Shaurya Path: Quad, Indo-Pacific Region, Global South, Taiwan पर Brigadier DS Tripathi से बातचीत

भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के समूह ‘क्वाड’ का गठन सिर्फ सामरिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि दुनिया के भले के लिए किया गया है। जहां तक अमेरिका की बात है तो बाइडन प्रशासन अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को पूरी तरह से चीन के खिलाफ नहीं रख रहा है।
नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे क्वाड समूह की, ताइवान के प्रति बढ़ती चीनी आक्रामकता की, हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत की रणनीति की और ग्लोबल साउथ की। इन मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ हमेशा की तरह मौजूद रहे ब्रिगेडियर सेवानिवृत्त श्री डीएस त्रिपाठी जी। पेश हैं इस साक्षात्कार के मुख्य अंश-
प्रश्न-1 क्वाड बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और इस समूह के देशों ने साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए जो करार किये हैं उसे कैसे देखते हैं आप? हम यह भी जानना चाहते हैं कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर बढ़ती वैश्विक चिंताओं के बीच दुनिया क्या रणनीति बना रही है? हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा और न्यूजीलैंड के विदेश मंत्रियों के साथ इस मुद्दे पर चर्चा भी की है। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के समूह ‘क्वाड’ का गठन सिर्फ सामरिक उद्देश्यों के लिए नहीं बल्कि दुनिया के भले के लिए किया गया है। जहां तक अमेरिका की बात है तो बाइडन प्रशासन अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को पूरी तरह से चीन के खिलाफ नहीं रख रहा है। वह हमेशा व्यापारिक साझेदारी को महत्व देता है। इस समय अमेरिका और भारत प्रमुख रक्षा साझेदार हैं और दोनों देशों ने क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी और 6जी नेटवर्क, अंतरिक्ष, सेमीकंडक्टर, बायोटेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर सहयोग बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण तथा उभरती प्रौद्योगिकियों की दिशा में नई पहल की है। इसके अलावा ‘क्वाड’ समूह के देश साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए ‘मशीन लर्निंग’ और संबंधित आधुनिक प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने पर सहमत हो गए हैं। ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के अधिकारियों ने 30-31 जनवरी को नयी दिल्ली में ‘क्वाड सीनियर साइबर ग्रुप’ की बैठक में हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया जो समावेशी और लचीला हो। सदस्य देश दीर्घकालिक रूप में समूह साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए मशीन लर्निंग और संबंधित आधुनिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने तथा ‘कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम’ (सीईआरटी) के लिए सुरक्षित चैनलों की स्थापना करने एवं निजी क्षेत्र के खतरे की जानकारी साझा करने पर सहमत हो गये हैं जोकि बड़ी उपलब्धि है। इन सभी क्षेत्रों में प्रगति से क्वाड सदस्यों की राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा बढ़ेगी और साइबर हमले की घटनाएं कम होंगी तथा इस तरह के खतरों पर प्रतिक्रिया देने की उनकी क्षमता बढ़ेगी। साथ ही ‘मशीन लर्निंग’ अनुसंधान पर निकट सहयोग से नेटवर्क घुसपैठ का बेहतर पता लगाने और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के साइबर जोखिम प्रबंधन में सुधार करने में अधिक आसानी होगी।
जहां तक हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दादागिरी पर लगाम लगाने की बात है तो भारत इस दिशा में तेजी से प्रयास कर रहा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अपने विदेशी समकक्षों के साथ बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होती ही है। हाल ही में विदेश मंत्री के अन्य देशों के दौरों पर निगाह डाल लीजिये या भारत यात्रा पर आये अन्य देशों के विदेश मंत्रियों के साथ उनकी वार्ता को देखिये, हिंद प्रशांत क्षेत्र चर्चा के केंद्र में अवश्य रहा। भारत और न्यूजीलैंड ने हाल ही में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर बढ़ रही वैश्विक चिंताओं के बीच नियम आधारित क्षेत्र के लिए अपनी साझा दूरदृष्टि पर चर्चा की थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और न्यूजीलैंड की उनकी समकक्ष नैनिया महुता ने इस मुद्दे पर हाल ही में मंथन किया था। इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कनाडा की अपनी समकक्ष मेलानी जोली के साथ भी हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर बातचीत की। कनाडा ने माना भी है कि भारत की बढ़ती रणनीतिक, आर्थिक और जनसांख्यिकी महत्ता उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कनाडा के लिए एक अहम साझेदार बनाती है। कनाडा की हिंद-प्रशांत रणनीति में भारत को इस क्षेत्र में एक प्रमुख देश के रूप में सूचीबद्ध किया गया और कहा गया है कि कनाडा, नयी दिल्ली के साथ आर्थिक संबंध बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
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प्रश्न-2 ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं? क्या चीन ताइवान पर सीधा हमला करने की हिमाकत कर सकता है?
उत्तर- चीन ताइवान को डराने के और उस पर दबाव बनाने के सभी प्रयास जरूर करेगा लेकिन वह सीधा हमला करने की कार्रवाई नहीं करेगा। दरअसल चीन ने देख लिया है कि विश्व की बड़ी शक्ति रूस ने यूक्रेन को छोटा समझ कर उसके खिलाफ युद्ध छेड़ दिया लेकिन इस युद्ध में जिस तरह से अमेरिका, पश्चिमी देश, नाटो अथवा यूरोपीय देश यूक्रेन की पूरी मदद कर रहे हैं उससे यह युद्ध खिंचता चला जा रहा है। चीन जानता है कि यदि युद्ध छेड़ दिया जाये तो बीच में लौटने का रास्ता नहीं होता। चीन खुद इस समय अर्थव्यवस्था संबंधी तमाम परेशानियों को झेल रहा है इसीलिए वह ताइवान के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़ेगा। लेकिन शी जिनपिंग अपने भाषणों में अवश्य बड़ी-बड़ी बातें कहते रहेंगे और ताइवान को डराने के लिए अपने लड़ाकू विमान उसके आसमान के पास से गुजारते रहेंगे। चीन यह भी देख रहा है कि ताइवान के मामले में अमेरिका उसे आसानी से मनमानी नहीं करने देगा।
प्रश्न-3 भारत ने बचाव उपकरण, राहत सामग्री, मेडिकल दल के साथ कई विमान भूकंप प्रभावित तुर्किये भेजे...भारत के इस मैत्री अभियान के बाद क्या तुर्किये की सोच में परिवर्तन आयेगा?
उत्तर- तुर्किये से वैचारिक मतभेद होने के बावजूद भारत ने आपदा के समय मानवीय हितों को ही सर्वोपरि रखा और भूकंप प्रभावित तुर्किये और सीरिया में राहत कार्यों के लिए तत्काल अपना हाथ आगे बढ़ाया। कोरोना महामारी के समय भी जब दुनिया के बड़े देश अपनी कोरोना रोधी वैक्सीन और उसके फॉर्मूले को बाकी दुनिया को नहीं दे रहे थे तब भारत के विमान 'वैक्सीन मैत्री' अभियान के जरिये दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संजीवनी पहुँचा रहे थे। विश्व शक्ति होने का दावा भले कई अन्य देश करें लेकिन विश्व कल्याण की भावना रखने वाला देश पूरी दुनिया में एक ही है। भारत का ऑपरेशन दोस्त तुर्किये में लोगों को बड़ा लाभ पहुँचा रहा है। भारत से गये एनडीआरएफ के जवान, डॉक्टर अन्य राहत कर्मी आदि जिस तरह तुर्किये के लोगों का दिल जीत रहे हैं वह दुनिया देख रही है। लेकिन इस सबके बावजूद तुर्किये के वर्तमान राष्ट्रपति के भारत विरोधी रुख में परिवर्तन शायद ही आये। जब तक एर्दोगन तुर्किये के राष्ट्रपति हैं तब तक दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में बड़ा सुधार आने की गुंजाइश नहीं है। लेकिन एक बात जरूर है कि भारत में जिस तरह तुर्किये के लोगों की मदद के लिए लोग राहत सामग्री एकत्रित कर रहे हैं और तुर्किये के लोग जिस तरह भारत से मिली मदद और भारतीय दलों से मिल रही सहायता को सराह रहे हैं, उसने दोनों देशों के स्तर पर जनता से जनता के बीच के संबंधों को मजबूत किया है। संभव है जनता के इस मजबूत संबंध को देखकर एर्दोगन को भी सद्बुद्धि आये।
प्रश्न-4 भारत, फ्रांस, संयुक्त अरब अमीरात ने त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग की घोषणा की है। यह भारत के लिए किन मायनों में हितकारी होगा?
उत्तर- भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने एक त्रिपक्षीय ढांचे के तहत रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक महत्वाकांक्षी रूपरेखा पेश की है। विदेश मंत्री एस जयशंकर, उनकी फ्रांसीसी समकक्ष कैथरीन कोलोना और यूएई के शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच फोन पर बातचीत के दौरान योजना को अंतिम रूप दिया गया। जो संयुक्त बयान सामने आया है वह दर्शा रहा है कि यह स्वीकार किया गया हैं कि रक्षा तीनों देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग का क्षेत्र है। बयान में यह भी कहा गया है कि तीनों पक्षों ने त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सौर और परमाणु ऊर्जा पर ध्यान देने के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में परियोजनाओं को निष्पादित करने पर सहमति जताई।
इसके अलावा, भारत, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात भी खाद्य सुरक्षा और चक्रीय (सर्कुलर) अर्थव्यवस्था में सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमत हुए हैं और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के प्रदूषण और मरुस्थलीकरण जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने की प्रतिबद्धता जताई है। त्रिपक्षीय पहल स्थायी परियोजनाओं पर उनके देशों की विकास एजेंसियों के बीच सहयोग का विस्तार करने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी। यह भी उल्लेखनीय है कि तीनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच पिछले साल 19 सितंबर को त्रिपक्षीय प्रारूप के तहत पहली बार बैठक हुई थी। उस बैठक में, वे आपसी हित के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करने के लिए एक औपचारिक त्रिपक्षीय सहयोग पहल स्थापित करने पर सहमत हुए थे।
तीनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि त्रिपक्षीय पहल सौर और परमाणु ऊर्जा पर ध्यान देने के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग परियोजनाओं को तैयार करने और उनके कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगी। इस उद्देश्य के लिए, तीनों देश स्वच्छ ऊर्जा, पर्यावरण और जैव विविधता पर ठोस परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (आईओआरए) के साथ काम करने की संभावना तलाशेंगे। इन प्रयासों के तहत जी20 की भारत की अध्यक्षता और 2023 में संयुक्त अरब अमीरात द्वारा सीओपी-28 की मेजबानी के तहत त्रिपक्षीय कार्यक्रमों की एक श्रृंखला का आयोजन किया जाएगा। इसके अलावा, तीनों देश संक्रामक रोगों से उभरते खतरों के साथ-साथ भविष्य की महामारियों का मुकाबला करने के उपायों को लेकर भी विचारों का आदान-प्रदान करेंगे। इस संबंध में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), गावी-द वैक्सीन एलायंस और यूनीटेड जैसे बहुपक्षीय संगठनों में सहयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा।
प्रश्न-5 विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है कि जी20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को रखेगा। इसे कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- भारत कभी भी सिर्फ अपने लिए नहीं सोचता वह पूरे विश्व की चिंता करता है। इसलिए जी20 समूह की अध्यक्षता के दौरान भारत से यह उम्मीद की जा रही है कि वह ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं को सबके सामने रखेगा और समकालीन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ध्रुवीकरण के मुद्दे पर आम-सहमति बनाने में सहयोग करेगा। जी20 समूह की भारत की अध्यक्षता के दौरान देशभर में 50 से अधिक शहरों में लगभग 200 बैठकें आयोजित होंगी। इसमें 30 विभिन्न कार्यसमूह वार्ता सत्र आयोजित करेंगे जिनमें शेरपा ट्रैक कार्य समूह, फाइनांस ट्रैक कार्य समूह और सहभागिता समूह के सत्र समेत मंत्रालयी बैठकें शामिल हैं। भारत सरकार का मानना है कि जी20 की अध्यक्षता भारत की उपलब्धियों, क्षमताओं और विविधता को प्रदर्शित करने का एक विशेष अवसर है। इस गौरवपूर्ण अवसर को एक राष्ट्रीय अवसर के रूप में मनाया जा रहा है, स्वाभाविक रूप से इन्हें विभिन्न राज्य सरकारों के परामर्श से आयोजित किया जा रहा है और विभिन्न राजनीतिक दलों को भी तैयारी की प्रक्रिया से जोड़ा गया है।
देखा जाये तो हमारी जी20 समूह की अध्यक्षता के दौरान उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से संबंधित महत्वपूर्ण विचार विमर्श में समावेशी और अनुकूल विकास, टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) संबंधी प्रगति, हरित विकास एवं पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली (मिशन लाइफ), प्रौद्योगिकी परिवर्तन और सार्वजनिक डिजिटल आधारभूत ढांचा, बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार, महिलाओं के नेतृत्व में विकास एवं अंतरराष्ट्रीय शांति और सद्भाव शामिल हैं। जी20 की हमारी अध्यक्षता के दौरान होने वाले विचार-विमर्श के फलस्वरूप इन क्षेत्रों से संबंधित परिणाम सामने आयेंगे।
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