भाजपा ने मप्पिला आंदोलन की तुलना तालिबान से की

Bjp compares mappila rebellion to taliban

औपनिवेशिक भारत में दो बड़े किसान आंदोलन हुए थे। मालाबार विद्रोह, जिसे केरल के मप्पिला आंदोलन और बंगाल के टिटुमिर संघर्ष के रूप में भी जाना जाता है।

औपनिवेशिक भारत में दो बड़े किसान आंदोलन हुए थे। मालाबार विद्रोह, जिसे केरल के मप्पिला आंदोलन और बंगाल के टिटुमिर संघर्ष के रूप में भी जाना जाता है। संयोग से दोनों आंदोलनों के नेता मुसलमान थे। मालाबार विद्रोह 1921 में ब्रिटिश अधिकारियों और उनके हिंदू सहयोगियों के खिलाफ मप्पिला मुसलमानों ने किया था।

ऐतिहासिक शोध हमें बताते हैं कि दोनों विद्रोह ब्रिटिश और उनके वफादार जमींदारों के खिलाफ थे, ये विद्रोह किया था, गरीब किसानों ने जो उनके अधीन थे और इन जमींदारों के दमन और यातना के शिकार थे। शोध पत्र और रिपोर्ट जमींदारों के क्रूर चरित्र के बारे में बताते हैं।

कुछ मामलों में पीड़ितों को भी मार दिया गया था। सूखे और बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होने के बावजूद गरीब किसानों को भूमि लगान का भुगतान करना पड़ता था। किराए का भुगतान करने के लिए वे साहूकारों से उधार लेते थे। हालांकि कुछ नेक दिल, अच्छे और विचारशील जमींदार भी थे, जो किसानों के साथ इंसान जैसा व्यवहार करते थे।

आरएसएस अब इन जमींदारों की तारीफ कर रही है और उन्हें किसानों के हितैषी संरक्षक के रूप में पेश किया है। ऐतिहासिक तथ्यों के ठीक विपरीत, उन्होंने किसान संघर्षों को हिंदू जमींदारों पर मुस्लिम हमले के रूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। आरएसएस के वरिष्ठ कार्यकर्ता और भाजपा के पूर्व महासचिव राम माधव ने 1921 के मप्पिला विद्रोह को 'भारत में तालिबान मानसिकता की पहली अभिव्यक्ति' कहा है। जाहिर है वह इस संघर्ष को आतंकवादी आंदोलन के तौर पर देखते हैं।

 दरअसल इस आंदोलन को दक्षिणी भारत में पहले राष्ट्रवादी विद्रोहों में से एक माना जाता है। इसे किसान विद्रोह के रूप में वर्णित किया गया है। 1971 में तत्कालीन केरल सरकार ने विद्रोह में भाग लेने वालों को स्वतंत्रता सेनानियों की श्रेणी में शामिल किया था। भाजपा इस नरसंहार को स्वतंत्रता संग्राम के रूप में महिमामंडित करने के खिलाफ है और उन्हें पेंशन देने का विरोध करती है।

1792 में मालाबार ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। तब तक मप्पिला जो कभी एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय था, गरीबी में सिमट गया था क्योंकि अंग्रेजों और पुर्तगालियों ने समुद्री वाणिज्य पर नियंत्रण कर लिया था। अंग्रेजों के अधीन मालाबार के जमींदार हिंदू थे।

इस बीच भारतीय जनता पार्टी के विरोध के बाद रेलवे ने केरल के मलप्पुरम के तिरूर शहर के स्टेशन से 1921 के मप्पिला विद्रोह की एक पेंटिंग को हटा दिया है। अक्टूबर 2017 में भाजपा के राज्य प्रमुख कुम्मनम राजशेखरन ने कहा था कि विद्रोह का जश्न नहीं मनाया जाना चाहिए। भाजपा की राय है कि स्वतंत्रता संग्राम के हिस्से के रूप में हिंदुओं के नरसंहार को चित्रित करना इतिहास के साथ-साथ केरल में बहुसंख्यक समुदाय का अपमान है।

विद्रोह के 100 साल पूरे होने के अवसर पर भाजपा ने दंगों में हिंदू पक्ष को हुए नुकसान को बताते हुए कहा कि मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था और हजारों हिंदूओं को मारा गया था।

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