सी एम जय राम ठाकुर को दिल्ली से आया बुलावा , हिमाचल में सियासी महौल गरमाया

Jai Ram Thakur

यहां इन दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेकर भी कयासबाजी जारी है। लेकिन इसके साथ ही प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल और आने वाले उपचुनावों को लेकर भी चरचा होने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा नेतृत्व जिस तरीके से प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदल रहा है उससे अगले निशाने के तौर पर हिमाचल प्रदेश की भी चरचा सियासी गलियारों में चल रही है। यही वजह है कि प्रदेश की राजनिति में अचानक गतिविधियां बढ गई हैं।

 शिमला  ।  हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर अभी एक दिन पहले ही दिल्ली से लौटकर आये हैं। लेकिन आज एक बार फिर उन्हें अचानक दिल्ली जाना पडा है। भाजपा आलाकमान की ओर से उन्हें मिले बुलावे को लेकर यहां सियासी महौल गरमा गया है। व तरह तरह की चर्चाएं यहां उनके राजनतिक भविष्य को लेकर चल रही है।

 

 

 

हालांकि यहां  इन दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री को लेकर भी कयासबाजी जारी है। लेकिन इसके साथ ही प्रदेश मंत्रिमंडल में फेरबदल और आने वाले उपचुनावों को लेकर भी चरचा होने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा नेतृत्व जिस तरीके से प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदल रहा है उससे अगले निशाने के तौर पर हिमाचल प्रदेश की भी चरचा सियासी गलियारों में चल रही है। यही वजह है कि प्रदेश की राजनिति में अचानक गतिविधियां बढ गई हैं।   

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दरअसल, हिमाचल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है। लेकिन पार्टी को जो फीडबैक मिला है। उससे साफ हो गया है कि जय राम ठाकुर के सहारे पार्टी की सत्ता में वापिसी नहीं हो सकती है। कयास लगाये जा रहे हैं कि प्रदेश में पार्टी नेतृत्व अगले चुनावों को देखते हुये उत्तराखंड की तर्ज पर नया सीएम बना सकती है। इसके पीछे सबसे बडी वजह सीएम जय राम ठाकुर की लोकप्रियता में लगातार  आ रही कमी को बडी वजह माना जा रहा है। सरकार ने कई ऐसे निर्णय लिये है। जिनका कोई भी प्रभाव पार्टी के वोट बैंक पर नहीं पड पाया।

हालांकि जे पी नडडा के वरदहस्त के चलते जय राम ठाकुर अपने कार्यकाल के साढे तीन साल से अधिक समय को पूरे करने में कामयाब रहे है। लेकिन पार्टी के भीतर उनके विरोधियों ने उन्हें गाहे बगाहे चुनौती दी है।  जय राम ठाकुर ने अपने विरोधियों से टकराने के बजाये बीच का ही रास्ता हर बार चुना। यही वजह रही कि इसी माह होने वाले उपचुनावों को  चुनाव आयोग के जरिये टलवा दिया गया। ताकि सीएम किसी भी जिम्मेवारी से साफ बच निकल सकें।

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लेकिन पिछले दिनों जिस तरीके से केन्द्रिय मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपनी आर्शीवाद यात्रा के जरिये प्रदेश का दौरा किया उससे उन्होंने अपने आपको मजबूत लोकप्रिय नेता के तौर पर पेश किया । सही वजह है कि प्रदेश भाजपा की राजनिति  इन दिनों बदली बदली नजर आ रही है।  अनुराग ठाकुर की प्रदेश में बढ़ती ताकत के साथ  नया राजनैतिक महौल तैयार होने लगा है। माना जा रहा है कि अगले चुनावों को देखते हुये पार्टी नेतृत्व  उत्तराखंड की तर्ज पर हिमाचल में भी नया सीएम बना सकती है । और इसके लिये अनुराग ठाकुर मजबूत दावेदार के रूप में उभरे हैं।

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पिछले विधानसभा चुनावों में अपनी हार की वजह से अनुराग ठाकुर के पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ऐन वक्त पर सीएम की कुर्सी पर बैठने से चूक गये थे हालांकि चुनावों से पहले पार्टी ने उन्हें सीएम के चेहरे के तौर पर पेश कर चुनाव लडा लेकिन सुजानपुर विधानसभा से धूमल चुनाव हारे तो उनके सपने धराशायी हो गये । व उसके बाद जय राम ठाकुर को सीएम की कुर्सी मिली।  हार के बाद से धूमल अपने राजनीतिक पुर्नवास की बाट जोह रहे हैं।  प्रदेश भाजपा में अभी करीब डेढ दर्जन विधायक धूमल समर्थक बताये जाते हैं। 

भले ही सीएम की कुर्सी पर जय राम ठाकुर काबिज हो गये लेकिन उन्हें धूमल खेंमे से लगातार चुनौती मिलती रही है। सीएम जय राम ठाकुर से नाराज नेता व विधायक धूमल खेमें में ताल ठोंकते रहे हैं ।  यही वजह है कि पार्टी के केन्द्रिय नेतृत्व को दखल देकर लगातार शिमला से लेकर धर्मशाला तक बैठकें करनी पडीं ताकि पार्टी को एकजुट रखा जा सके । लेकिन इसके बावजूद कोई परिवर्तन गुटबाजी में नहीं आ पाया।  इसके पीछे हाल ही में निगमो बोर्डों में हुई नियुक्तियों को प्रमुख वजह माना जा रहा है।  माना जा रहा है कि अगी नेताओं में मौजूद सीएम के न्रति कोई नाराजगी न होती तो अनुराग ठाकुर की यात्रा के दौरान सभाओं में इतनी भीड न जुटती। 

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दरअसल, अनुराग ठाकुर की ताजपोशी के बाद हुई आर्शीवाद यात्रा में अनुराग ठाकुर को मिले जन समर्थन से नये राजनैतिक समीकरण उभर कर सामने आये। सीएम जय राम ठाकुर से नाराज नेताओं को अनुराग ठाकुर नये सहारे के तौर पर मिले हैं। यही वजह है कि कई नेता इन दिनों  दिल्ली में अनुराग ठाकुर के दरबार में हाजिरी भरते नजर आ रहे हैं।

गौरतलब है कि  यात्रा के दौरान अनुराग ठाकुर व धूमल के सहयोगी नेताओं का खुलकर शक्ति परीक्षण देखने को मिला था। सही वजह है कि अब पार्टी को लगने लगा है कि जय राम ठाकुर के सहारे विधानसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता है। संकेत साफ हैं कि  आने वाले समय में पार्टी हिमाचल में नेतृत्व परिवर्तन करेगी।  

इससे पहले जय राम ठाकुर अपनी ही पार्टी के नाराज नेताओं से पहले ही चुनौती मिलती रही है। प्रदेश संगठन मंत्री पवन राणा और ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला के बीच तकरार से अच्छा खासा विवाद पैदा हुआ था।  जिससे पार्टी में बगावत का खतरा पैदा होने लगा था।  चूंकि धवाला जहां आरोप लगा रहे थे,कि संगठन मंत्री उनके कामकाज में दखल दे रहे हैं  विधायक रमेश धवाला ने संगठन महामंत्री पवन राणा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि वह हिमाचल में समानांतर सरकार चला रहे हैं। राणा केवल उनके ही नहीं, बल्कि हर विधायक के कामकाज में टांग अड़ा रहे हैं। विधायकों के यहां समानांतर खड़े लोगों को अगली बार टिकट दिलाने के वादे तक कर रहे हैं। धवाला ने चेताया था कि हिमाचल में समानांतर सरकार नहीं चलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को ज्वालामुखी में पार्टी से निकाला, उन्हें ही अधिमान देकर पदाधिकारी बना दिया।

इसी तरह दूसरे चुनाव  क्षेत्रों में भी कई नेता जय राम ठाकुर से मुंह फुंलाये बैठे हैं। 

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