दलितों के लिए मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा

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केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज एक अभूतपूर्व निर्णय करते हुए दलित अत्याचार कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने के लिए विधेयक को मंजूरी दे दी। उच्चतम न्यायालय के हालिया फैसले को पलटते हुए कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दी।

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने संबंधी विधेयक के प्रस्ताव आज मंजूरी दी। दलित संगठनों की यह एक प्रमुख मांग है और उन्होंने इस सिलसिले में नौ अगस्त को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। सरकार के एक सूत्र ने बताया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित (अत्याचार रोकथाम) कानून के मूल प्रावधानों को बहाल करने वाला विधेयक संसद में इसी सप्ताह लाया जाएगा।

उच्चतम न्यायालय ने मार्च में अपने फैसले में संरक्षण के उपाय जोड़े थे जिनके बारे में दलित नेताओं और संगठनों का कहना था कि इस ने कानून को कमजोर और शक्तिहीन बना दिया है। भाजपा के सहयोगी और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान ने न्यायालय का आदेश पलटने के लिए एक नया कानून लाने की मांग की थी। सत्तारुढ़ पार्टी से संबंध रखने वाले कई दलित सांसदों और आदिवासी समुदायों ने भी मांग का समर्थन किया था।

उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 20 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा था कि इस अधिनियम के अंतर्गत आरोपियों की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है और प्रथमदृष्टया जांच और संबंधित अधिकारियों की अनुमति के बाद ही कठोर कार्रवाई की जा सकती है। यदि प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो अग्रिम जमानत देने पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है। एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी। 

अदालत के इस आदेश के बाद बड़ा विवाद पैदा हो गया था और दलित संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था जिस दौरान जमकर हिंसा हुई थी। इसके बाद सरकार ने साफ किया था कि वह अदालत में पुनरीक्षण याचिका दाखिल करेगी।

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