बिना भारत क्यों पूरी नहीं होती G7 की बैठक? पचास साल में कितना बदला ये संगठन

कनाडा पहुंचने के पहले पीएम मोदी ने साइप्रस में जमकर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की को क्लीयर मैसेज देते नजर आए। मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ ग्रीन लाइन देखने के लिए पहुंचे।
भारत जी7 का सदस्य नहीं है। लेकिन जी7 में भारत का दबदबा कितना बढ़ता जा रहा है ये आज फिर से देखने को मिलेगा। पीएम मोदी लगातार छठी बार जी7 की बैठक में शामिल होंगे। अभी तक जी7 में भारत 11 बार शामिल हो चुका है। भारत को जी7 बैठक में भाग लेने के लिए पहली बार 2003 में न्यौता मिला था। उसके बाद बार बार भारत को आउटरीच कंट्री के रूप में बुलाया गया है। इस बार जब घोषणा हो रही थी कि क्या भारत को बुलाया जाएगा? रिश्तों को लेकर कड़वाहट थी। लेकिन तब वहां पर मौजूद मिनिस्टर्स ने कहा था कि भारत दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश है और अब तो चौथी बड़ी इकोनॉमी हो चुकी है। ऐसे में भारत को साथ लाना बहुत जरूरी है।
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आतंकवाद का साथ देने वाले देशों को क्लीयर मैसेज
कनाडा पहुंचने के पहले पीएम मोदी ने साइप्रस में जमकर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले तुर्की को क्लीयर मैसेज देते नजर आए। मोदी साइप्रस के राष्ट्रपति के साथ ग्रीन लाइन देखने के लिए पहुंचे। ये ग्रीन लाइन वही है जो साइप्रस को तुर्की के अवैध कब्जे वाले हिस्से से अलग करती है। साइप्रस के उस हिस्से को टर्किश साइप्रस कहा जाता है जो 1997 में तुर्की ने कब्जा कर लिया था। इसके बाद ज्वाइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम मोदी ने ईरान और इजरायल से कहा कि वो एक दूसरे पर बमबारी बंद करें। बातचीत के टेबल पर लौटे क्योंकि युद्ध होता है तो इसका असर पूरी दुनिया पर होता है। लेकिन पीएम मोदी की ग्रीन लाइन पर जाकर खड़े होना इस बात का संकेत है जो तमाम देश आतंकवाद और पाकिस्तान का साथ दे रहे थे और इसमें तुर्की भी शामिल है।
मोदी ट्रंप की नहीं होगी मुलाकात
जी7 की बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब ईरान और इजरायल के बीच जंग छिड़ी हुई है। माहौल दुनिया में बहुत गर्माया हुआ है। इस जंग के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति कनाडा से वापस तक लौट गए हैं। इस वजह से पीएम मोदी की ट्रंप से मुलाकात भी नहीं हो पाएगी। लेकिन पीएम मोदी की मुलाकात कनाडा के पीएम मार्के कार्नी के अलावा दुनिया के अन्य बड़े देश केनेताओं से मिलेंगे। इस सम्मेलन में दुनिया के सात बड़े देश शामिल होते हैं। अमेरिका, कनाडा, जापान, फ्रांस, जर्मनी, इटली और ब्रिटेन इससे सदस्य हैं। कनाडा ने इस बार भारत, साउथ अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, तोमरूश कुक आइलैंड, वियतनाम को भी बुलाया है। यूक्रेन को इस बार खास गेस्ट के रूप में बुलाया है।
पीएम मोदी ने तय की अपनी प्राथमिकताएं
कनाडा पहुंचने के साथ ही पीएम मोदी ने अपनी प्राथमिकताएं भी तय कर दी हैं। पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा है कि इस बैठक के दौरान वो दुनिया के अहम मुद्दों पर अपनी राय रखेंगे। ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं पर भी जोर देंगे। पीएम मोदी ने इससे पहले साइप्रस में कहा था कि ये युग युद्ध का नहीं है। इस वक्त पूरी दुनिया में युद्ध की हलचल मची है। चाहे वो रूस-यूक्रेन के बीच की जंग हो या ईरान और इजरायल की लड़ाई है। पीएम मोदी ने पहले ही साफ कर दिया था कि ये युद्ध का दौर नहीं है।
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ऑपरेशन सिंदूर के बाद कनाडा दौरा क्यों खास
पीएम मोदी का कनाडा दौरा इसलिए भी खास है क्योंकि इस दौरे से उम्मीद जगी है कि दोनों देशों के रिश्ते बेहतर होंगे। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से पीएम मोदी मिलेंगे। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी उन राष्ट्राध्यक्षों से सीधे मिलेंगे। जिनको ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत की ओर से बातचीत की गई थी, उन्हें बताया गयाथा कि किसलिए भारत ने ऑपरेशन सिंदूर किया था। पीएम मोदी जब वन टू वन मुलाकात करेंगे तो वो बेहतर ढंग से भारत की बात को समझा सकते हैं। भारत के साथ पूरी दुनिया एक बार फिर नजर आ रही है वो पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चोट होगी। जी-7 समिट के 50 साल पूरे हो गए हैं। इस साल यह समिट कनाडा के कैननास्किस में हो रही है। 7 बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस समिट में कनाडा पहुंच गए। इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य क्या है, इतिहास और वर्तमान में प्रासंगिकता क्या है? आइए जानते हैं।
जी 7 समिट का इस बार का एजेंडा क्या है?
यह समिट ऐसे समय हो रही है, जब दुनिया कई युद्धों में उलझी है। इस बार का एजेंडा यूक्रेन युद्ध के बीच रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने पर केंद्रित रहेगा। वहीं चीन के प्रभुत्व, कारोबारी नीतियों, साइबर खतरों से निपटने के उपायों पर जी7 के विकसित देश जोर देंगे। एआई और नई तकनीकों का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई मजबूत नियमन ढांचा नहीं है, इसके निर्माण और सहयोग के अवसरों पर चर्चा होगी। इसके अलावा आंतरिक व्यापार व जलवायु वैश्विक जलवायु संकट भी इस सम्मेलन में प्रमुख मुद्दा रहेगा।
जी 7 कब बना, इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?
1975 में फ्रांस के रामबुई में जी-7 की शुरुआत हुई। ये वो दौर था, जब पश्चिमी देशों की तूती बोलती थी। अमेरिका व यूरोप के देश तेल संकट, महंगाई और मंदी से जूझ रहे थे। शीत युद्ध के दौर में आर्थिक संकटों से निपटने व आपसी सहयोग को मजबूत करने के लिए जी 7 का गठन हुआ। इससे पहले यह जी-6 कहा जाता था। बाद में कनाडा भी शामिल हो गया।
पचास साल में कितना बदला जी 7 संगठन ?
गठन के शुरुआती दशकों में जी दुनिया का सबसे ताकतवर संगठन था। लेकिन 50 वर्षों में वैश्विक शक्ति संरचना बदली। हालांकि वैश्विक जीडीपी में जी7 का हिस्सा 45% से अधिक है। तकनीकी, आर्थिक व रणनीति निर्धारण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लेकिन चीन के नाटकीय उदय, ग्लोबल साउथ में भारत व अन्य देशों की बढ़ती भूमिका व कई धुरियों में बंटी वैश्विक परिस्थितियों ने जी 7 की अहमियत को कम कर दिया है। जी7 में अमेरिका, यूके, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा जैसे विकसित देश शामिल हैं।
दुनिया के अमीर देशों का काम भारत के बिना नहीं चलने वाला
हडसन इंस्टीट्यूट की लेख की मानें तो G7 का प्रभाव घट रहा है,और भारत जैसे देशों को शामिल करना इसे फिर से प्रासंगिक बनाने का एक तरीका हो सकता है। लेख में भारत की हिचकिचाहट को भी रेखांकित किया गया था। भारत एक तटस्थ और स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है और जी7 जैसे पश्चिमी-केंद्रित समूह में शामिल होने से उसकी नॉन-अलाइंज मूवमेंट की नीति प्रभावित हो सकती है। भारत को ग्लोबल साउथ की एक प्रमुख आवाज माना जाता है। जी7 देश, जो मुख्य रूप से विकसित देश हैं।भारत जैसे उभरते देशों को शामिल करके वैश्विक मुद्दों पर व्यापक सहमति बनाना चाहते हैं।
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