जस्टिस मल्होत्रा की तरक्की, लेकिन जोसेफ के नाम पर मिलीजुली प्रतिक्रिया

Delay in Justice K M Josephs elevation to SC evokes mixed reactions
[email protected] । Apr 27 2018 10:47AM

दो न्यायविदों-वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ- में से सिर्फ मल्होत्रा को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति को मंजूरी देने

नयी दिल्ली। दो न्यायविदों-वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेफ- में से सिर्फ मल्होत्रा को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति को मंजूरी देने के केंद्र के कदम पर उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर पुनर्विचार करने को कहा।

उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन के प्रमुख एवं वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने मल्होत्रा का नाम स्वीकार करने और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर दोबारा विचार के लिए कहने के केंद्र सरकार के कदम को परेशान करने वाला करार दिया। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय के कोलेजियम ने मल्होत्रा और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की सिफारिश शीर्ष अदालत के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए की थी।

वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने विकास सिंह की राय से सहमति जताई जबकि भाजपा नेता और शीर्ष न्यायालय में अक्सर याचिकाएं दाखिल करने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि इस मुद्दे पर कांग्रेस का रुख उसकी हताशा को दर्शाता है। स्वामी की टिप्पणी अहम है क्योंकि वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने केंद्र के फैसले की आलोचना की है और ट्वीट किया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में कोलेजियम की सिफारिश अंतिम और बाध्यकारी होती है।

चिदंबरम ने ट्वीट किया कि  क्या मोदी सरकार कानून से ऊपर है? न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की नियुक्ति क्यों रोकी जा रही है ? उनके राज्य , या उनके धर्म या उत्तराखंड मामले में उनके फैसले की वजह से? मोदी सरकार को करारा झटका देते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2016 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को निरस्त कर दिया था और हरीश रावत की कांग्रेस सरकार बहाल कर दी थी। बाद में कांग्रेस विधानसभा चुनाव हार गई थी। 

चिदंबरम एवं अन्य की प्रतिक्रियाएं इन खबरों के बीच आई हैं कि केंद्र ने वरिष्ठ वकील मल्होत्रा की उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश पद पर नियुक्ति को मंजूरी दे दी जबकि न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम को मंजूरी नहीं दी। मल्होत्रा बार से सीधे उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के पद पर नियुक्त की जाने वाली पहली महिला न्यायाधीश हैं। इस बीच , कानून मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने कोलेजियम से कहा है कि वह न्यायमूर्ति जोसेफ को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति की अपनी सिफारिश पर फिर से विचार करे। 

विकास सिंह ने अपनी निजी राय जाहिर करते हुए न्यायमूर्ति जोसेफ की नियुक्ति में देरी पर चिंता जताई और कहा कि कार्यपालिका की ओर से इस तरह का दखल निश्चित तौर पर अवांछित है। उन्होंने कहा कि यह तरक्की काफी गलत है क्योंकि इससे उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठता प्रभावित होती है। हमने हालिया समय में देखा है कि उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठता कितनी अहम है। न्यायाधीशों को कनिष्ठ न्यायाधीशों के तौर पर पेश किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि वे संवेदनशील मामलों की सुनवाई के लिए उपयुक्त नहीं हैं। इसलिए कल यदि कोई कहता है कि न्यायमूर्ति जोसेफ एक कनिष्ठ न्यायाधीश हैं और किसी खास मामले की सुनवाई के लिए उपयुक्त नहीं हैं तो यह बहुत दुखद होगा।

सिंह ने कहा, ‘सरकार जिम्मेदार होगी। कार्यपालिका की ओर से इस तरह का दखल निश्चित तौर पर अवांछित है। इसमें देरी करके उन्होंने निश्चित तौर पर वरिष्ठता के नियमों में दखल दिया है और उस मायने में उन्होंने न्यायपालिका के कामकाज में दखल दिया है। यह काफी गंभीर मामला है। सिविल सोसाइटी और उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को इस पर चर्चा करनी चाहिए और सरकार के समक्ष इस मामले को उठाना चाहिए।’

न्यायमूर्ति जोसेफ की नियुक्ति में देरी के मुद्दे पर भाजपा नेता स्वामी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी हताश है। उन्होंने कहा, ‘एक तरफ वे सीजेआई पर भाजपा की तरफ झुके होने का आरोप लगाते हैं और दूसरी तरफ वे कह रहे हैं कि हमने उनकी अनदेखी की है। कांग्रेस पार्टी हताश है।’ स्वामी को दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा से समर्थन मिला जिन्होंने कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि मुख्य न्यायाधीशों सहित अन्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, जो न्यायमूर्ति जोसेफ से वरिष्ठ हैं, के नामों की सिफारिश शीर्ष अदालत में पदोन्नति के लिए क्यों नहीं की गई।

उन्होंने न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की सिफारिश को ‘‘ बारी से पहले ’’ करार दिया और कहा कि सरकार जानना चाहती थी कि उनके पास क्या विशेष योग्यताएं हैं। भूषण ने केंद्र पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि सरकार कोलेजियम की सिफारिश के मुताबिक नियुक्तियां नहीं करके न्यायपालिका की आजादी को ध्वस्त करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा, ‘न्यायमूर्ति के एम जोसेफ का मामला बहुत साफ है। उनके नाम को रोका गया है जिसकी सिफारिश चार महीने पहले कोलेजियम की ओर से की गई थी। कोलेजियम ने एकमत से नामों की सिफारिश की थी और फिर भी सरकार ने इसे अटकाया है , क्योंकि उन्होंने उत्तराखंड मामले में सरकार के खिलाफ फैसला दिया था।’

भूषण ने कहा, ‘यह न्यायपालिका की आजादी की बातें करने वाली सरकार के लिए बहुत शर्मनाक है और स्तब्ध करने वाली बात है कि वह खुद को पसंद न आने वाले लोगों की नियुक्ति को ठंडे बस्ते में डालकर न्यायपालिका की आजादी को ध्वस्त करने की कोशिश कर रही है।’ बीते 22 जनवरी को शीर्ष न्यायालय के कोलेजियम की वह फाइल कानून मंत्रालय में पहुंची थी जिसमें न्यायमूर्ति जोसेफ और मल्होत्रा को शीर्ष अदालत में न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की गई थी।

फरवरी के पहले हफ्ते में फाइल पर गौर करने के बाद सिफारिशों पर फैसला रोक कर रखा गया क्योंकि सरकार सिर्फ मल्होत्रा के नाम पर मंजूरी देना चाहती थी। लेकिन अब सरकार ने मल्होत्रा की नियुक्ति पर मंजूरी दे दी है और कोलेजियम को न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर फिर से विचार करने के लिए कहा है। सरकार का मानना है कि न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम की सिफारिश करते हुए कोलेजियम ने वरिष्ठता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की अनदेखी की। वह उच्च न्यायालय के 669 न्यायाधीशों में से वरिष्ठता क्रम में 42 वें स्थान पर हैं।

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