कोरोना के ठीक हो चुके मरीजों का बिक रहा खून, डार्क वेब पर हो रही वैक्सीन की बात

blood plasma

अगर्था (Agartha) नाम की एक डार्क वेब मार्केट पर कोरोना वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए ठीक हो चुके मरीजों का प्लाज्मा लिस्टेड किया गया है।

चीन के वुहान शहर से शुरू हुए कोरोना वायरस संक्रमण की मार विश्व का लगभग एक देश झेल रहा है। इस बीच डार्क वेब को लेकर कुछ ऐसी जानकारियां सामने आईं हैं जो पहले कभी देखी या सुनी नहीं गई थी। बता दें कि डार्क वेब में कोरोना वायरस बीमारी से जंग जीत चुके लोगों का प्लाज्मा बिक रहा है। इतना ही नहीं इस वायरस की 'वैक्सीन' तक बेचे जाने की बात हो रही है। दरअसल, चोरी छिपे तरीके से ठीक हो चुके मरीजों का खून इसके जरिए बेचा जा रहा है।

डार्क वेब पर बिक रहा प्लाजा

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक अगर्था (Agartha) नाम की एक डार्क वेब मार्केट पर कोरोना वायरस के खिलाफ रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए ठीक हो चुके मरीजों का प्लाज्मा लिस्टेड किया गया है। सेलर ने शुरुआत में 25 एमएल का पैकेट बनाकर प्लाज्मा बेचा था। जो बाद में 50 एमएल, 100 एमएल, 500 एमएल से होता हुआ एक लीटर तक जा पहुंचा। 

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मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि अब तक सेलर ने 2.036 बिट क्‍वाइंस यानी कि 10 लाख 86 हजार रुपए में एक लीटर खून बेचा है।

क्यो बिक रहा प्लाज्मा ?

शोध में दावा किया गया है कि प्लाज्मा थेरेपी के जरिए कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्तियों को ठीक किया जा सकता है। मिली जानकारी के मुताबिक एक शख्स के शरीर से निकाले गए प्लाजा से दो व्यक्तियों का इलाज किया गया जो ठीक हो गए। जिसकी वजह से प्लाज्मा की डार्क वेब में बिक्री शुरू हो गई।

इसके पीछे वजह यह है कि शोधकर्ताओं को भरोसा है कि कोरोना वायरस नामक महामारी से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा के जरिए संक्रमित व्यक्तियों को ठीक किया जा सकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि ठीक हो चुके मरीज के शरीर में एंटीबॉडी डिवेलप होती है। जो किसी वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने में सहायता करती हैं। 

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ऐसे में ठीक हो चुका व्यक्ति अगर रक्तादान करता है तो उसके खून से प्लाज्मा निकाला जाता है और फिर प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी को जब संक्रमित व्यक्ति में डाला जाता है तो वह बीमार व्यक्ति को ठीक होने में मदद करता है।

यह सब जानते है कि कोरोना वायरस जंग को हजारों लोग जीत चुके हैं और ठीक हो चुके इन लोगों के शरीर में यह एंटीबॉडी मौजूद है। हालांकि जब संक्रमित व्यक्ति टेस्ट में नेगेटिव आ जाए उसके दो हफ्ते बाद वह प्लाज्मा डोनेट कर सकता है।

कोरोना की वैक्‍सीन नहीं बनी

यूं तो डार्क वेब पर मौजूद सेलर अपने दावे निभाते हैं लेकिन वैक्सीन वाला दावा झूठा लगता है। क्योंकि अभी तक कोरोना वायरस की वैक्‍सीन नहीं बनी है। अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक कोविड-19 से जुड़ा हुआ व्यापार मुख्‍य रूप से धोखा है। 

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सेफ्टीफर्स्ट 2020 (safetyfirst2020) नाम का सेलर डार्क वेब पर कोरोना एंटीवायरस डिटेक्टिव डिवाइस की बिक्री कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि अगर्था पर कोरोना वायरस की वैक्‍सीन 0.065 बिटक्‍वाइंस यानी की 34,751 भारतीय रुपए में बेची जा रही है। वहीं पाक्स रोमाना (Pax Romana) नामक साइड पर 20 कैप्सूल का पैकेट बेचा जा रहा है। जिसमें रिकवरी के चांस का दावा किया जा रहा है। इसकी कीमत 43 डॉलर यानी की 3,291 रुपए तय की गई है।

जैसा कि पहले ही आपको बताया गया है कि कोरोना वायरस नामक वैक्सीन अभी तक बना नहीं है। हालांकि वैक्सीन बनाने का प्रयास अभी कई सारे देश कर रहे हैं। इसलिए कोविड-19 से जुड़ा हुआ व्यापार फर्जी है। 

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डीप वेब पर कोरोना को लेकर काफी ज्यादा चर्चा हो रही है और यह भी पूछा जा रहा है कि कोविड-19 से जुड़े हुए सामान को कहा से खरीदना सेफ है। बगैरह-बगैरह। एक वेब शोधकर्ता क्रिस मॉन्‍टीरो के मुताबिक, एक नियम की तरह डार्क वेब की मार्केट्स उन कैटेगरीज पर प्रतिबंध लगा देती है जो हमेशा धोखाधड़ी करते हैं। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि डार्क वेब में कोरोना वायरस से जुड़े हुए विज्ञापनों को हटाया जा सकता है और इसके वेंडर्स पर प्रतिबंध लग सकता है।

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