फरार हुए आठों सिमी सदस्य मुठभेड़ में मारे गये, विवाद शुरू

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प्रतिबंधित संगठन सिमी के आठ सदस्य आज भोपाल में अत्यंत सुरक्षा वाली केंद्रीय जेल से एक सुरक्षाकर्मी को मारने के बाद फरार हो गये और कुछ घंटे बाद शहर के बाहरी इलाके में पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारे गए।

भोपाल। प्रतिबंधित संगठन सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया) के आठ सदस्य आज भोपाल में अत्यंत सुरक्षा वाली केंद्रीय जेल से एक सुरक्षाकर्मी को मारने के बाद फरार हो गये और कुछ घंटे बाद शहर के बाहरी इलाके में पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में मारे गए। मुठभेड़ पर सवाल खड़े हो गए हैं। पुलिस की कार्रवाई पर विवाद शुरू हो गया और टीवी चैनलों पर कथित तौर पर मुठभेड़ स्थल के फुटेज दिखाये गये जिनमें एक पुलिसकर्मी को करीब से एक व्यक्ति को गोली मारते देखा जा सकता है। इससे पहले कुछ अज्ञात लोगों को एक वस्तु निकालते और वापस रखते हुए भी देखा जा सकता है जो प्लास्टिक के कवर में एक चाकू जैसा दिख रहा है।

भोपाल के उप महानिरीक्षक रमन सिंह ने कहा कि सिमी के सदस्य देर रात के बाद करीब 2-3 बजे जेल के एक सुरक्षाकर्मी को मारने के बाद चादरों की मदद से दीवार फांदकर भागने में कामयाब रहे। इनमें दो सदस्य तीन साल पहले खंडवा से इसी तरह जेल से भागने में सफल हुए थे। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि स्थानीय लोगों द्वारा बताये गये सुरागों के आधार पर विचाराधीन कैदियों के मालीखेड़ा की ओर भागने का पता चला जहां उन्हें घेर लिया गया और जब उन्होंने पुलिस को चुनौती देने की कोशिश की तो उन्हें मार दिया गया। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने बताया कि भोपाल जेल से फरार सभी आठ सिमी सदस्यों को भोपाल पुलिस ने शहर के बाहरी हिस्से में मालीखेड़ा में मार गिराया। एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक आठों की पहचान अमजद, जाकिर हुसैन सादिक, मोहम्मद सालिक, मुजीब शेख, महबूब गुड्डू, मोहम्मद खालिद अहमद, अकील और माजिद के रूप में की है। सिमी सदस्यों के जेल से भागने के मामले की तफ्तीश राष्ट्रीय जांच एजेंसी करेगी। इस बीच मुठभेड़ को लेकर विरोधाभास सामने आ रहे हैं।

पुलिस महानिरीक्षक योगेश चौधरी ने कहा कि फरार हुए सिमी सदस्यों के पास हथियार थे और उन्होंने चुनौती दिये जाने पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसके जवाब में पुलिस ने भी गोलीबारी की। यह बयान गृहमंत्री के बयान से विरोधाभास वाला लगता है। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि कैदियों ने सुरक्षाकर्मी पर हमला करने के लिए जेल से लाये गये चम्मचों और तश्तरियों का इस्तेमाल हथियार के रूप में किया। गृहमंत्री की बात से विरोधाभास रखने वाली टीवी फुटेज के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह एक मुठभेड़ थी और पुलिस के पास उन्हें मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मीडिया से संक्षिप्त बातचीत में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि एनआईए इस घटना की जांच करेगी। हालांकि मुठभेड़ पर उठ रहे सवाल का जवाब देने से वह बचे। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार भी मामले में अलग जांच करेगी।

घटना के तत्काल बाद राज्य पुलिस ने आठों सदस्यों के स्केच जारी किये थे और जेल अधीक्षक अखिलेश तोमर समेत चार अधिकारियों पर निलंबन की गाज गिराई। सरकार ने सभी सिमी सदस्यों के सिर पर 5-5 लाख रुपये का इनाम भी रखा था। चौहान ने कहा, ‘‘हमने मध्य प्रदेश कारावास उप महानिरीक्षक, भोपाल केंद्रीय जेल के अधीक्षक, उपाधीक्षक और सहायक जेल अधीक्षक को निलंबित करने का फैसला किया है।’ विपक्षी कांग्रेस ने पुलिस महानिरीक्षक और गृहमंत्री के बयानों में विरोधाभास की ओर इशारा करते हुए मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग की है। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग की और मुठभेड़ पर सवाल खड़े किये। ओवैसी ने कहा कि एनआईए की जांच काफी नहीं है और न्याय के हित में होगा कि शीर्ष अदालत की देखरेख में जांच का आदेश दिया जाए। उन्होंने मालेगांव विस्फोट मामले का जिक्र करते हुए एनआईए की विश्वसनीयता पर संदेह प्रकट किया।

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कमलनाथ ने कहा, ‘‘सिमी कार्यकर्ता अत्यंत सुरक्षा वाली जेल से भाग गये और कुछ घंटे के अंदर उन्हें न केवल खोज लिया गया बल्कि मार दिया गया। अब उनसे पूछताछ नहीं की जा सकती, कोई सबूत नहीं है, उनके बयान रिकॉर्ड नहीं किये जा सकते।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं न्यायिक जांच की मांग कर रहा हूं। सरकार को भी पता चलना चाहिए कि वे किन परिस्थितियों में भागे।’’ राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी जांच की मांग की। हालांकि भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि दिग्विजय सिंह को आलोचना के बजाय मुठभेड़ के लिए और आतंकवादियों को मार गिराने के लिए मध्य प्रदेश पुलिस की पीठ थपथपानी चाहिए। इससे पहले 2013 में प्रदेश के ही खंडवा की एक जेल से इस संगठन के सात सदस्य भागने में कामयाब रहे थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मध्य प्रदेश सरकार से इस घटना के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट तलब की है जिससे यह पता चल सके कि क्या जेल प्रशासन की ओर से कोई चूक हुई या ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कौन से कदम उठाए गए हैं। एक अक्तूबर 2013 को खंडवा स्थित जेल से भागे सिमी के सात कार्यकर्ताओं में से चार को तीन साल तक छिपे रहने के बाद मुश्किल से पकड़ा गया था और इन तीन साल में ये लोग आतंकवाद और बैंक लूटपाट की घटनाओं में लिप्त थे। सरकार ने सिमी पर वर्ष 2001 में प्रतिबंध लगा दिया था।

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