अर्जुन सिंह खेमे से नरसिम्हा राव की तरफ मुड़े थे दिग्विजय, ऐसे हुई थी 46 वर्ष की उम्र में ताजपोशी

Digvijay Singh
प्रतिरूप फोटो

दिग्विजय सिंह ने मिनी बॉम्बे कहे जाने वाले इंदौर से शिक्षा ग्रहण किया था। दिग्विजय सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 में राघोगढ़ नगरपालिक से हुई थी और वह अध्यक्ष बने थे। राजसी जीवन व्यतीत करने वाले दिग्विजय सिंह को राजनीतिक जीवन में बहुत कुछ मिला जिसकी उन्हें शायद कल्पना भी नहीं थी।

नयी दिल्ली। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक गुरू और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अपने विवादित बयानों के चलते सुर्खियां में बने हुए हैं। प्रधानमंत्री पद के दावेदार रहे अर्जुन सिंह का हाथ पकड़कर कांग्रेस में बड़ा पद हासिल करने वाले दिग्विजय सिंह ने नरसिम्हा राव खेमे में अपनी साख मजबूत किया था। दिग्विजय सिंह का जन्म राघोगढ़ में सामंती परिवार में हुआ था और उस वक्त राघोगढ़ ग्वालियर राज्य के अधीन एक राज्य था। 

इसे भी पढ़ें: गांधीवादी नेता थे कृष्णकांत, आपातकाल का विरोध करने पर कांग्रेस ने पार्टी से किया था निष्कासित 

राजनीतिक जीवन

दिग्विजय सिंह ने मिनी बॉम्बे कहे जाने वाले इंदौर से शिक्षा ग्रहण किया था। दिग्विजय सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 में राघोगढ़ नगरपालिक से हुई थी और वह अध्यक्ष बने थे। राजसी जीवन व्यतीत करने वाले दिग्विजय सिंह को राजनीतिक जीवन में बहुत कुछ मिला जिसकी उन्हें शायद कल्पना भी नहीं थी। 1977 में कांग्रेस की टिकट पर उन्होंने राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से पहली बार चुनाव लड़ा और जीतकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद 1980 में अर्जुन सिंह ने उन्हें अपनी सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया और फिर बाद में कृषि विभाग की भी जिम्मेदारी दे दी।

मध्य प्रदेश में अपनी साख को मजबूत करने में जुटे दिग्विजय सिंह को उनके राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह ने साल 1984 में दिल्ली की राजनीति में एंट्री दिलाई और वो राजगढ़ से सांसद बन गए। हालांकि अगला 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। राजगढ़ लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह भाजपा के प्यारेलाल खंडेलवाल से चुनाव हार गए थे। उस वक्त उत्तर भारत में कांग्रेस को भी हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1991 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए और उन्हें जीत मिली। उस वक्त केंद्र में नरसिम्हा राव और अर्जुन सिंह के बीच खींचतान चल रही थी। 

इसे भी पढ़ें: कहानी जयललिता की: कैसे बनीं तमिलनाडु की सबसे बड़ी लीडर 

43 साल की उम्र में बने मुख्यमंत्री

साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के चलते मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उसके बाद 1993 में मध्य प्रदेश में चुनाव हुए और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने सभी खेमों की सुनी और टिकट बांटे। इस चुनाव में कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। उस वक्त कांग्रेस को 320 में से 174 सीटें मिली। चर्चा छिड़ गई मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए लेकिन नरसिम्हा राव ने फिर श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया, सुभाष यादव को अनदेखा करके अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र रहे उस वक्त के प्रदेशाध्यक्ष दिग्विजय सिंह के नाम का ऐलान किया।

उस वक्त अर्जुन सिंह के विश्वासपात्र रहे दिग्विजय सिंह ने नरसिम्हा राव खेमे में शामिल हो गए। 1995 में अर्जुन सिंह ने कांग्रेस को छोड़कर तिवारी कांग्रेस का गठन किया। इसके बावजूद दिग्विजय सिंह उनके साथ नहीं आए और नरसिम्हा राव के साथ डटे रहे। 1998 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का साथ मिला और उन्होंने सिटिंग विधायकों का जमकर टिकट काटा और 320 में से 172 सीटों पर जीत दर्ज की। 

इसे भी पढ़ें: अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे चन्द्रशेखर आजाद ने

दिग्विजय सिंह साल 2004 से 2018 तक कांग्रेस महासचिव रहे और अनेक प्रदेशों में कई पदों पर भी रहे। उन्होंने साल 2019 का लोकसभा चुनाव भोपाल से लड़ा और भाजपा उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा से बुरी तरह हार गए। इसके बाद पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश से राज्यसभा भेज दिया। यह ऐसा वक्त था जब मध्य प्रदेश में अरसो बाद कांग्रेस की सरकार आई थी और कमलनाथ मुख्यमंत्री थे लेकिन पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को नाराज कर दिया। जिसकी वजह से 14 महीने तक ही कमलनाथ प्रदेश की जिम्मेदारी संभाल सके और फिर से शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की वापसी हुई।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़