बद्रिकाश्रम शंकराचार्य का तीन माह में चुनाव किया जाएः हाईकोर्ट
![Badrikashram Shankaracharyas election to be held in three months: High Court Badrikashram Shankaracharyas election to be held in three months: High Court](https://images.prabhasakshi.com/2017/9/_650x_2017092217211601.jpg)
अदालत ने अखिल भारत काशी विद्वत परिषद को पंडितों, विद्वानों और तीन अन्य पीठों के शंकराचार्यों की मदद से तीन महीने के भीतर ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य का चयन करने निर्देश दिया।
इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य का पद रिक्त माना जाये। अदालत ने अखिल भारत काशी विद्वत परिषद को पंडितों, विद्वानों और तीन अन्य पीठों के शंकराचार्यों की मदद से तीन महीने के भीतर ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य का चयन करने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति के.जे. ठाकर की पीठ ने अगला चयन होने तक शंकराचार्य कार्यालय के संबंध में यथास्थिति बरकरार रखने का भी निर्देश दिया है। साथ ही पीठ ने निचली अदालत के फैसले के उस भाग को बरकरार रखा है जिसमें स्वामी वासुदेवानंद को शंकराचार्य के चावर, छत्र और सिंहासन का इस्तेमाल करने से रोक दिया गया था।
अदालत ने कहा कि पट्टाभिषेक के समय स्वामी वासुदेवानंद दंडी संन्यासी नहीं थे, इसलिए उन्हें शंकराचार्य के पद के लिए अयोग्य करार दिया गया। अदालत ने यह भी कहा कि पट्टाभिषेक के समय शंकराचार्य का पद रिक्त नहीं था, इसलिए स्वामी स्वरूपानंद का भी पट्टाभिषेक गलत और अवैध था। अदालत ने यह मानते हुए कि आदि शंकराचार्य द्वारा केवल चार पीठों की स्थापना की गई थी, वर्ष 1941 में अपनाई गई प्रक्रिया के मुताबिक ही शंकराचार्य का चयन करने का निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है कि स्वामी वासुदेवानंद ने निचली अदालत के 5 मई के निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। निचली अदालत ने अपने फैसले में ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम पीठ के शंकराचार्य पद पर उनका दावा अवैध करार दिया था। अदालत ने यह आदेश द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा 1989 में दायर एक याचिका पर दिया था। वर्ष 1973 से बद्रीनाथ धाम का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आरोप लगाया था कि स्वामी वासुदेवानंद फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपना दावा पेश करते रहे हैं और वह एक दंडी संन्यासी होने के पात्र नहीं हैं क्योंकि वह नौकरी में रहे हैं और 1989 से वेतन लेते रहे हैं।
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