भगत सिंह के डेथ वारंट पर साइन करने वाले मैजिस्ट्रेट की वजह से पाकिस्तान में 1977 में कैसे हो गया तख्तापलट?

Bhagat Singh
अभिनय आकाश । Mar 23 2022 11:48AM

यह एक अनोखा संयोग है कि पाकिस्तान में जिस व्यक्ति की मौत पर इतना बड़ा राजनीतिक उथल पुथल देखने को मिला ये नवाब मुहम्मद अहमद खान कसूरी वहीं व्यक्ति थे जिन्होंने भगत सिंह के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर किए थे।

'मध्यम ऊंचाई, पतला अंडाकार चेहरा, हल्के से चकत्ते, झीनी दाढ़ी और छोटी सी मूंछ' 1926 में सीआईडी ने अपनी रिपोर्ट में कुछ प्रकार ही भगत सिंह का हुलिया बयां किया है। कहा जाता है कि भगत सिंह की केवल चार तस्वीरें ही आधिकारिक तौर पर मौजूद हैं। 23 मार्च की तारीख जिसे हम शहीदी दिवस के रूप में जानते हैं। 1931 का वो साल जब केवल 23 साल के भगत सिंह देश के लिए सूली पर चढ़ गए। भगत सिंह की जिंदगी से जुड़े जितने किस्से मशहूर हैं उतने ही उनकी फांसी और उसके बाद की भी कई कहानियां हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक घटना के बारें में बताएंगे जो भगत सिंह की फांसी से जुड़ी है और इसके 46 साल बाद पाकिस्तान में हुए राजनीतिक उथल पुथल से भी सरोकार है। 

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9 नवंबर 1974 को एक शांत सर्दी की रात में अहमद रज़ा खान कसूरी अपने पिता, माँ और अपनी चाची के साथ एक शादी से लौट रहे थे, जब वे जिस कार से यात्रा कर रहे थे, उस पर अज्ञात हमलावरों ने हमला कर दिया। लक्ष्य का अनुमान एक युवा राजनेता अहमद रज़ा खान कसूरी थे जो उस वक्त के प्रधानमंत्री भुट्टो और उनकी मौजूदा सरकार के मुखर आलोचक थे। इस घटना में वो तो बच गए लेकिन उनके पिता नवाब मोहम्मद अहमद खान कसूरी की मौत हो गई। उनके बेटे, अहमद रज़ा खान कसूरी भुट्टो की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के संसद सदस्य थे। लेकिन इस घटना के बाद उन्होंने विपक्ष के साथ हाथ मिला लिया। अहमद रज़ा खान कसूरी आश्वस्त थे कि प्रधान मंत्री के पास उन पर हमला करने के पर्याप्त कारण थे। पुलिस अधिकारियों की अनिच्छा के बावजूद, भुट्टो को प्राथमिकी में मुख्य संदिग्ध के रूप में उल्लेख किया गया था। 

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तख्तापलट के बाद फिर से चर्चा में आया ये मामला

अगले कुछ वर्षों तक, मामले में बहुत कम प्रगति हुई, लेकिन 1977 में तख्तापलट के बाद नागरिक सरकार को उखाड़ फेंकने और जनरल जिया उल हक के तहत पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू करने के साथ। उस वक्त जिया उल हक ने उसी पुराने मामले में पूर्व प्रधानमंत्री भुट्टो को नवाब मोहम्मद कसूरी की हत्या में उनकी भूमिका के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। अपने पूर्व भरोसेमंद सहयोगी मसूद महमोद की गवाही पर, भुट्टो को लाहौर उच्च न्यायालय ने मौत की सजा सुनाई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा। लाहौर के इस ऐतिहासिक चौक पर नवाब मोहम्मद कसूरी की हत्या के आरोप में 4 अप्रैल, 1979 को पाकिस्तान के पहले लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधान मंत्री को रावलपिंडी जेल में फांसी दी गई थी।

जहां दी गई फांसी वहीं मारी गई गोली

यह एक अनोखा संयोग है कि पाकिस्तान में जिस व्यक्ति की मौत पर इतना बड़ा राजनीतिक उथल पुथल देखने को मिला ये नवाब मुहम्मद अहमद खान कसूरी वहीं व्यक्ति थे जिन्होंने भगत सिंह के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन ये केवल एक संयोग नहीं है बल्कि शादमान कॉलोनी, लाहौर में गोल चक्कर जहां 1974 में मजिस्ट्रेट को गोली मार दी गई थी। ये वही जगह थी जहां 23 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई। उस दौर में ये लाहौर सेंट्रल जेल के फांसी का चेम्बर हुआ करता था। 

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