बंबई उच्च न्यायालय ने कारण बताओ नोटिस पर फैसलों में देरी पर नाखुशी जतायी

Bombay High Court
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कुछ मामलों में तो इन पर 10 वर्षों से कोई फैसला नहीं लिया गया है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारी राय में वित्त मंत्रालय को उन अधिकारियों के संबंध में इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है जो ऐसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं कर रहे हैं और जो असल में जनता द्वारा दिये जा रहे राजस्व से खिलवाड़ कर रहे हैं।

बंबई उच्च न्यायालय ने विभिन्न केंद्रीय अधिनियमों के तहत जारी कारण बताओ नोटिस के निर्णय में देरी पर नाखुशी जतायी और केंद्रीय वित्त मंत्रालय को इस मामले पर गंभीरता से विचार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने 22 अगस्त को दिए अपने फैसले में कहा कि कारण बताओ नोटिस पर प्रभावी तरीके से निर्णय लेने के लिए एक मजबूत रुख अपनाना चाहिए। पीठ शहर की एक कंपनी ‘यूपीएल लिमिटेड’ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसे कथित तौर पर सेवा कर की अदायगी न करने पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के आयुक्त द्वारा अक्टूबर 2010 में जारी कारण बताओ नोटिस रद्द करने का अनुरोध किया गया।

नोटिस रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि यह 13 साल पहले जारी एक कारण बताओ नोटिस पर निर्णय न करने के लिए केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग के आयुक्त के ‘‘उदासीन रवैये का एक और उपयुक्त मामला’’ है। उसने कहा कि वह उन कई याचिकाओं पर न्यायिक संज्ञान लेने के लिए बाध्य हैं जिसमें शिकायत की गयी है कि जिन अधिकारियों के पास केंद्रीय कानूनों के तहत अत्यधिक शक्तियां हैं, उन्होंने अनावश्यक रूप से लंबी अवधि के लिए कारण बताओ नोटिस पर निर्णय नहीं लिया है।

कुछ मामलों में तो इन पर 10 वर्षों से कोई फैसला नहीं लिया गया है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारी राय में वित्त मंत्रालय को उन अधिकारियों के संबंध में इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है जो ऐसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन नहीं कर रहे हैं और जो असल में जनता द्वारा दिये जा रहे राजस्व से खिलवाड़ कर रहे हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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