West Bengal में कांग्रेस का संगठन बिखरने वाला है, खरगे हुए ‘अधीर’ तो रंजन ने दिखाए तेवर, बीजेपी को राज्य में मिलने वाला है नया कलेवर?

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अभिनय आकाश । May 20 2024 2:34PM

बंगाल में कांग्रेस को बर्बाद करने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ सहानूभूति नहीं रख सकते। मैं पार्टी के एक व्यक्ति के रूप में इस लड़ाई को नहीं रोक सकता। मेरी लड़ाई एक वैचारिक लड़ाई है और ये कोई निजी लड़ाई नहीं है। लेकिन खरगे की अधीर को चेतावनी की वजह से बंगाल के कार्यकर्ता नाराज हैं। पोस्टर में लगे कांग्रेस अध्यक्ष की तस्वीरों पर स्याही पोत दी गई। ऐसे में सवाल ये है कि क्या बंगाल में कांग्रेस का संगठन बिखड़ने वाला है?

साल 2007 की बात है प्रतिभा देवीसिंह पाटिल को यूपीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया और दिल्ली के अशोका होटल में सोनिया गांधी ने डिनर का आयोजन किया। वैसे तो इस डिनर का मुख्य मकसद सांसदों की प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कराना था। लेकिन उस वक्त कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रियरंजन दास मुंशी के साथ बैठे एक नेता का परिचय सोनिया गांधी ने ‘टाइगर ऑफ बंगाल’ के रूप में कराया। वो नाम है लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी। अधीर अक्सर कहते रहे हैं कि वे एक पैदल सिपाही हैं जो युद्ध के मोर्चे पर हमेशा सामने खड़ा रहता है। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में आज बंगाल की 7 सीटों पर वोटिंग हुई। इन 7 सीटों पर 88 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 4 जून को वोटों की गिनती के साथ सामने आएगा। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को लेकर कांग्रेस में रार दिखने लग गई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बंगाल कांग्रेस के प्रमुख अधीर रंजन चौधरी के सामने ममता बनर्जी के मुद्दे पर मर्यादा की लकीर खींच दी है। खरगे का कहना है कि वो फैसला करने वाले नहीं हैं, फैसला करने के लिए हम बैठे हैं। कांग्रेस फैसला करेगी, यहां आलाकमान है। हम सभी को उसका फिर पालन भी करना ही होगा। अगर कोई पालन नहीं करना चाहता तो उसे बाहर जाना होगा। वहीं खरगे के बयान पर अधीर रंजन ने कहा कि बंगाल में कांग्रेस को बर्बाद करने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ सहानूभूति नहीं रख सकते। मैं पार्टी के एक व्यक्ति के रूप में इस लड़ाई को नहीं रोक सकता। मेरी लड़ाई एक वैचारिक लड़ाई है और ये कोई निजी लड़ाई नहीं है। लेकिन खरगे की अधीर को चेतावनी की वजह से बंगाल के कार्यकर्ता नाराज हैं। पोस्टर में लगे कांग्रेस अध्यक्ष की तस्वीरों पर स्याही पोत दी गई। ऐसे में सवाल ये है कि क्या बंगाल में कांग्रेस का संगठन बिखरने वाला है?

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क्यों 'अधीर' हुए खरगे?  

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस प्रमुख और लोकसभा सांसद अधीर रंजन चौधरी लड़ाकू सिपाही बताया। अधीर रंजन चौधरी की यह प्रशंसा खड़गे द्वारा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष की आलोचना करने के कुछ दिनों बाद आई है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बीते दिनों बिना अधीर रंजन चौधरी का नाम लिए कहा कि वे फैसला करने वाले कोई नहीं होते हैं। कांग्रेस फैसला करेगी, हाईकमान तय करेगी कि क्या सही है, हम सभी को उसका फिर पालन भी करना ही होगा, अगर कोई पालन नहीं करना चहता तो उसे बाहर जाना होगा। 

अधीर रंजन ने कर दी भयंकर बेइज्जती

अधीर रंजन से साफ कहा है कि जो भी बंगाल में कांग्रेस को बर्बाद करना चाहेगा, उसके साथ किसी भी तरह की सहानुभूति नहीं रखी जा सकती। मैं तो पार्टी का एक सिपाही हूं और अपनी लड़ाई को बीच में नहीं रोक सकता हूं। मेरी वैचारिक लड़ाई चल रही है, कोई निजी लड़ाई नहीं है। हमे तो बंगाल में कांग्रेस को बचाना है, यहां बीजेपी-टीएमसी साथ में है। इसके ऊपर अधीर रंजन ने तल्ख अंदाज में यहां तक कह दिया कि वे भी सीडब्ल्यूसी और हाईकमान के सदस्य हैं। वे साफ कह रहे हैं कि हाईकमान के बीच में उनकी भी चलती है। यानी कि ममता को लेकर कांग्रेस के ही दो दिग्गज आमने-सामने आ चुके हैं।

एक एक राज्य से कांग्रेस पार्टी खुद ही कर रही अपनी जमीन कमजोर 

बिहार पर नजर डालें तो वहां कांग्रेस ने लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के सामने सालों से समर्पण कर रखा है। आलम तो ये भी देखने को मिला था कि कांग्रेस आलाकमान (प्रियंका गांधी) के कहने पर पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय करा लिया। उन्हें उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से टिकट मिल जाएगी। लेकिन लालू ने इस सीट पर अपना वीटो करते हुए जदयू से आई विधायक को बिना किसी सलाह के सिंबल दे दिया। कांग्रेस कुछ भी न कर सकी। वहीं उत्तर प्रदेश के अंदर कांग्रेस बार बार समाजवादी पार्टी के साथ इस उम्मीद में आती है कि उससे कुछ तो फायदा हो जाएगा। लेकिन पहले तो विधानसभा चुनाव में  सपा के साथ लड़कर सात सीटों पर सिमटने के बाद इस बार लोकसभा में अपनी सीट को बढ़ाने की कोशिश में लगी है। वैसे तो उत्तर प्रदेश से कांग्रेस की विदाई दो दशक से भी ज्यादा समय पहले से ही हो चुकी है। बंगाल का हाल देखें तो वहां ममता बनर्जी ने पहले ही कांग्रेस की हैसियत 2 सीटों से ज्यादा की नहीं बताई है। वहीं  बंगाल में ममता बनर्जी ने गठबंधन तक करने से मना कर दिया। कांग्रेस की वैचारिक शून्यता का खामियाजा उसके कार्यकर्ताओं को झेलना पड़ रहा है।  कांग्रेस कह रही है कि वो जिसके खिलाफ चुनाव लड़ रही है उसके खिलाफ कुछ न बोला जाए। कांग्रेस भले ही गर्त में चली जाए लेकिन ममता न नाराज हो पाए। दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान को ये उम्मीद है कि अगर आगे चलकर हमारी सरकार बनती है तो इंडिया गठबंधन का हिस्सा ममता बनर्जी बन सकती है। लगता है कि कांग्रेस ने खुद को खड़ा करने की उम्मीद जैसे छोड़ सी दी है। 

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 बाहर जाना होगा...

अगर बंगाल में मुस्लिम वोट ममता बनर्जी से टूटता है तो वो या तो वाम दल या फिर कांग्रेस के ही खाते में जाएगा। लेकिन कांग्रेस ने तो पहले ही टीएमसी के सामने समर्पण कर दिया है। खरगे की तरफ से लोकसभा में नेताप्रति पक्ष को इस अंदाज में हिदायत दिया जाना पार्टी में कलह को और बढ़ाएगा। खरगे ने जिस अंदाज में कहा कि जो पालन नहीं करेगा उसे बाहर जाना होगा। ऐसे में क्या अधीर रंजन चौधरी लोकसभा चुनाव के बाद इस्तीफा दे देंगे?  जब वहां वो अपनी राजनीति नहीं कर सकते और अपने संगठन को सही रास्ता पर नहीं लेकर जा सकते तो विकल्प ही क्या बचा है। 

 बीजेपी में जाएंगे अधीर रंजन? 

अधीर रंजन चौधरी बंगाल के नेता हैं, वहां प्रदेश और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। कांग्रेस को खुद भी आत्म अवलोकन करने की आवश्यकता है। क्या राहुल गांधी वहां एक पंचायत में भी चुनाव के समय उम्मीदवार को जिता सकते हैं। आपको याग होगा कुछ समय पहले ही राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाली थी। जब वो बंगाल में पहुंचे तो कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने दावा किया कि एक कार अज्ञात व्यक्तियों ने राहुल गांधी की कार पर पथराव कर दिया। जिससे गाड़ी का शीशा तक टूट गया। राहुल गांधी को टेंट लगाने तक के लिए परमिशन नहीं मिली। वहीं अधीर रंजन उन टूटू हुए शीशे वाली गाड़ी में चल रहे थे। अधीर रंजन बंगाल में कांग्रेस के संगठन को देख रहे हैं। ऐसे में कहा जाता है कि आपको रहना है रहो जाना है जाओ। कांग्रेस को क्या लगता है कि अधीर रंजन अकेले जाएंगे? पार्टी को अंदाजा नहीं है क्या कि प्रदेश का संगठन भी इससे बिखड़ सकता है। पिछली बार कांग्रेस बंगाल से जो दो सीटें ला पाई थी उसमें से एक पर अधीर रंजन ने जीत दर्ज की थी। बंगाल की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दो सीटें मिलने के बावजूद वहां से ही लोकसभा नेता प्रतिपक्ष बनाया।  

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