थी। अंग्रेजों का मानना था कि काले और दूसरे अश्वेत लोगों को सभ्य इंसान बनाना अंग्रेजों की जिम्मेदारी है और वो इसे अपने कंधों पर उठाते रहेंगे। उनका मानना था कि वो भारत के लोगों को इंसान बनाने के लिए आए हैं। 

औपनिवेशिक भारत 

जैसे ही ब्रिटेन ने भारतीय किसानों से कर राजस्व वसूलना शुरू किया, औद्योगिक क्रांति को भारत से धन और कच्चे माल के रूप में बढ़ावा मिला। ब्रिटिश कार्यप्रणाली उतनी ही सरल थी जितनी जबरन वसूली: इसने भारतीय किसानों पर उनकी आय का 35 प्रतिशत कर लगाया, बंगाल के नवाब ने उनसे तीन गुना अधिक कर लगाया। इस प्रकार ब्रिटिश कर संग्राहकों ने भारतीय धन का उपयोग भारतीय सामान खरीदने के लिए किया, उनका निर्यात किया और शून्य निवेश के साथ लाभ अर्जित किया। एक बार जब उन्होंने राजस्व संग्रह को समझ लिया, तो उन्होंने विशेष रूप से भारतीय सामान खरीदने के लिए भारतीय कंपनियों द्वारा उत्पन्न राजस्व का उपयोग किया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीयों का व्यापक शोषण हुआ। यह एक घोटाला था; पहले, वे सोने और चांदी के बदले भारतीय सामान खरीदते थे; अब, वे इसे मुफ्त में ले रहे हैं और 100% लाभ कमा रहे थे। लंबे समय तक, भारतीय उत्पादक इससे अनजान थे क्योंकि कर संग्रह और माल उत्पादन विभाग दो अलग-अलग प्राधिकरणों द्वारा प्रशासित थे। अंग्रेजों ने ब्रिटेन में अपनी औद्योगिक क्रांति को बढ़ावा देने के लिए लोहे और लकड़ी जैसे रणनीतिक कच्चे माल खरीदने के लिए ईआईसी द्वारा प्राप्त बड़े पैमाने पर लाभ का इस्तेमाल किया। इस प्रकार, हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी की चोरी पर आधारित थी।

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मुगलों से ज्यादा क्रूर थे अंग्रेज?

प्रोफ़ेसर पटनायक योजना की व्याख्या करते हुए बताती हैं कि बाद के वर्षों यानी 1858 में ब्रिटिश क्राउन के सत्ता में आने के बाद बिल ऑफ एक्सचेंज का इस्तेमाल किया गया। व्यापार को करों से जोड़ने की इस चतुर, अनुचित प्रणाली के एकमात्र भारतीय लाभार्थी बिचौलिये या दलाल थे। बिचौलिये या दलाल थे। आधुनिक भारत के कुछ प्रसिद्ध व्यापारिक घरानों ने अंग्रेजों के लिए दलाली करके अपना शुरुआती मुनाफा कमाया। इस प्रकार अंग्रेज़ क्या मुगलों से अधिक क्रूर थे? निस्संदेह उन्होंने भारत को उस तरह से दरिद्र बनाया जिस तरह मुगलों ने नहीं। इससे मुगल साम्राज्य मुक्त नहीं हो जाता। यह बर्बर था, हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया, और लाखों हिंदुओं को तलवार या वित्तीय प्रलोभन के माध्यम से परिवर्तित कर दिया। मुगल एक विनाशकारी, घातक शक्ति थे। हालाँकि अंग्रेजों ने भारत की अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुँचाया, उसमें वे उनसे आगे निकल गए। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर अंग्रेजों के खिलाफ इतना कम गुस्सा क्यों है जबकि मुस्लिम शासन की (सही में) निंदा की जाती है? उत्तर साफ है, 1700 के दशक में कई हिंदू भ्रष्ट मुगल साम्राज्य से तंग आ चुके थे। जब अंग्रेजों ने मुगलों को हरा दिया तो उन्हें राहत मिली। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 1900 से 1928 के बीच भारत का व्यापारिक निर्यात दुनिया में दूसरा सबसे अधिक था, केवल संयुक्त राज्य अमेरिका से पीछे। हालांकि, एक व्यापार अधिशेष राष्ट्र बनने के बजाय, ब्रिटेन की बेईमान और अनैतिक नीतियों के परिणामस्वरूप भारत एक व्यापार घाटे वाला देश बना रहा।

कैसे की गणना?

उत्सा पटनायक ने अपनी रिसर्च में भारतीय अर्थव्यवस्था के चार अहम पड़ाव पर गौर किया है। 1765 से 1938 के बीच में अलग-अलग तरह से भारत से पैसा लूटा गया। इसके बाद गणना की गई। जो अनुमान निकल कर आया उसपर 5% कर लगाया गया जिसे मार्केट रेट से कम ही माना गया। सभी आंकड़ों की बारीकी से जांच करने के बाद पटनायक इस नतीजे पर पहुंची कि ब्रिटेन ने कुल 190 सालों में 44.6 ट्रिलियन डॉलर चुराए। इसमें वो कर्ज शामिल नहीं है जो ब्रिटिश राज के दौरान भारत पर पड़ा था। ये बेहद दुखद आंकड़े हैं, लेकिन इसमें भी अभी कर्ज जोड़ा नहीं गया है और ब्रिटेन ने भारत की कितनी संपत्ती लूटी इसका कोई आंकलन ठीक तौर पर नहीं किया जा सकता है। अगर इस पूरे पैसे को भारत अपने विकास में लगाता और जिस कर को ब्रिटेन को दिया गया उसे भारत में ही लगाया जाता जैसा कि जापान ने किया है तो यकीन मानिए इतिहास में हम सबसे ताकतवर देशों की श्रेणी में आते। भारत एक अर्थव्यवस्था मुगल बन सकता था और सदियों की गरीबी दूर हो सकती थी।- अभिनय आकाश

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