Operation Trident में खास था एडमिरल नंदा का रोल, जिन्हें नहीं मिली वो पहचान

SM Nanda
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नौसेना के दिग्गजों के बीच एडमिरल नंदा के नेतृत्व की आज भी प्रशंसा की जाती है। एडमिरल नंदा ने एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान कई परिवर्तनकारी प्रयासों पर जोर दिया था, जिससे भारतीय नौसेना को मजबूती मिली थी। उनकी रणनीतिक कुशलता ऑपरेशन ट्राइडेंट के त्वरित और साहसिक कार्यान्वयन में स्पष्ट थी।

भारतीय नौसेना ने 1971 में हुई जंग में भारतीय नौसेना ने पाकिस्तानी नौसेना पर जीत हासिल की थी। भारतीय नौसेना की इस विजय को 52 वर्षों का समय बीत चुका है। ये दिन काफी खास है, जब ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत भारतीय नौ सेना ने चार दिसंबर 1971 को भारतीय नौसेना ने कराची स्थित नौसैनिक अड्डे पर हमला बोला था।

इसी बीच एडमिरल एसएम नंदा के नेतृत्व में ऑपरेशन ट्राइडेंट पर प्रकाश डाला गया है। ये एक मार्मिक मामला बना हुआ है। इस ऑपरेशन को एडमिरल एसएम नंदा के नेतृत्व में चलाया गया था। भारतीय नौसेना की शानदार सफलता और महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद एडमिरल नंदा के लिए सुयोग्य 'एडमिरल ऑफ द फ्लीट' सम्मान का अभाव देखने को मिलता है। एडमिरल नंदा की दूरदर्शी नजर ही ऑपरेशन ट्राइडेंट के पीछे का मुख्य कारण थी।

नौसेना के दिग्गजों के बीच एडमिरल नंदा के नेतृत्व की आज भी प्रशंसा की जाती है। एडमिरल नंदा ने एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान कई परिवर्तनकारी प्रयासों पर जोर दिया था, जिससे भारतीय नौसेना को मजबूती मिली थी। उनकी रणनीतिक कुशलता ऑपरेशन ट्राइडेंट के त्वरित और साहसिक कार्यान्वयन में स्पष्ट थी। ये एडमिरल नंदा की सोच का ही नतीजा था कि कराची बंदरगाह को सात दिनों तक आग के हवाले कर दिया गया।

फिर भी, जबकि फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और एयर मार्शल अर्जन सिंह को प्रतिष्ठित रैंक प्राप्त हुई, भारतीय नौसेना को एडमिरल नंदा के असाधारण योगदान की स्वीकृति अधिक नहीं मिल सकी है। उन्हें अपने स्तर पर मिलने वाली प्रतिष्ठा का आज भी इंतजार मात्र ही है। विलंबित मान्यता एडमिरल नंदा की विरासत पर छाया डालती है, जो वर्तमान और भविष्य के नौसेना अधिकारियों के लिए मार्गदर्शन के एक स्थायी स्रोत के रूप में काम कर सकती है। 'एडमिरल ऑफ द फ्लीट' सम्मान प्रदान करने से न केवल इस ऐतिहासिक निरीक्षण में सुधार होगा, बल्कि नौसेना बलों के बीच व्यावसायिकता और समर्पण के प्रति प्रतिबद्धता भी प्रेरित होगी।

वर्ष 1970 में नौसेना स्टाफ के प्रमुख के रूप में एडमिरल नंदा के कार्यकाल ने उन्हें चुनौतीपूर्ण समय में नौसेना का नेतृत्व करते हुए देखा, जिसकी परिणति पाकिस्तान के अकारण हमले के बाद ऑपरेशन ट्राइडेंट की त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में हुई। इस हमले ने भारतीय नौसेना की शक्ति का प्रदर्शन किया और 1971 के युद्ध में आगे की सफलताओं के लिए मंच तैयार किया, जिससे बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

ऑपरेशन ट्राइडेंट की सफलता की यादें, जो विस्तार से बताई गई हैं, एडमिरल नंदा की रणनीतिक प्रतिभा और भारतीय नौसेना की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देती हैं। सोवियत संघ के एडमिरल गोर्शकोव और संयुक्त राज्य अमेरिका के एडमिरल जुमवाल्ट सहित अंतरराष्ट्रीय एडमिरलों का समर्थन, एडमिरल नंदा की उपलब्धियों की असाधारण प्रकृति की पुष्टि करता है। 

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