Shaurya Path: Chinese Spy Balloon, Musharraf, Indian Navy और Tibet से जुड़े मुद्दों पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि द वाशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि गुब्बारे से निगरानी के प्रयास के तहत ‘‘जापान, भारत, वियतनाम, ताइवान और फिलीपीन समेत कई देशों और चीन के लिए उभरते रणनीतिक हित वाले क्षेत्रों में सैन्य संपत्तियों संबंधी जानकारी एकत्र की गई है।’’

नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे जासूसी के लिए उड़ रहे चीनी गुब्बारों की, परवेज मुशर्रफ की भारत के प्रति नीति की और सेना-नौसेना की बढ़ती ताकत की। इन मुद्दों पर बातचीत के लिए हमारे साथ हमेशा की तरह मौजूद हैं ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी।

प्रश्न-1. चीन के जासूसी बैलून अमेरिका और ताइवान पहुँच गये। यह सब क्या दर्शाता है। बताया जा रहा है कि चीनी गुब्बारों ने भारत की भी जासूसी की। भारत को चीन की ओर से ऐसी जासूसी के प्रति कैसे सतर्क रहना चाहिए?

उत्तर- गुब्बारे से जासूसी कोई पहली बार नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि सैटेलाइट अत्यधिक ऊँचाई पर होने के कारण उतनी साफ तस्वीरें नहीं भेज सकते जितनी इस जासूसी गुब्बारे से ली जा सकती है। उन्होंने कहा कि चीनी जासूसी गुब्बारे ने अमेरिका के एयर डिफेंस को भेद कर दिखा दिया है कि वह अमेरिका के कितने करीब पहुँच सकता है। उन्होंने कहा कि आज गुब्बारे में जासूसी उपकरण हैं कल को इसमें विस्फोटक भी भेजे जा सकते हैं।

अमेरिका ने अपने संवेदनशील प्रतिष्ठानों के ऊपर मंडरा रहे चीनी निगरानी गुब्बारे को नष्ट कर दिया लेकिन यह बात भी सामने आई है कि अमेरिकी वायु क्षेत्र में चीनी निगरानी गुब्बारों के उड़ने के चार मामले पहले भी सामने आ चुके हैं और अमेरिका में हाल में नष्ट किया गया चीनी गुब्बारा ‘‘कई साल’’ से जारी चीन के बड़े निगरानी कार्यक्रम का हिस्सा था। इसके अलावा इस प्रकार की भी रिपोर्टें हैं कि चीन ने भारत और जापान समेत कई देशों को निशाना बनाकर जासूसी गुब्बारों के एक बेड़े को संचालित किया है। अमेरिकी अधिकारियों ने भारत समेत अपने मित्रों एवं सहयोगियों को चीनी गुब्बारे संबंधी जानकारी से अवगत कराया है। ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने कहा है कि गुब्बारे से निगरानी के प्रयास के तहत ‘‘जापान, भारत, वियतनाम, ताइवान और फिलीपीन समेत कई देशों और चीन के लिए उभरते रणनीतिक हित वाले क्षेत्रों में सैन्य संपत्तियों संबंधी जानकारी एकत्र की गई है।’’ यह रिपोर्ट कई अनाम रक्षा एवं खुफिया अधिकारियों से ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के साक्षात्कार पर आधारित है। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा है कि चीन की पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) वायु सेना द्वारा संचालित इन निगरानी यान को पांच महाद्वीपों में देखा गया है। एक वरिष्ठ रक्षा अधिकारी के हवाले से कहा गया है, ‘‘ये गुब्बारे पीआरसी (चीनी जनवादी गणराज्य) के गुब्बारों के बेड़े का हिस्सा हैं, जिन्हें निगरानी अभियान चलाने के लिए विकसित किया गया है और इन्होंने अन्य देशों की संप्रभुता का उल्लंघन किया है।’’ 

प्रश्न-2. कारगिल युद्ध के सबसे बड़े कारण परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया। भारत-पाकिस्तान संबंधों को खराब करने में मुशर्रफ का कितना हाथ रहा? खुद पाकिस्तान के लिए उनका नेतृत्व कितना खतरनाक रहा?

उत्तर- जहां तक मुशर्रफ के खुद पाकिस्तान के लिए मुश्किलें खड़ी करने की बात है तो आपको बता दें कि अमेरिका में 11 सितम्बर 2001 को हुए हमलों के बाद आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई में साथ देने की पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की अफगान नीति और तालिबान के प्रति उनका नरम रुख उनके देश (पाकिस्तान) के लिए दोधारी तलवार साबित हुआ। मुशर्रफ की इन नीतियों का परिणाम यह हुआ कि चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गये तथा पाकिस्तान में आतंकवादी हमले हुए। पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह और 1999 में करगिल युद्ध के मुख्य सूत्रधार जनरल मुशर्रफ ने 1999 में रक्तहीन सैन्य तख्तापलट के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया और 2008 तक प्रभारी बने रहे। 11 सितम्बर 2001 के हमलों का मुख्य साजिशकर्ता अल-कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन था, जिसे तालिबान अफगानिस्तान में शरण दे रहे थे।

अफगानिस्तान पर आक्रमण मुशर्रफ के लिए अधिक उपयुक्त समय पर नहीं हुआ, क्योंकि उस समय सैन्य तख्तापलट के बाद वह वैधता हासिल करने के लिए अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे थे। लेकिन, तब वह अमेरिका के साथ हो लिये तथा पाकिस्तान के लिए अमेरिकी डॉलर का रास्ता खोल दिया। इस फैसले के दूरगामी परिणाम हुए। पाकिस्तान में चरमपंथी समूह उनके खिलाफ हो गए और न केवल अफगान आतंकवादियों को समर्थन प्रदान किया, बल्कि देश के अंदर हमले भी शुरू कर दिए। अफगानिस्तान के साथ स्थानीय गतिशीलता और सीमा पर सुरक्षा के इंतजाम के अभाव में मुशर्रफ आतंकवादियों को सीमा में प्रवेश से रोक नहीं सके। पश्चिमी देशों ने इस ‘दोहरे खेल’ के लिए उन्हें दोषी ठहराया, लेकिन वे पाकिस्तान और तालिबान के बीच सांठगांठ को तोड़ने में विफल रहे। मुशर्रफ के राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने के लंबे समय बाद, तालिबान अंततः 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में लौट आए।

अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेना के घुसने के लिए पाकिस्तान को एक ट्रांजिट मार्ग के रूप में इस्तेमाल किया गया था और मुशर्रफ ने पाकिस्तान के बीहड़ सीमावर्ती इलाकों में संदिग्ध आतंकवादियों के खिलाफ अमेरिकी सेना द्वारा शुरू किए गए हमलों को सहन किया। मुशर्रफ की अफगान नीति के कारण 2007 में सामने आए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) जैसे आतंकवादी संगठनों के समक्ष पाकिस्तान की दुर्बलता उजागर हुई। उल्लेखनीय है कि टीटीपी को पूरे पाकिस्तान में कई घातक हमलों के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें 2009 में सेना मुख्यालय पर हमला, सैन्य ठिकानों पर हमले और 2008 में इस्लामाबाद में मैरियट होटल में बमबारी शामिल है।

इसके अलावा परवेज मुशर्रफ अपने पीछे एक ‘‘विवादित विरासत’’ छोड़ गए हैं। पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ 1999 के करगिल युद्ध के सूत्रधार थे। हालांकि, बाद में मुशर्रफ को एहसास हुआ कि उन्हें अपने देश की स्थिरता के लिए भारत के साथ अच्छे संबंध रखने की जरूरत है। मुशर्रफ करगिल युद्ध के सूत्रधार थे और उन्हें विश्वास था कि वह करगिल में पूरे पहाड़ी क्षेत्रों पर नियंत्रण करने में सफल होंगे और हमारे संचार तंत्र को प्रभावित कर सकेंगे। लेकिन करगिल युद्ध में हार के बाद मुशर्रफ को अपने देश में आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

प्रश्न-3. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने पिछले महीने कहा था कि उनका देश अपना सबक सीख चुका है और अब भारत के साथ शांति के साथ रहना चाहता है लेकिन अब वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान भारत को पांव तले कुचलने की ताकत रखता है। इस बदलाव को कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीरियों के प्रति समर्थन जताते हुए ‘कश्मीर एकता दिवस’ पर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) की विधानसभा को संबोधित करते हुए जो टिप्पणियां कीं वह उनकी हताशा को दर्शाती हैं। ऐसा लगता है कि शहबाज शरीफ ने स्थानीय लोगों का समर्थन जीतने के लिए इस मौके पर भारत के प्रति जहर उगला क्योंकि इमरान खान की अगुवाई वाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसान ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में उनकी पार्टी को शिकस्त दी थी।

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प्रश्न-4. विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर पहली बार हल्के लड़ाकू विमान के नौसेना प्रारूप को उतारा गया। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- भारत में विकसित हल्के लड़ाकू विमान के नौसेना प्रारूप को विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर उतारा जाना बड़ी कामयाबी है। यह रक्षा विनिर्माण में भारत की आत्मनिर्भरता के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। आईएनएस विक्रांत से एलसीए के उड़ान भरने और उस पर सफलतापूर्वक उतारे जाने से नौसेना के लिए महत्वाकांक्षी दोहरे इंजन वाले ‘डेक’ आधारित लड़ाकू विमान के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के विकास और विनिर्माण का मार्ग प्रशस्त होने वाला है। एलसीए को आईएनएस विक्रांत पर उतारे जाने से स्वदेशी लड़ाकू विमान के साथ स्वदेशी विमानवाहक पोत डिजाइन, विकसित और निर्मित किये जाने की भारत की क्षमता प्रदर्शित हुई है। पिछले साल सितंबर में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रथम स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को नौसेना की सेवा में शामिल किया था। निश्चित ही तीनों सेनाओं की ताकत तेजी से बढ़ाई जा रही है।

प्रश्न-5. एचएएल ने कर्नाटक में जो हेलीकॉप्टर फैक्ट्री लगाई है वह भारत के लिए आने वाले समय में कितनी उपयोगी सिद्ध होगी? हम यह भी जानना चाहते हैं कि पिछले लोकसभा चुनावों के समय कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने एचएएल को बर्बाद कर दिया लेकिन सरकार दावा कर रही है कि एचएएल नई बुलंदियों को छू रहा है। आखिर सच क्या है?

उत्तर- आज, एचएएल की हेलीकॉप्टर फैक्टरी एक गवाही के रूप में खड़ी है, जिसने एचएएल के बारे में फैलाए गए झूठ और गलत सूचना का पर्दाफाश किया है। एचएएल भारत की रणनीतिक संपत्ति है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में जिस फैक्टरी का शिलान्यास किया था, उसका उद्घाटन भी कर दिया है। यह उद्घाटन इस संकल्प के साथ किया गया है कि भारत को अपने रक्षा आयात को कम करना है और आत्मनिर्भर बनना है। इसलिए अब, सैकड़ों रक्षा उपकरण भारत में तैयार किए जाते हैं। पिछले आठ से नौ वर्षों में एयरोस्पेस क्षेत्र में निवेश 2014 से पहले की 15 साल की अवधि में हुए निवेश के आंकड़े से पांच गुना अधिक है। बेंगलुरु मुख्यालय वाली एचएएल ने गुब्बी तालुक में इस फैक्टरी में 20 वर्षों की अवधि में चार लाख करोड़ रुपये से अधिक के कुल कारोबार के साथ 3-15 टन रेंज के 1,000 से अधिक हेलीकॉप्टर का उत्पादन करने की योजना बनाई है। यह फैक्टरी 615 एकड़ में स्थित है। शुरुआत में इसमें लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) का उत्पादन होगा।

प्रश्न-6. चीन में करीब 10 लाख तिब्बती बच्चों को सरकारी बोर्डिंग स्कूलों में डालने की खबर के बाद संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के मामलों से जुड़े विशेषज्ञों ने दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को मिटाने और उन्हें जबरन बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की चीन की नीति को लेकर आगाह किया है। इसे कैसे देखते हैं आप? चीन की रणनीति क्या है?

उत्तर- चीन में करीब 10 लाख तिब्बती बच्चों को सरकारी बोर्डिंग स्कूलों में डालने की खबर के बाद वाकई चिंताजनक है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के मामलों से जुड़े विशेषज्ञों ने दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को मिटाने और उन्हें जबरन बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की चीन की नीति को लेकर आगाह किया है। दरअसल चीन की सरकार की आवासीय विद्यालय प्रणाली के माध्यम से तिब्बती लोगों की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान मिटाने पर केंद्रित नीति से तिब्बती अल्पसंख्यकों के करीब 10 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं। चीन के इन आवासीय विद्यालयों में शैक्षिक सामग्री और वातावरण बहुसंख्यक हान संस्कृति के अनुरूप है, जिसमें पाठ्यपुस्तक की सामग्री लगभग पूरी तरह से हान छात्रों के अनुभवों पर आधारित है। तिब्बती अल्पसंख्यक बच्चों को पारंपरिक या सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक शिक्षा देने के बजाए मन्दारिन चीनी (पटु घुआ भाषा) में ‘‘अनिवार्य शिक्षा’’ पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है। साथ ही पटु घुआ भाषा के सरकारी स्कूल तिब्बती अल्पसंख्यकों की भाषा, इतिहास और संस्कृति की कोई खास पढ़ाई नहीं कराते।

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