पूर्व चुनाव आयुक्त कृष्णमूर्ति ने चुनावों के सरकारी वित्तपोषण पर जोर दिया

Former Election Commissioner Krishnamurthy stressed on government financing of elections
[email protected] । Sep 18 2017 2:04PM

‘‘हमें उन लोगों के साथ बहुत सख्ती करनी होगी, जो चुनावों के सरकारी वित्तपोषण के बावजूद धन का भुगतान करेंगे। किसी भी दल को चुनाव में धन खर्च करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।’’

हैदराबाद। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने चुनाव सुधार के तहत चुनावों में सरकारी धन के इस्तेमाल की वकालत की है और राजनीतिक दलों के धन के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया है। उन्होंने एक राष्ट्रीय चुनाव कोष गठित करने का सुझाव पेश किया। यह ऐसा कोष होगा, जिसमें कंपनियां और अन्य लोग योगदान दे सकते हैं। कृष्णमूर्ति ने कहा कि मूल तौर पर वह चुनावों में सरकारी धन के इस्तेमाल के पक्षधर नहीं थे। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन विभिन्न स्थानों पर आजकल हो रही चीजों को देखकर, मेरा मानना है कि एक राष्ट्रीय चुनाव कोष बनाया जाना चाहिए, जिसमें कंपनियां और अन्य लोग अपना योगदान दे सकते हों और उस योगदान को 100 फीसदी की कर छूट हो।’’ कृष्णमूर्ति ने कहा कि इस धन का इस्तेमाल चुनावों के सरकारी वित्तपोषण के लिए किया जा सकता है। 

उन्होंने कहा, ‘‘यदि कहीं कमी होती है, तो केंद्र सरकार को निश्चित तौर पर अच्छा करना होगा।’’ उन्होंने कहा कि कंपनियां और अन्य लोग राजनीतिक दलों के बजाय ऐसे कोष में योगदान देना पसंद करेंगे क्योंकि इससे उन्हें कर में 100 फीसदी छूट मिलेगी। कृष्णमूर्ति ने कहा कि यह कदम सुनिश्चित करेगा कि कॉरपोरेट और राजनीतिक दलों के बीच कोई सांठगांठ नहीं हो। उन्होंने कहा, ‘‘एक सर्वदलीय बैठक के जरिए तय किया जा सकता है कि विभिन्न चुनावों के लिए धन का इस्तेमाल कैसे किया जाए।’’ उन्होंने सुझाव दिया कि एक बार राष्ट्रीय चुनाव कोष का गठन हो जाए तो चुनावों के लिए किसी भी राजनीतिक दल द्वारा धन का इस्तेमाल प्रतिबंधित किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं सहमत हूं कि तब भी राजनीतिक दल धन का भुगतान कर सकते हैं। जब भी ऐसा मामला सामने आए, इसमें 10 साल की कैद और उम्मीदवार को अयोग्य करार देने का प्रावधान हो।’’ कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘‘हमें उन लोगों के साथ बहुत सख्ती करनी होगी, जो चुनावों के सरकारी वित्तपोषण के बावजूद धन का भुगतान करेंगे। किसी भी दल को चुनाव में धन खर्च करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि उनके हिसाब से कानून में बहुत सी खामियां हैं क्योंकि चुनावी खर्च की सीमा सिर्फ उम्मीदवारों के लिए निर्धारित है, राजनीतिक दलों के लिए नहीं।उन्होंने राजनीतिक दलों के लिए एक अलग कानून बनाने की मांग की, जिसके तहत नियमन का पर्याप्त खाका तैयार हो और इसके जरिए उनकी समीक्षा एवं निगरानी हो सके। इसमें उनके आंतरिक चुनावों एवं वित्तीय प्रबंधन की समीक्षा और निगरानी भी शामिल है। 

उन्होंने कहा कि अगर कोई अदालत (पुलिस नहीं) पांच साल या इससे ज्यादा की कैद वाले अपराध के संदर्भ में आरोप पत्र तय कर देती है तो अपराधियों को अयोग्य करार दे दिया जाना चाहिए। कृष्णमूर्ति ने कहा कि गलत उम्मीदवार इसलिए चुनावी दौड़ में आ जाते हैं, क्योंकि धनबल और बाहुबल चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं। ‘‘इसलिए बेहतर है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव में वित्तपोषण को हटा दिया जाए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा, आपके पास सदन के कार्यकाल का 50 प्रतिशत पूरा हो जाने के बाद प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का प्रावधान हो सकता है। यदि सदन का कार्यकाल पांच साल का है तो किसी व्यक्ति को ढाई साल शांति से काम करने की अनुमति होनी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति पर हत्या, बलात्कार या भ्रष्टाचार का आरोप लगता है तो ऐसे लोगों को वापस बुलाने का अधिकार होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में वापस बुला लेना कोई हल नहीं हो सकता लेकिन प्रतिरोधक हो सकता है। ऐसा करने से बेहतर बर्ताव के लिए निर्वाचित प्रतिनिधियों की कुछ तो जिम्मेदारी तय होगी।’’

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