Pakistan की ये आपदा अखंड भारत के लिए अवसर, बलूचिस्तान पर नेहरू की गलती सुधारने का मोदी के पास सुनहरा मौका

जम्मू कश्मीर की तरह ही बलूचिस्तान के शासक भी अपनी रियासत की ऑटोनॉमी बनाए रखना चाहते थे। लेकिन पाकिस्तानी शासन ने इसके स्वतंत्रता के सात महीने बाद ही मार्च 1948 को अपनी सेना भेज दी।
पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत 11 मार्च को एक बड़े हमले से थर्रा गया। क्वेटा से पेशावर जा रही 500 यात्रियों वाली जाफर एक्सप्रेस को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के विद्रोहियों ने पहरो कुनरी और गदालार के बीच हाईजैक कर लिया। ताबड़तोड़ फायरिंग कर एक सुरंग के पास ट्रेन को रुकवा कर बीएलए विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया। फायरिंग से कई यात्रियों के घायल होने की सूचना है। पटरियों को उड़ा दिया गया है। बीएलए ने दावा किया है कि ट्रेन की सुरक्षा के लिए तैनात 20 फौजियों को गोली मार दी गई जबकि 150 फौजियों को बंधक बना लिया है। ये छुट्टियों के बाद पेशावर कैंट लौट रहे थे। महिलाओं और बच्चों को छोड़ दिया है। जबकि पुलिस का दावा है कि बलूच हमले में 6 फौजी मारे गए। 35 लोगों को ही बंधक बनाया गया है। 80 बंधकों को छुड़ा लिया गया है। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि बलूचिस्तान की जनता के साथ हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के प्रति मोदी सरकार पहले चिंता जता चुकी है। 2016 में गणतंत्र दिवस पर पीएम नरेंद्र मोदी के लाल किले से दिए गए भाषण में बलूचिस्तान और गिलगित के लोगों के प्रति अपनी संवेदना दिखाते रहे हैं।
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बलूचिस्तान का मसला
मीर खान ने स्थानीय मुस्लिम लीग और राष्ट्रीय मुस्लिम लीग दोनों को भारी वित्तीय मदद दी और मुहम्मद अली जिन्ना को कलात राज्य का कानूनी सलाहकार बना लिया। जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि ‘कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी।’ सी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए। अनुच्छेद 4 के इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था। साल 1959 में बलोच नेता नौरोज़ ख़ाँ ने इस शर्त पर हथियार डाले थे कि पाकिस्तान की सरकार अपनी वन यूनिट योजना को वापस ले लेगी। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने उनके हथियार डालने के बाद उनके बेटों सहित कई समर्थकों को फ़ांसी पर चढ़ा दिया। 1974 में जनरल टिक्का ख़ाँ के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना ने मिराज और एफ़-86 युद्धक विमानों के ज़रिए बलूचिस्तान के इलाकों पर बम गिराए। यहाँ तक कि ईरान के शाह ने अपने कोबरा हेलिकॉप्टर भेज कर बलोच विद्रोहियों के इलाकों पर बमबारी कराई। 26 अगस्त, 2006 को जनरल परवेज़ मुशर्ऱफ़ के शासन काल में बलोच आँदोलन के नेता नवाब अकबर बुग्ती को सेना ने उनकी गुफ़ा में घेर कर मार डाला। 1948 से लेकर आज तक बलूच का विद्रोह जारी है। बलूच का मानना है कि वो पूर्व में एक स्वतंत्र राष्ट्र थे और सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से वो एक अलग पहचान रखते है। पाकिस्तान ने कलात के खान से बंदूक की नोंक पर विलय करवाया। आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं।
नेहरू सरकार ने भारत में विलय के प्रस्ताव नजरअंदाज कर दिया
जम्मू कश्मीर की तरह ही बलूचिस्तान के शासक भी अपनी रियासत की ऑटोनॉमी बनाए रखना चाहते थे। लेकिन पाकिस्तानी शासन ने इसके स्वतंत्रता के सात महीने बाद ही मार्च 1948 को अपनी सेना भेज दी। इतिहास के हवाले से बताया जाता है कि खुदादाद खान इस बात को लेकर तैयार थे कि बलूचिस्तान का भारत में विलय कर दिया जाए। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य कांग्रेस नेताओं ने इसको नकार दिया।27 मार्च, 1948 को, ऑल इंडिया रेडियो ने राज्य विभाग के सचिव वीपी मेनन के हवाले से कहा कि कलात के खान ने भारत में विलय के लिए संपर्क किया था, लेकिन नई दिल्ली कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी। इस बयान का बाद में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने खंडन किया था। तब तक खान झुक चुके थे।
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जिन्ना ने तोड़ा समझौता
जिन्ना की सलाह पर यार खान 4 अगस्त 1947 को राजी हो गया कि ‘कलात राज्य 5 अगस्त 1947 को आजाद हो जाएगा और उसकी 1938 की स्थिति बहाल हो जाएगी।’ उसी दिन पाकिस्तानी संघ से एक समझौते पर दस्तखत हुए। इसके अनुच्छेद 1 के मुताबिक ‘पाकिस्तान सरकार इस पर रजामंद है कि कलात स्वतंत्र राज्य है जिसका वजूद हिन्दुस्तान के दूसरे राज्यों से एकदम अलग है।’ लेकिन अनुच्छेद 4 में कहा गया कि ‘पाकिस्तान और कलात के बीच एक करार यह होगा कि पाकिस्तान कलात और अंग्रेजों के बीच 1839 से 1947 से हुए सभी करारों के प्रति प्रतिबद्ध होगा और इस तरह पाकिस्तान अंग्रेजी राज का कानूनी, संवैधानिक और राजनीतिक उत्तराधिकारी होगा।’ अनुच्छेद 4 के इसी बात का फायदा उठाकर पाकिस्तान ने कलात के खान को 15 अगस्त 1947 को एक फरेबी और फंसाने वाली आजादी देकर 4 महीने के भीतर यह समझौता तोड़कर 27 मार्च 1948 को उस पर औपचारिक कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के बचे 3 प्रांतों को भी जबरन पाकिस्तान में मिला लिया था। 1948 में जब जिन्ना के कहने पर पाकिसतानी सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया। साल 1959 में बलोच नेता नौरोज़ ख़ाँ ने इस शर्त पर हथियार डाले थे कि पाकिस्तान की सरकार अपनी वन यूनिट योजना को वापस ले लेगी। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने उनके हथियार डालने के बाद उनके बेटों सहित कई समर्थकों को फ़ांसी पर चढ़ा दिया।
मोदी ने लाल किले से बोलचों के प्रति दिखाई हमदर्दी
2016 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 14 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में कश्मीर में जारी हिंसा के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। वहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त के अपने भाषण में पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत में पाकिस्तानी उत्पीड़न की ओर इशारा करते हुए जवाबी हमला किया था। पीएम ने कहा था कि पिछले कुछ दिनों में बलूचिस्तान, गिलगित, पाक के कब्जे वाले हिस्से के लोगों ने मुझे बहुत-बहुत धन्यवाद दिया है। मेरा आभार व्यक्त किया है। मेरे प्रति सद्भावना जताई है। दूर-दूर बैठे लोग हैं। जिस धरती को मैंने देखा नहीं, जहां के लोगों से कभी मुलाकात नहीं हुई, वे प्रधानमंत्री का आदर करते हैं तो ये मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों का सम्मान है। मैं गिलगित, बलूचिस्तान और पाक के कब्जे वाले कश्मीर के लोगों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।
एक और बंटवारे से रूबरू होगा पाकिस्तान
भारत पिछले 15,000 वर्षों से अस्तित्व में है। अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान सभी भारत के हिस्से थे। 'अखंड भारत' कहने का अर्थ यही है। भारत ने लंबे समय तक इस बात का ख्याल रखा कि वह अन्य देशों के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा। यही कारण है कि भारत ने कभी इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर बलूचिस्तान का मामला नहीं उठाया, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान कश्मीर के मामले को लगातार भड़काता रहा। आज बलूचिस्तान में हजारों बलूच लड़ाके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ रहे हैं। बलूचिस्तान के लोग चाहते हैं कि भारत मामले में दखल दे जिस तरह उसने बांग्लादेश के मामले में किया था। नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान का जिक्र आने के बाद भारत ने अपनी रणनीति बदली है। इससे बलूच लोगों में भी एक बार फिर आशा जगी है कि वो भारत की मदद से अपना हक पा सकेंगे और आने वाले दिनों में पाकिस्तान को एक और बंटवारे से रूबरू होना पड़ेगा।
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