महिलाओं को बराबरी देने वाले परमानेंट कमीशन को आसान भाषा में समझिए

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अभिनय आकाश । Feb 20 2020 3:38PM

अदालत ने महिलाओं के लिए सेना में परमानेंट कमीशन की राह खोल दी है। भारत में महिलाएं सेना में शामिल तो हो सकती थी, लेकिन अब तक उन्हें परमानेंट कमीशन नहीं मिलता था। इसके चलते उन्हें 10 या 14 बरस बाद रिटायर कर दिया जाता था। उनके लिए सेना के शीर्ष पदों पर पहुंचने के मौके कम हो जाते थे।

गणतंत्र दिवस के दिन जब राजपथ पर कैप्टन तान्या शेरगिल ने थल सेना की टुकड़ी की अगुवाई की तब इस पल को ऐतिहासिक बताया गया। लेकिन सच्चाई ये है कि अब तक थल सेना में महिलाओं को बराबरी का हक नहीं है। महिलाओं को ये हक सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में सेवा कर रही सभी महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन मिलेगा। थल सेना में महिला अधिकारियों का सलेक्शन शार्ट सर्विस कमीशन से होता रहा है औऱ 14 साल के बाद महिला अधिकारियों को रिटायर कर दिया जाता है। आज हम महिलाओं के न्याय से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का एमआरआई स्कैन करेंगे साथ ही आपको आसान भाषा में बताएंगे कि क्या होता है सेना में स्थायी कमीशन का मतलब और इससे महिला सैनिकों को क्या-क्या फायदे मिलेंगे।

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अदालत ने महिलाओं के लिए सेना में परमानेंट कमीशन की राह खोल दी है। भारत में महिलाएं सेना में शामिल तो हो सकती थी, लेकिन अब तक उन्हें परमानेंट कमीशन नहीं मिलता था। इसके चलते उन्हें 10 या 14 बरस बाद रिटायर कर दिया जाता था। उनके लिए सेना के शीर्ष पदों पर पहुंचने के मौके कम हो जाते थे। लेकिन अब ये सब बदलने जा रहा है। 

सबसे पहले आपको दो लाइनों में शार्ट सर्विस कमीशन के बारे में बता देते हैं।

क्या है शॉर्ट सर्विस कमीशन

भारतीय सैन्य सेवा में महिला अधिकारियों की शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के माध्यम से भर्ती की जाती है। जिसके बाद वे 14 साल तक सेना में नौकरी कर सकती हैं। इस अवधि के बाद उन्हें रिटायर कर दिया जाता है। हालांकि 20 साल तक नौकरी न कर पाने के कारण रिटायरमेंट के बाद इन्हें पेंशन भी नहीं दी जाती है।

अब बात सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पृष्ठभूमि पर करते हैं। 

परमानेंट कमीशन का आदेश तो दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 में ही दे दिया था। लेकिन केंद्र सरकार इसे लागू करने की बजाए सुप्रीम कोर्ट चली गई। जिसके बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि कैसे केंद्र को दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बावजूद सेना के आठ अंगों में महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन देने का ऐलान करने में पूरे 9 वर्ष लग गए जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आदेश पर किसी भी तरह की रोक नहीं लगाई।

मार्च 2019 में रक्षा मंत्रालय ने एक नया आदेश निकाला जिसके बाद सेना में 10 ऐसे अंग हो गए जिसमें महिलाओं को परमानेंट कमीशन मिल सकता है। 

1. जज एडवोकेट जनरल

2. आर्मी एजुकेशन कोर

3. सिग्नल्स

4. इंजीनियर

5. आर्मी एविएशन

6. आर्मी एयर डिफेंस

7. इलेक्ट्रॉनिक एंड केमिकल इंजीनियर

8. आर्मी सर्विस कोर

9. आर्मी ओर्डिनेंस कोर

10.  इंटेलीजेंस

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इस फैसले में उन महिला अधिकारियों को शामिल नहीं किया गया था जो पहले से सेवा में थीं। इस फैसले में यह शर्त भी जोड़ दी कि इसका फायदा मार्च 2019 के बाद से सर्विस में आने वाली महिला अफसरों को ही मिलेगा। इस तरह वे महिलाएं स्थायी कमीशन पाने से वंचित रह गईं, जिन्होंने इस मसले पर लंबे अरसे तक कानूनी लड़ाई लड़ी थी। अपने हक के लिए लड़ते हुए महिला अधिकारियों को 11 वर्ष बीत गए। इस दौरान कांग्रेस नीत यूपीए सरकार का दौर भी गुजरा और बीजेपी सरकार का भी। लेकिन ये मामला चलता रहा। मई 2019 में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करते हुए कहा कि 14 वर्ष से कम सर्विस वाली महिला अफसरों को ही परमानेंट कमीशन देंगे। 14 से 20 साल तक की सेवा वाली महिला अफसरों को बिना परमानेंट कमीशन के सेवा का मौका दिया जाएगा। 10 साल की सर्विस के बाद उन्हें पेंशन बेनिफिट के साथ रिटायर कर दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की इजाजत दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 में दी थी, फिर 2 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर अपनी मोहर लगा दी थी। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने इस पर अमल नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि उन सभी महिला अफसरों को तीन महीने के अंदर आर्मी में स्थायी कमीशन दिया जाए, जो यह विकल्प चुनना चाहती हैं। इसके लिए मार्च 2019 के बाद सेना से जुड़ने की सरकारी शर्त भी अदालत ने हटा दी।

आर्मी में महिला अफसरों की कुल संख्या 1653 है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बहादुर महिला अफसरों का अपने फैसले में जिक्र भी किया है। कोर्ट ने कहा कि ये महिलाएं कई वीरता पुरस्कार जीत चुकी हैं। अदालत में इन महिलाओं की लिस्ट भी दी गई।

कैप्टन तानिया शेरगिल: ये पहली महिला हैं, जिन्होंने 26 जनवरी 2020 को ऑल मेन कंटिजेंट परेड को लीड किया। 

लेफ्टिनेंट ए. दिव्याः इन्हें ऑफिसर ट्रेनिंग में सम्मानित किया गया था।  

मेजर गोपिका भाटीः मेजर भाटी ने कमांड से लेकर अन्य जगह बखूबी काम किया।  

मेजर गोपिका अजीत सिंह पवार: इन्हें यूएन पीस कीपिंग मेडल से नवाजा गया था।  

मेजर मधुराणा, प्रीति सिंह और अनुजा यादवः इन तीनों को यूएन मेडल दिया गया था। ये यूएन मिलिट्री मेंबर के तौर पर क्वॉलिफाई कर चुकी हैं।  

कैप्टन अश्विनी पवार और कैप्टन शिप्रा मजूमदारः इन दोनों को 2017 में सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। 

ले. कर्नल सोफिया कुरैशी: ये पहली महिला अधिकारी हैं, जिन्होंने इंडियन आर्मी की टुकड़ी का नेतृत्व किया है। कुरैशी 2006 में यूएन के शांति ऑपरेशन में शामिल हुईं। 

ले. कर्नल अनुवंदना जग्गी: ये यूएन के मिलिट्री ऑब्जर्वर टीम में महिला टीम लीडर के तौर पर काम कर चुकी हैं।  

मेजर मधुमिता: पहली महिला ऑफिसर हैं, जिन्हें सेना मेडल (वीरता पुरस्कार) से नवाजा गया। इन्होंने अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकवादियों से जंग लड़ी।  

लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी: इंडिया आर्मी में पहली महिला, जिन्होंने ऑल मेन आर्मी कंटिजेंट को लीड किया है।

परमानेंट कमीशन की परिभाषा, चयन की प्रक्रिया और ट्रेनिंग को भी 3 लाइनों में समझ लीजिए

  • परमानेंट कमीशन के अंतर्गत अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में रह सकता है। 
  • सेना के अधिकारी को स्थायी कमीशन के लिए राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), (इंडियन मिलिट्री अकादमी) IMA या ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी (OTA) में शामिल होना पड़ता है। 
  • चुने हुए कैंडिडेट पढ़ाई और ट्रेनिंग के लिए देहरादून के आईएमए में भेजे जाते हैं।

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कमांड पोस्ट को लेकर भी बड़ा आदेश 

सुप्रीम कोर्ट ने कमांड पोस्ट को लेकर भी बड़ा आदेश दिया। बता दें कि सेना में जिन अंगों में महिलाओं को लिया जाता है, वहीं उन्हें स्टाफ पोस्ट मिलता है न कि कमांड पोस्ट। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी थी कि सेना में ज्यादातर जवान ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं और महिला अधिकारियों से फौजी हुक्म लेना उनके लिए सहज नहीं होगा। यह भी कहा कि महिलाओं की शारीरिक स्थिति और पारिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं। इस दलील को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को कमांड पोस्ट पर न रखना अतार्किक है और समानता के खिलाफ भी। केंद्र सरकार को महिलाओं के प्रति मानसिकता बदलनी होगी और सेना में समानता लानी होगी। कमांड पोस्टिंग का अर्थ है किसी यूनिट, कोर या कमान का नेतृत्व करने वाली पोस्टिंग। 

बहरहाल, महिलाओं ने सेना के दरवाजे अपने लिए खुलने के बाद यह साबित किया है कि सारे काम वे पुरुषों जितनी ही कुशलता से कर सकती हैं। फौजी इस बात को स्वीकार भी कर रहे हैं। उनकी अगली मंजिल कॉम्बैट रोल है। उन्हें इस भूमिका में लाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने अभी सरकार और सेना पर छोड़ दिया है। उम्मीद करें कि महिलाएं जल्द ही इस भूमिका में भी नजर आएंगी। 

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