पति व ससुराल वालों के खिलाफ झूठे पुलिस मामले दर्ज करना क्रूरता : High Court

Bombay High Court
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Prabhasakshi News Desk । Apr 30 2024 9:27PM

एक कुटुम्ब अदालत द्वारा एक दंपति को दिए गए तलाक को रद्द करने से इनकार करते हुए बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामला दर्ज कराना क्रूरता है। महिला ने अपनी याचिका में अपने वैवाहिक अधिकारों को बहाल किए जाने का अनुरोध किया था।

मुंबई । बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठे मामला दर्ज कराना क्रूरता है। इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने एक कुटुम्ब अदालत द्वारा एक दंपति को दिए गए तलाक को रद्द करने से इनकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने एक महिला द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया। महिला ने अपनी याचिका में अपने वैवाहिक अधिकारों को बहाल किए जाने का अनुरोध किया था और कुटुम्ब अदालत के फरवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें तलाक की मंजूरी दी गई थी। 

पति ने अपनी पत्नी की क्रूरता और उसके अलग हो जाने के आधार पर तलाक मांगा था। उच्च न्यायालय ने 25 अप्रैल को यह आदेश दिया जिसकी प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई। न्यायमूर्ति वाई जी खोबरागड़े ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून के तहत कार्यवाही शुरू करना और वैवाहिक अधिकारों की बहाली की मांग करना अपने आप में क्रूरता नहीं है। उन्होंने कहा, लेकिन, पति, उसके पिता, भाई और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ पुलिस के पास विभिन्न झूठी, आधारहीन रिपोर्ट दर्ज करना निश्चित रूप से क्रूरता के दायरे में आता है। इस जोड़े की 2004 में शादी हुई और 2012 तक वे साथ रहे। 

पति ने दावा किया कि 2012 में उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया और अपने अपने माता-पिता के घर में रहने लगी। बाद में महिला ने अपने पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज करायी। पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ कुटुम्ब अदालत में दायर याचिका में दावा किया कि इन झूठी शिकायतों के कारण उसे और उसके परिवार के सदस्यों को मानसिक क्रूरता का सामना करना पड़ा। पति ने दावा किया था कि उसकी पूर्व पत्नी ने उनके पिता और भाई के खिलाफ छेड़छाड़ करने तक का आरोप लगाया। 

बाद में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया लेकिन उस व्यक्ति ने कहा कि इस पूरे मामले से उसके परिवार के सदस्यों को परेशानी हुई और समाज में उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ। उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका खारिज कर दी और कहा कि तलाक मंजूर करने के निचली अदालत के आदेश में कोई गड़बड़ी या अवैधता नहीं है।

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