बार-बार दंगों में नाम फिर भी PFI कैसे बेलगाम, कब होगी कार्रवाई?

PFI
अभिनय आकाश । Oct 12 2020 1:18PM

दिल्ली दंगे से लेकर यूपी के एंटी सीएए प्रदर्शन में पीएफआई का नाम आया। हाथरस केस को लेकर दंगा फैलाने की साजिश में भी पीएफआई के नाम का खुलासा हुआ। कांग्रेस ने सवाल उठाया कि सरकार बताए कि कौन सी शक्तियां हैं जो पीएफआई को बचा रहे हैं? प्रतिबंध लगाने से कौन रोक रहा है?

केरल से लेकर कश्मीर तक जिस भी किसी भी राज्य का नाम लें जब दंगों का जिक्र होता है तो पाॅपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम जरूर आता है। हाथरस केस को लेकर दंगा फैलाने की साजिश का खुलासा हुआ है। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में भी पीएफआई का नाम है। सारे मामले को लेकर  मथुरा पुलिस ने चार लोगों अतीक, आलम, सिद्दकी, मसूद को गिरफ्तार किया था, जिनका संबंध पीएफआई से बताया गया। जिसे कोर्ट ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। 

देश के दंगों में पीएफआई पर आरोप

  • 2012 से एनआईए की रडार पर है पीएफआई।
  • पीएफआई के ठिकानों से हथियार मिल चुके हैं।
  • दिसंबर 2019 यूपी में सीएए के विरोध में हुए हिंसा में नाम।
  • फरवरी के उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों में नाम आया।
  • अगस्त में बेंगलुरु हिंसा में भी नाम आया।

हाथरस साजिश में पीएफआई की भूमिका

  • जस्टिस फाॅर हाथरस वेबसाइट बनी थी। 
  • वेबसाइट में फसाद फैलाने के निर्देश दिए गए। 
  • पीएफआई से जुड़े चार आरोपी गिरफ्तार।
  • जिस रात मृतका की चिता जली उसी रात वेबसाइट बनी। 

एनआईए की एक रिपोर्ट में केरल के कन्नूर में आईएसआईएस के एक कैंप बनाए जाने और 23 लड़कों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने की भी बात सामने आई थी। एनआईए की उसी रिपोर्ट में केरल की पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। एनआईए की जांच में ये खुलासा हुआ था कि पीएफआई के कई सदस्य धर्म परिवर्तन के सिंडिकेट में शामिल हैं और कुछ आतंकी साजिश में भी पकड़े जा चुके हैं। संगठन 2006 में उस वक़्त सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। संगठन को बैन किये जाने की मांग 2012 में भी हुई थी। दिलचस्प बात ये है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआई का बचाव करते हुए केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किये जाने की शिकायतें आई थीं।

PFI पर क्यों नहीं लगा अब तक प्रतिबंध?

कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी सवाल उठाया कि ने प्रदेश सरकार ने अपना प्रस्ताव तैयार कर केंद्र सरकार को भेजा और बैन लगाने की मांग की है। तो आखिर इतने दिनों में पीएफआई पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सका? केंद्र में और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार है। दोनों जगह पर भाजपा की सरकार होने से कोई अडंगा लगना भी संभव नहीं है। ऐसे में सरकार बताए कि कौन सी शक्तियां हैं अथवा कौन लोग हैं जो पीएफआई को बचा रहे हैं? उस पर प्रतिबंध लगाने से कौन रोक रहा है? उन्होंने कहा कि जो लोग इसके दोषी हों, यूपी सरकार उन पर भी कार्रवाई करे। क्या सरकार की मंशा पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की नहीं है अथवा वह प्रक्रिया का पालन ठीक से नहीं कर सकी है। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा सरकार जानबूझकर पीएफआई को प्रतिबंधित नहीं कर रही है तो यही माना जाएगा कि अपनी असफलाताओं को छुपाने के लिए पीएफआई का नाम उछाला जा रहा है।

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झारखंड सरकार ने दो-दो बार किया था बैन

झारखंड डीजीपी की अनुशंसा पर दिसंबर 2017 को सरकार ने पीएफआई को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया था। सरकार की रिपोर्ट में बताया गया है कि इसके सदस्य आतंकी संगठन आइएस से प्रभावित हैं। बाद में मामला हाइकोर्ट में चला गया था। तब उच्‍च न्‍यायालय के आदेश पर पीएफआई से बैन हटा लिया गया था। लेकिन फिर से एक बार झारखंड की रघुवर दास सरकार ने 13 फरवरी 2019 को राज्य में कट्टरपंथी संगठन पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को बैन कर दिया था। यह कार्रवाई क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट ऐक्ट 1908 के सेक्शन 16 के तहत की गई थी। 

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प्रमाणिक तथ्यों के साथ कार्रवाई की तैयारी

गृह विभाग का कहना है कि किसी संगठन पर बैन लगाने के लिए प्रमाणिक तथ्यों की जरूरत होती है। अब तक जिस तरह की शिकायत मिली है उसकी जांच की जा रही है। जानकारों की माने तो गृह मंत्रालय हड़बड़ी में कोई फैसला लेने के मूड में है। अगर पीएफआई पर बैन लगाने जैसे कोई कदम उठाए जाते हैं तो संगठन उसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है। ऐसे में प्रमाणिक तथ्यों की जरूरत होगी।  

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