चीन की OBOR परियोजना के जवाब में भारत की नई पहल
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भारत ने पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर दिया है और भूटान, नेपाल, बांग्लादेश एवं म्यांमार के साथ साउथ एशियन सब रिजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन कारिडोर को आगे बढ़ा रहा है।
वन बेल्ट, वन रोड परियोजना समेत भारतीय उपमहाद्वीप में चीन की विस्तारवादी पहल के मद्देनजर भारत ने पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर दिया है और सड़क सम्पर्क की कूटनीति को धार देते हुए भूटान, नेपाल, बांग्लादेश एवं म्यांमार के साथ साउथ एशियन सब रिजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन कारिडोर को आगे बढ़ा रहा है। इंस्टीट्यूट आफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस की डॉ. साम्पा कुंडू के अनुसार, भारत ने कई वर्ष पहले भूटान, नेपाल, बांग्लादेश व म्यांमार को जोड़ने के लिए सासेक (साउथ एशियन सब रिजनल इकोनॉमिक को-ऑपरेशन) कॉरिडोर शुरू किया था। इस मार्ग को पूर्वी एशियाई बाजार के लिए भारत का प्रवेश द्वार माना जाता है।
भारत की योजना इस मार्ग के जरिये न सिर्फ पूर्वी एशियाई बाजारों को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ने की है बल्कि इसके जरिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की अवधारणा को मजबूत बनाने की भी है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने मणिपुर में 1630.29 करोड़ रुपये की लागत से एनएच-39 के 65 किलोमीटर लंबे इम्फाल-मोरेह सेक्शन को उन्नत तथा चौड़ा बनाने के कार्यक्रम को मंजूरी दी है। यह परियोजना दक्षिण एशिया उप-क्षत्रीय आर्थिक सहयोग (एसएसईसी) सड़क संपर्क निवेश कार्यक्रम के अंतर्गत एडीबी की ऋण सहायता से विकसित की जा रही है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और भारत (बीबीआईएन-देशों) में सड़क संरचना को उन्नत बनाना है। परियोजना गलियारा एशियाई उच्च मार्ग संख्या-1 (एएच01) का हिस्सा भी है और यह पूर्व में भारत के द्वार का काम करता है। इस तरह क्षेत्र में व्यापार वाणिज्य और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ पी. शतोब्दन ने कहा कि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में निश्चित रूप से यूरेशिया महाद्वीप पर चल रही सभी आर्थिक प्रक्रियाओं का केन्द्र बना हुआ है। ’एक पट्टी-एक सड़क’ की पहल चीन ने 2013 के आरम्भ में पेश की थी और आज यह पहल काफ़ी शक्तिशाली हो चुकी है। शंघाई सहयोग संगठन में सभी प्रक्रियाओं में, सभी गतिविधियों में चीन का काफी दखल रहा है। वह इस संगठन की सभी पहलों और गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। भारत हाल में इस समूह का सदस्य बना है। ऐसे में पड़ोसी देशों के साथ कनेक्टिविटी महत्वपूर्ण कूटनीतिक पहल है।
भारत सरकार ने ‘एक्ट इस्ट’ नीति को पूरा करने तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार संपर्क प्रोत्साहित करने और बढ़ाने के लिए मोरेह में एकीकृत सीमा चौकी (आईसीपी) को अधिसूचित किया है। एकीकृत सीमा चौकी बनने से बढ़ने वाले यातायात को समर्थन देने के लिए इस परियोजना का विकास आवश्यक है। मणिपुर के श्रमिक बांस और लकड़ी आधारित शिल्प सामग्रियों तथा अनूठी डिजाइन के हाथ से वस्त्र बनाने में माहिर हैं और इन श्रमिकों को म्यामार के उपभोक्ताओं का बाजार मिलेगा। कृषि सामान और औजार, स्टेशनरी, प्लास्टिक दबाव से बनी सामग्री, काष्ठ इकाइयों जैसे लघु उद्योगों को सीमा से बाहर का बाजार प्राप्त होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि सामाजिक-आर्थिक विकास के अतिरिक्त परियोजना से आने-जाने की अवधि में 40 प्रतिशत की कमी आयेगी। इसके अतिरिक्त वाहन अंडरपास, क्रैशबैरियर, सड़क संकेत और मार्किंग, तेज यातायात को अलग-अलग करने के लिए सर्विस रोड़, ट्रक ले-बाय, बस-बे जैसी विशेषताओं से दुर्घटनाओं में कमी लाने में मदद मिलेगी। बेहतर सड़क और आने-जाने की कम अवधि से ईंधन लागत में बचत होगी। भारत ने बांग्लादेश के साथ पहले से ही मजबूत हो रहे रिश्ते को और गहराई देने के लिए दो अहम फैसले किए हैं। एक फैसला बांग्लादेश के साथ निवेश बढ़ाने संबंधी समझौते को आसानी से लागू करने के लिए एक समग्र नोट को मंजूरी देने से जुड़ा हुआ है। इसे ज्वाइंट्स इंटरप्रेटिव नोट्स (जेआइएन) कहा गया है जो आने वाले दिनों में दोनो देशों के बीच आर्थिक संबंधों को और मजबूत करेगा। बांग्लादेश में भारी भरकम निवेश करने की तैयारी में बैठी भारतीय कंपनियों को भरोसा हो सकेगा कि उनका निवेश सुरक्षित है।
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