राष्ट्रीय राजनीति में अखिलेश यादव की एंट्री राहुल गांधी के लिए बन सकती है चुनौती, जानें कहां पिछड़ सकते हैं कांग्रेस नेता

akhilesh and Rahul
ANI
अंकित सिंह । Jun 12 2024 7:58PM

भाजपा के गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित समर्थन आधार में सेंध लगाने के लिए, अखिलेश ने पीडीए-पिछड़ा (पिछड़े), दलित और अल्पसाख्यक (मुस्लिम) फॉर्मूले पर काम किया। कांग्रेस के साथ गठबंधन करके उन्होंने मुसलमानों और यादवों के पारंपरिक समर्थन आधार पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली।

उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को झटका देने के बाद, समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय राजनीति में रुख करने का फैसला किया है। यादव ने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया है, जिसे उन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में जीता था, और कन्नौज लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने रहने का फैसला किया है, जहां वह हाल के संसदीय चुनाव में विजयी हुए थे। यादव ने यूपी विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी छोड़ दिया।

2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विजय रथ को रोककर अखिलेश राष्ट्रीय राजनीतिक मंच पर उभरे। उत्तर प्रदेश में झटका, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या 62 से घटकर 2024 के संसदीय चुनाव में 33 हो गई, जिससे भाजपा को लोकसभा में अपने दम पर बहुमत हासिल करने से रोक दिया गया। सपा 37 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और भाजपा और कांग्रेस के बाद देश में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई। पार्टी का वोट शेयर भी बढ़कर 33.38% हो गया, जो 2019 में 18.11% था। इससे पहले, 2004 में जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में सरकार का नेतृत्व कर रहे थे, तब सपा ने 35 सीटें जीती थीं।

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भाजपा के गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित समर्थन आधार में सेंध लगाने के लिए, अखिलेश ने पीडीए-पिछड़ा (पिछड़े), दलित और अल्पसाख्यक (मुस्लिम) फॉर्मूले पर काम किया। कांग्रेस के साथ गठबंधन करके उन्होंने मुसलमानों और यादवों के पारंपरिक समर्थन आधार पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। वरिष्ठ सपा नेता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सपा को मिले जनादेश को राष्ट्रीय संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भाजपा को उसके हिंदुत्व के गढ़ में हराने के लिए सपा ने सभी समुदायों का समर्थन हासिल किया। उन्होंने बीजेपी को झटका देने में इंडिया ब्लॉक की सफलता के लिए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के करिश्माई व्यक्तित्व को जिम्मेदार ठहराया, जिसमें गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें जीतीं।

राहुल को मिलेगी चुनौती

अखिलेश यादव अगर राष्ट्रीय राजनीति की ओर अपना रुख कर रहे हैं तो इससे राहुल गांधी के लिए कई चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी में कांग्रेस के लिए बिग ब्रदर की भूमिका में समाजवादी पार्टी है। समाजवादी पार्टी की ही वजह से यूपी में कांग्रेस को सफलता मिली है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की राजनीति में राहुल से पहले अखिलेश की पकड़ देखने को मिलेगी। अखिलेश ने इंडिया गठबंधन को लेकर भी कई परिपक्व फैसले भी लिए हैं। कांग्रेस के साथ गठबंधन करना और सीटों की सौदेबाजी इसी कड़ी का एक हिस्सा है जहां अखिलेश यादव ने अपनी चतुराई दिखाई है।

यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन में मुख्य भूमिका राहुल से ज्यादा प्रियंका गांधी की रही है। ऐसे में यूपी की सफलता का श्रेय ज्यादातर अखिलेश यादव को ही जा रहा है। राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेता के तौर पर देश के सभी हिस्सों में लोकप्रिय है। जबकि अखिलेश यादव गठबंधन के सहयोगियों के साथ अच्छे रिश्ते रखते हैं। ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं से अखिलेश यादव के बेहद आत्मीय संबंध है। ऐसा राहुल गांधी के केस में देखने को नहीं मिलता है। इससे कहीं ना कहीं राहुल गांधी की बारगेनिंग पावर गठबंधन के सहयोगियों के साथ कम हो जाती है। 

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ममता और स्टालिन अखिलेश यादव के बातों को महत्व देते हैं। इसलिए गठबंधन के सहयोगियों में उनका महत्व भी बड़ा है। इसके अलावा संसद में राहुल गांधी के साथ-साथ अखिलेश पर भी सभी की निगाहें रहेंगी। अखिलेश भी राहुल गांधी की तरह युवा नेता है। वह ओबीसी के बड़े चेहरे के तौर पर उभरे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्हें सरकार चलाने का अनुभव है। हिंदी भाषी राज्यों में उनकी पकड़ भी मजबूत है। ऐसे में इस मामले में भी वह राहुल गांधी पर भारी पड़ सकते हैं। 

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