सियासत के पुराने दोस्त दुश्मन बन गए, केजरीवाल कांग्रेस उम्मीदवारों को दिल्ली में जिताने पंजाब में हराने की अपील कर रहे

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । May 24 2024 3:27PM

बीजेपी के नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल ये पंजाब के चुनावी रण के चार बड़े चेहरे हैं। बीजेपी और अकाली दल सियासत के पुराने दोस्त लेकिन नए दुश्मन हैं। इससे ठीक उलट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की बाकी राज्यों में दोस्ती तो पंजाब में दुश्मनी है।

पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर चार कोनीय मुकाबला है। इस सूबे की लड़ाई इस बार इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि कभी एक दूसरे की दोस्त बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल आमने समाने है। इसी लोकसभा चुनाव में हरियाणा, दिल्ली, गुजरात में बीजेपी के खिलाफ एक साथ लड़ने वाली कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आमने सामने है। वैसे चुनाव तो बसपा भी पंजाब की सभी 13 सीटों पर लड़ रही है। लेकिन चर्चा में बीजेपी, कांग्रेस, आप और अकाली दल ही है। बीजेपी के नरेंद्र मोदी, कांग्रेस के राहुल गांधी, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल ये पंजाब के चुनावी रण के चार बड़े चेहरे हैं। बीजेपी और अकाली दल सियासत के पुराने दोस्त लेकिन नए दुश्मन हैं। इससे ठीक उलट कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की बाकी राज्यों में दोस्ती तो पंजाब में दुश्मनी है। 

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दोस्त बने दुश्मन 

इस बार पंजाब की सियासी लड़ाई अजब है। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कांग्रेस उम्मीदवारों को जिताने की अपील कर रहे हैं। वहीं पंजाब में हराने की। राहुल गांधी भी आप के उम्मीदवारों के पक्ष में वोट डालने की बात कह चुके हैं। लेकिन जब वो पंजाब में रैली करेंगे तो यकीनी तौर पर दिल्ली वाले दोस्त अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हराने की अपील करेंगे। 2024 के इस लोकसभा 

सभी 13 सीटें जिताने की अपील

पंजाब में आम आदमी पार्टी का चेहर अरविंद केजरीवाल ही थे। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री भगवंत मान सूबे में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हैं। ऐसे में 2024 का लोकसभा चुनाव उनका ही सबसे बड़ा इम्तिहान है। वो पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद अरविंद केजरीवाल भी अमृतसर में रोड शो कर चुके हैं। तब उन्होंने पंजाब के लोगों से सूबे की सभी 13 सीटें पार्टी के खाते में डालने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि खूब मेहनत करनी है और पंजाब की 13 की 13 लोकसभा सीटें देनी है। 

कांग्रेस पंजाब में शराब घोटाले में नामजद बता रही

पंजाब के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि केजरीवाल शराब के बहुत बड़े घोटाले में नामजद हैं और सिर्फ 15 दिनों के लिए जेल से बाहर आए हैं। ऐसे इंसान पर आप क्या विश्वास कर सकते हैं।  जालंधर से कांग्रेस पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार चन्नी ने कहा कि केजरीवाल का पंजाब में स्वागत नहीं किया जाना चाहिए। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि केजरीवाल शराब घोटाले में शामिल हैं और सिर्फ 15 दिनों से जेल से बाहर हैं, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। दिल्ली में बड़ा शराब घोटाला हुआ और पंजाब में भी ऐसा ही हुआ। यहां कोई कार्रवाई नहीं की गई। हम इसकी जांच की मांग करते हैं। उनका स्वागत करने की बजाय उनका विरोध किया जाना चाहिए। उत्तर भारत में अपना डब्बा गोल करवाने वाली कांग्रेस के लिए पंजाब ही वो राज्य था जहां उसे आठ सीटें मिली थी। ये और बात है कि उस वक्त पार्टी का चेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह हुआ करते थे, जो आज की तारीख में बीजेपी के साथ हैं। 

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पंजा और झांड़ू पार्टियां 2 दुकान 1 

पटियाला से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रचार अभियान का आगाज कर दिया है। दूसरे दिन जालंधर और गुरादसपुर में भी मोदी नजर आएंगे। पंजाब में 1996 के बाद पहली बार बीजेपी अकेले चुनाव लड़ रही है। ऐसे में उसके पास खोने के लिए पिछले चुनाव में मिली केवल 2 सीटें हैं। पाने के लिए सभी 13 सीटें हैं। पटियाला की रैली में प्रधानमंत्री का आप और कांग्रेस पर तीखा प्रहार देखने को मिला। उन्होंने कहा कि पंजाब भी अच्छे से जानता है कि उसे अपना वोट देकर बेकार नहीं करना है। दिल्ली की कट्टर भ्रष्टाचारी पार्टी और सिख दंगे के दोषी पार्टी आमने सामने लड़ने का नाटक कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यही है कि पंजा और झांड़ू पार्टियां दो है, लेकिन दुकान एक ही है। दिल्ली में एक दूसरे को कंधे पर उठाकर नाच रहे हैं। बता दें कि पटियाला में इस बार बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर को उम्मीदवार बनाया है। 2019 में वो कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर संसद पहुंची थी। 

हाई प्रोफाइल सीट पर चौतरफा मुकाबला

पटियाला से परनीत कौर के मुकाबले कांग्रेस से धर्मबीर गांधी, आप से बलबीर सिंह और अकाली दल से एनके शर्मा मैदान में हैं। 

लुधायान में कांग्रेस की तरफ से अमरिंदर सिंह राजा वर्डिंग, बीजेपी से रवनीत सिंह बिट्टू, आप से अशोक पप्पी पराशर और अकाली दल से रणजीत सिंह मैदान में हैं। 

अमृतसर से कांग्रेस के मौजूदा सांसद गुरजीत सिंह औजला का मुकाबला आप के कुलदीप सिंह धालीवाल, बीजेपी के तरणजीत सिंह संधू, अकाली दल के अनिल जोशी से है। 

बठिंडा से अकाली दल ने हरसिमरत कौर को उम्मीदवार बनाया है। उनके खिलाफ खिलाफ बीजेपी ने पूर्व आईएएस परमपाल कौर, कांग्रेस ने जीतमोहिंदर सिंह और आप ने गुरमीत सिंह को उतारा है। 

पंजाब का अंकगणित 

पिछले दो लोकसभा चुनाव में पंजाब के अंकगणित पर नजर डालें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन था। बीजेपी को 3 सीटें मिली जिसमें उसने 9% वोट के साथ 2 सीटें जीती। अकली दल ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 26 % वोट लाकर 4 सीटें हासिल की। आम आदमी पार्टी को 13 सीटों में 24 प्रतिशत वोट के साथ 4 सीटें मिली। कांग्रेस के खाते में राज्य की 13 सीटों में 33 % वोट के साथ 3 सीट आई। 2019 में भी बीजेपी को शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन में 3 सीटें मिली। बीजेपी के वोट फीसदी में 1 प्रतिशक का इजाफा होकर 10 % हो गया लेकिन सीटों की संख्या 2 की 2 ही रही। अकाली दल ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 27 फीसदी वोट तो प्राप्त हुए लेकिन सीटें घटकर 2 हो गई। आप ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसके वोट प्रतिशत में भारी गिरावट दर्ज की गई। 7 फीसदी वोट पाकर 1 सीट पर ही संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को 13 सीटों में 40 प्रतिशत वोट के साथ 8 सीटें आईं। 

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सिख वोटर्स का रूझान

एनडीए-I के दौरान, सिख समुदाय ने खुद को भगवा पार्टी से दूर करना शुरू कर दिया क्योंकि उन्हें बड़े बहुसंख्यकवादी खेमे में शामिल होने का डर था। फिर भी, वाजपेयी सरकार के दौरान और उसके बाद अकाली कभी भी भाजपा से अलग नहीं हुए। इसके बजाय, उन्होंने 2008 में एक सिख प्रधानमंत्री के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया। लेकिन वर्तमान अकाली, जिन्होंने स्वयं समुदाय का विश्वास खो दिया है, जैसा कि 2017 और उसके बाद पंजाब के हर चुनाव में दिखाई देता है, अब राजनीतिक स्तर पर भाजपा के साथ नहीं हैं। दिसंबर में शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल अपने पूर्व गठबंधन सहयोगी को असली टुकड़े-टुकड़े गैंग कहने की हद तक चले गए। पंजाब में बीजेपी की कोई बड़ी हिस्सेदारी नहीं है। शीर्ष नेतृत्व पार्टी अध्यक्ष से लेकर स्वयं प्रधान मंत्री तक  सिखों के साथ टूटे संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन समस्या, व्यापक बहुसंख्यकवादी नीति के अलावा, मुख्य रूप से बेलगाम ट्रोल और प्रचारकों के साथ भी है। ऐसे में पंजाब के सिख इस बार किसके साथ जाएंगे। किसान अपना वोट किसे देंगे। हिंदुओ का वोट किसे मिलेगा, अनुसूचित जाति के वोटर किसे वोट करेगे। सारे सवालों के जवाब 4 जून को मिलेंगे। 

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