दरगाह आला हजरत से भी उठे तीन तलाक पर विरोध के सुर

[email protected] । Oct 15 2016 4:40PM

सुन्नी मुसलमानों के बाद अब बरेलवी फिरके के मुस्लिमों ने भी तीन तलाक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के रुख के विरोध का झण्डा बुलन्द कर दिया है।

बरेली। सुन्नी मुसलमानों के बाद अब बरेलवी फिरके के मुस्लिमों ने भी तीन तलाक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के रुख के विरोध का झण्डा बुलन्द कर दिया है। ‘उर्स-ए-नूरी’ की शुरूआत के मौके पर शुक्रवार को दरगाह आला हजरत में हुई बैठक में उलमा ने तीन तलाक के मुद्दे पर दायर केंद्र सरकार के हलफनामे और समान नागरिक संहिता के बहिष्कार का ऐलान किया। तीन तलाक के मसले पर देश भर में मचे शोर के बीच दरगाह आला हजरत के पूर्व सज्जादानशीं एवं संरक्षक मुफ्ती अख्तर रजा खां उर्फ अजहरी मियां ने आज यहां जारी बयान में इस मामले पर केन्द्र सरकार के रुख के विरोध का ऐलान किया।

उन्होंने कहा कि तीन तलाक तीन ही मानी जाएंगी। एक साथ तीन बार कही गयी तलाक को एक तलाक ही मानने की केन्द्र की दलील और इससे जुड़ा हलफनामा दायर किया जाना शरीयत में सीधा हस्तक्षेप होगा, जो कुबूल नहीं किया जाएगा। यह पहली बार है जब दरगाह आला हजरत की तरफ से तीन तलाक के मामले पर बयान जारी किया गया है। अजहरी मियां ने बयान में कहा कि कुरान और हदीस के मुताबिक तीन तलाक सैद्धांतिक रूप से दुरुस्त है, लेकिन एक सांस में ही तीन बार तलाक बोलने को इस्लाम में कभी अच्छा नहीं माना गया है। इसी धारणा पर शरई अदालत में मुसलमानों के फैसले होते रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोकसभा में विधेयक लाकर या उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल करके तीन तलाक को एक तलाक मानना मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप होने के साथ-साथ संविधान में अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों का हनन भी है।

दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी ने कहा कि केन्द्र सरकार तीन तलाक की आड़ में समान नागरिक संहिता के अपने पुराने मुद्दे को भी हवा दे रही है। ऐसी संहिता इस मुल्क और यहाँ की आवाम के लिए कभी भी फायदेमंद नहीं हो सकती। बैठक में शामिल उलमा ने आरोप लगाया कि कुछ लोग मुस्लिम औरतों को इस्लाम के खिलाफ बहका रहे हैं। ऐसा करने वाले लोगों का असल मकसद संवेदनशील मामलों पर मुसलमानों में अन्तर्विरोध पैदा करके मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करना है। मुस्लिम महिलाओं को इस्लामी शरीयत पर पूरा यकीन करना चाहिये और तलाक जैसे मसलों को शरई अदालतों में ही लाना चाहिये।

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