Matrubhoomi: कौन हैं Father of Indian Navy ? जिनसे कांपते थे विदेशी आक्रांता, ऐसे बनाई थी नौसेना

Father of Indian Navy
प्रतिरूप फोटो

छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में मजबूत मराठा नौसेना ने कई विदेशी ताकतों से भारतीय जल क्षेत्र की हिफाजत की थी। उस वक्त छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना हथियारों और तोपों से लैस थी और दुश्मनों पर त्वरित प्रहार करने के लिए जानी जाती थी। 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने नौसेना का स्थापित करने का काम शुरू किया था।

आजादी के 75 सालों में भारतीयों ने बहुत कुछ देखा और जिया है। लेकिन इसके पीछे के संघर्ष की दास्तां बहुत पुरानी है। बहुत से सूरवीरों ने इस धरा की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दी है। पहले सूरवीरों ने, आजादी के परवानों ने दमनकारियों और क्रूरनीतियों वाले शासकों से इस धरा की रक्षा में अपना खून बहाया तो अब हिन्दुस्तान ही रक्षा में तैनात सूरवीर जिन्हें आज के हिन्दुस्तान में सैनिक कहा जाता है वो दुर्गम चोटियों, बर्फीले रास्तों समेत इत्यादि स्थानों से वतन की रक्षा करते हैं। 

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ऐसे में हम बात करेंगे भारत की तीन प्रमुख सेनाओं में से एक नौसेना की। नौसेना ने कई महत्वपूर्ण मौकों पर अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए हैं। इसको लेकर कई फिल्में भी बनी हैं, जिनमें 'द गाजी अटैक' भी शामिल है।

कहानी उस वक्त की है जब भारतीय नौसेना ने पहले अंडरवाटर सबमरीन ऑपरेशन में पाकिस्तानी दुश्मन को नेस्तनाबूत कर दिया था। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना के आईएनएस राजपूत पनडुब्बी ने पाकिस्तान के पीएनएस गाज़ी को तबाह कर दिया था। ऐसे कई महत्वपूर्ण मिशन को भारतीय नौसेना ने अंजाम दिया था लेकिन क्या आप लोगों को पता है Father of Indian Navy किसे कहा जाता है।

कौन हैं नौसेना के पितामह ?

तो सुनिए आज हम आपको Father of Indian Navy की कहानी बताने जा रहे हैं। बात है 17वीं शताब्दी की, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में मजबूत मराठा नौसेना ने कई विदेशी ताकतों से भारतीय जल क्षेत्र की हिफाजत की थी। उस वक्त छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना हथियारों और तोपों से लैस थी और दुश्मनों पर त्वरित प्रहार करने के लिए जानी जाती थी।

साल 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने नौसेना का स्थापित करने का काम शुरू किया था। उन्होंने मजबूत इच्छा शक्ति के साथ इसकी आधारशिला रखी थी। उस वक्त अरब, पुर्तगाली, ब्रिटिश और समुद्री लुटेरे कोंकण और गोवा के समंदर के रास्ते हिन्दुस्तान पर घुसने की कोशिश करना चाहते थे लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने समदंर की रक्षा के लिए नौसेना की ही स्थापना कर दी थी। 

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इसके लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने बकायदा भिवंडी, कल्‍याण और पनवेल में हथियारों से लैस 20 जहाज का निर्माण करवाया था। इसके निर्माण में तकरीबन एक साल का समय लगा था। इतिहास के पन्नों को पलटे तो छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासन में रहे कृष्‍णजी अनंत सभासद ने बताया था कि शिवाजी महाराज की फ्लीट में दो स्‍क्‍वाड्रन थीं। हर स्‍क्‍वाड्रन में 200 जहाज थे और सब के सब अलग-अलग तरह के थे।

सिंधुदुर्ग किला है खास

शिवाजी महाराज ने जलमार्ग की सुरक्षा के लिए कई नौसैनिक अड्डा का भी निर्माण कराया था। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण और मजबूत सिंधुदुर्ग किला माना जाता है, जो महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में पश्चिमी तट से दूर मालवन शहर के तट पर अरब सागर में खुरते बेट नामक एक द्वीप में स्थित है। 48 एकड़ में फैले इस किले का निर्माण साल 1664 में हिरोजी इंदुलकर की देखरेख में किया गया था।

इस किले को विदेशी आक्रांताओं, ब्रिटिश हुकूमतों इत्यादि के हमलों से बचाने के लिए काफी मजबूत बनाया गया था, जिसकी वजह से निर्माण में 3 साल का समय लगा था। निर्माण के दौरान ढलाई में 4000 पाउंड से अधिक सीसा का उपयोग किया गया था और नींव के पत्थरों को मजबूती से रखा गया था। जबकि प्राचीर 3 किमी लंबी है, दीवारों की ऊंचाई 30 फीट और मोटाई 12 फीट है। शिवाजी महाराज न केवल जमीन पर शक्तिशाली थे बल्कि समंदर में भी उनका दबदबा था। जंजीरा, डच, ब्रिटिश, फ्रेंच और पुर्तगाली ने भी शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित की गई नौसेना का उल्लेख किया है। 

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इन कमांडरों से डरती थी विदेशी ताकतें

शिवाजी महाराज की नौसेना में शामिल इन कुछ कमांडरों से तो विदेशी आक्रांताएं तो कापते थे। मराठा कमांडरों की असधारण वीरता की चारों तरफ चर्चा होती थी। उनमें मेनक भंडारी, सिद्धोजी गुर्जर, कान्होजी आंग्रे, और मेंधाजी भाटकर शामिल है। जिन्होंने पुर्तगाली और ब्रिटिश जहाजों को तबाह किया और हजारों दुश्मन नाविकों को मार डाला। शिवाजी महाराज की नौसेना में कई मुस्लिम सैनिक भी थे। जिनमें इब्राहीम और दौलत खान सबसे ज्यादा खास थे। दोनों ही अफ्रीकी मूल के थे। आज की आधुनिक नौसेना वही पुरानी शिवाजी महाराज की नौसेना है, जिसने दुश्मनों को छठी का दूध याद दिलाया था।

भारतीय समंदर का इतिहास हजारों साल पुराना है, इसका जिक्र ऋग्वेद में भी किया गया है। पुरातन इतिहास और पुराणों में जल के देवता वरुण का जिक्र होता है।

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