कैराना में भी भाजपा के लिये चुनौती होगी विपक्ष की एकजुटता

Challenges to the BJP in Kairana will be the unity of opposition
[email protected] । Apr 29 2018 11:54AM

उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट के लिए होने वाले आगामी उपचुनाव में जातीय समीकरणों के लिहाज से सपा-बसपा का गठबंधन भाजपा के सामने अपनी सीट बरकरार रखने के लिये कड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट के लिए होने वाले आगामी उपचुनाव में जातीय समीकरणों के लिहाज से सपा-बसपा का गठबंधन भाजपा के सामने अपनी सीट बरकरार रखने के लिये कड़ी चुनौती साबित हो सकता है। गोरखपुर और फूलपुर जैसी प्रतिष्‍ठापूर्ण सीटों पर पिछले महीने हुए उपचुनाव में सपा के हाथों मिली पराजय के बाद हुए राज्‍यसभा चुनाव में सपा और बसपा की रणनीति को ध्‍वस्‍त करके भाजपा फिलहाल उत्‍साहित है, लेकिन मुस्लिम और दलित बहुल कैराना सीट पर सपा और बसपा मिलकर उसके सामने फिर कड़ी चुनौती पेश कर सकती हैं। इस लोकसभा सीट के लिये उपचुनाव 28 मई को होगा।

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ और राजनीतिक रूप से खासा दबदबा रखने वाले मुनव्‍वर हसन के परिवार में वोटों के बंटवारे के बीच भाजपा के हुकुम सिंह ने कैराना लोकसभा सीट जीती थी। अब उनके निधन के बाद यह सीट रिक्‍त हुई है। उपचुनाव की तारीख़ का ऐलान होने से पहले ही यहां चुनावी माहौल बनना शुरू हो चुका था। हालांकि सपा के राष्‍ट्रीय सचिव राजेन्‍द्र चौधरी का कहना है कि पार्टी ने अभी कैराना लोकसभा सीट के लिये बसपा के समर्थन के बारे में कोई फैसला नहीं किया है।

बहरहाल, सपा अध्‍यक्ष अखिलेश यादव जिस तरह बसपा के साथ गठबंधन के लिये उसे धन्‍यवाद दे रहे हैं, उसके मद्देनजर माना जा रहा है कि बसपा अगर लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये कैराना लोकसभा उपचुनाव में उतरती है तो सपा गोरखपुर और फूलपुर में मिले समर्थन के बदले उसे इस उपचुनाव में मदद करेगी। हाल में विधान परिषद के चुनाव में बसपा को अपना प्रत्‍याशी जिताने में मदद करके सपा ने इस रिश्‍ते को और मजबूत किया है।

राजनीतिक प्रेक्षकों के मुताबिक, हालांकि बसपा कभी कोई उपचुनाव नहीं लड़ती लेकिन जिस तरह बदले माहौल में बसपा मुखिया मायावती ने अपनी धुर विरोधी रही सपा से हाथ मिलाया है, वैसे ही वह उपचुनाव ना लड़ने के अपने रुख में बदलाव कर ले, तो कोई ताज्‍जुब नहीं होगा। अगर बसपा कैराना उपचुनाव नहीं लड़ती है तो वह सपा का साथ दे सकती है। बसपा मुखिया मायावती ने साफ़ किया है कि हाल के राज्यसभा चुनावों में भाजपा ने चालबाजी के जरिये भले ही जीत हासिल कर ली हो, लेकिन सपा के साथ उनकी दोस्ती आगे भी कायम रहेगी। 

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