उत्तराखंड में भाजपा को मिला प्रचंड बहुमत, सबसे बड़ी जीत

[email protected] । Mar 11 2017 8:15PM

उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में जबरदस्त कामयाबी हासिल करते हुए भाजपा ने आज 69 में से 56 सीटें अपनी झोली में डाल लीं और तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता अपने नाम कर ली।

देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में जबरदस्त कामयाबी हासिल करते हुए भाजपा ने आज 69 में से 56 सीटें अपनी झोली में डाल लीं और तीन चौथाई से ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता अपने नाम कर ली। भाजपा की यह सफलता प्रदेश के इतिहास में किसी भी राजनीतिक दल को अब तक मिली सबसे बड़ी कामयाबी है। प्रदेश में कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से एक, चंपावत जिले की लोहाघाट सीट, पर आठ ईवीएम खराब होने के कारण मतगणना पूरी नहीं हो सकी और उसका नतीजा नहीं आ सका।

यहां निर्वाचन कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि उन्होंने मामले से चुनाव आयोग को सूचित कर दिया है। मतगणना का काम रूकने से पहले लोहाघाट से भाजपा प्रत्याशी पूरन सिंह फर्त्याल कांग्रेस के प्रत्याशी से करीब 450 मतों से आगे चल रहे थे। प्रदेश में चली मोदी लहर में सत्ताधारी कांगेस के बड़े-बड़े किले ढह गये और मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित कई कैबिनेट मंत्रियों को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा। प्रदेश में कांग्रेस महज 11 सीटों तक सिमट गयी जबकि दो सीटें निर्दलीयों के हाथ भी लगीं। पिछले तीन चुनावों में प्रदेश के मैदानी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन करने वाली बसपा इस बार अपना खाता भी नहीं खोल सकी।

हालांकि, भाजपा के पक्ष में चली जबरदस्त आंधी का लाभ इसके प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को नहीं मिला और वह रानीखेत में कांग्रेस के करन सिंह माहरा से 4981 मतों से पराजित हो गये। रावत हरिद्वार जिले की हरिद्वार ग्रामीण और उधमसिंह नगर जिले की किच्छा, दोनों विधानसभा क्षेत्रों से पराजित हो गये। जहां हरिद्वार ग्रामीण में उन्हें भाजपा के यतीश्वरानंद ने 12,000 से ज्यादा मतों से शिकस्त दी। वहीं, किच्छा में वह 2127 मतों से भाजपा के राजेश शुक्ला से हार गये। रावत के अलावा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी सहसपुर सीट से चुनाव हार गये। रावत कैबिनेट के कई मंत्री, सुरेंद्र सिंह नेगी, दिनेश अग्रवाल, मंत्री प्रसाद नैथानी, दिनेश धनै, हरीश चंद्र दुर्गापाल, नवप्रभात राजेंद्र सिंह भंडारी भी चुनाव हार गये। हालांकि, रावत कैबिनेट में नम्बर दो का स्थान रखने वाली इंदिरा हृदयेश (हल्द्वानी) और प्रीतम सिंह (चकराता) अपना दुर्ग बचाने में कामयाब रहे।

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