Shaurya Path: Xi Russia Visit, India-China, India-Africa Mega Military Exercise, Aerospace Force मुद्दों पर Brigadier (R) DS Tripathi से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी ने कहा कि रूस के राष्ट्रपति को इस यात्रा का बहुत समय से इंतजार था क्योंकि सभी नेता यूक्रेन जा रहे थे लेकिन कोई यात्रा के लिए रूस नहीं आ रहा था। वहीं जापान के प्रधानमंत्री का यूक्रेन जाना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि जापान इस समय जी-7 का अध्यक्ष है।

नमस्कार, प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में आप सभी का स्वागत है। आज के कार्यक्रम में बात करेंगे चीनी राष्ट्रपति की रूस यात्रा की, चीन को लेकर आये भारतीय नेताओं के बयानों की, भारतीय वायुसेना की नयी रणनीति की और भारत-अफ्रीका सैन्य अभ्यास की। इस कार्यक्रम में हमारे साथ हमेशा की तरह उपस्थित हैं ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) श्री डीएस त्रिपाठी जी।

प्रश्न-1. चीन के राष्ट्रपति ने रूस की यात्रा की, जापान के प्रधानमंत्री भारत आये और फिर यूक्रेन पहुँचे। इन सब घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय राजनय की दृष्टि से क्या प्रभाव छोड़ा है?

उत्तर- रूस के राष्ट्रपति को इस यात्रा का बहुत समय से इंतजार था क्योंकि सभी नेता यूक्रेन जा रहे थे लेकिन कोई यात्रा के लिए रूस नहीं आ रहा था। वहीं जापान के प्रधानमंत्री का यूक्रेन जाना इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि जापान इस समय जी-7 का अध्यक्ष है। जी-7 के छह सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष यूक्रेन जा चुके थे लेकिन जापान के प्रधानमंत्री अब तक नहीं गये थे इसलिए उन पर एक दबाव भी था। जहां तक रूस और चीन के बीच हुई वार्ताओं की बात है तो चीन का शांति प्रस्ताव तो खारिज होना ही था। फिलहाल दोनों देशों में जो सहमति बनी है यदि उसकी बात करें तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का रूस दौरा इस मायने में महत्वपूर्ण रहा कि उन्होंने अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए अपने रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा प्रणाली’’ बनाने का संकल्प किया है। शी ने पुतिन के साथ गहन चर्चा की, जिसके बाद दोनों नेताओं ने ''नए युग के लिए समन्वय की व्यापक रणनीतिक साझेदारी’’ और ‘‘चीन-रूस आर्थिक सहयोग में प्राथमिकताओं पर 2030 से पहले विकास योजना’’ को गहरा करने के लिए दो संयुक्त बयानों पर हस्ताक्षर किए। शी जिनपिंग ने मॉस्को की तीन-दिवसीय यात्रा यूक्रेन संघर्ष में शांति वाहक के तौर पर अपनी भूमिका दर्शाने के लिए की थी। उन्होंने इस दिशा में शांति वार्ता योजना को आगे बढ़ाने की मांग की, जिस पर यूक्रेन के प्रमुख सहयोगी अमेरिका से ठंडी प्रतिक्रिया मिली। मार्च 2013 में पहली बार चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद से शी की रूस की इस यात्रा को दोस्ती, सहयोग और शांति की यात्रा बताया गया है। इसके अलावा चीन ने कहा है कि राष्ट्रपति शी की हाल में समाप्त हुई रूस की राजकीय यात्रा दोस्ती, सहयोग और शांति की यात्रा थी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन यूक्रेन संघर्ष में तटस्थ है और उन्होंने यह भी दोहराया कि बीजिंग का यूक्रेन मुद्दे पर कोई स्वार्थी मकसद नहीं है, वह मूक दर्शक नहीं बना हुआ है... या इस अवसर का लाभ नहीं उठा रहा है।

चीन की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विशिष्ट गठबंधन का विरोध करते हैं, जो क्षेत्र में इस तरह की गठबंधन की राजनीति को बढ़ावा देगी और खेमेबाजी से टकराव पैदा होगा, जो स्पष्ट रूप से अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान के गठबंधन ‘क्वाड’ और ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के गठबंधन ‘ऑकस’ के संदर्भ में है। दोनों पक्षों ने इस बात का जिक्र किया है कि अमेरिका शीतयुद्ध की मानसिकता में जी रहा है और हिंद-प्रशांत रणनीति का अनुसरण करता है, जिसका क्षेत्र में शांति और स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

चीन और रूस एशिया-प्रशांत क्षेत्र में एक समान, खुली और समावेशी सुरक्षा प्रणाली बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि बनाए रखने के लिए किसी अन्य देश को निशाना नहीं बनाता है। अमेरिका, भारत और कई अन्य विश्व शक्तियां संसाधन संपन्न क्षेत्र में चीन के बढ़ते सैन्य दखल की पृष्ठभूमि में एक स्वतंत्र, खुले और समृद्ध हिंद-प्रशांत को सुनिश्चित करने की आवश्यकता के बारे में बात कर रही हैं। चीन का दक्षिण और पूर्वी चीन सागर में सीमा क्षेत्र को लेकर विवाद है। बीजिंग ने पिछले कुछ वर्षों में अपने मानव निर्मित द्वीपों का सैन्यीकरण करने में भी काफी प्रगति की है। रूस ने यूक्रेन युद्ध पर जल्द ही शांति वार्ता फिर से शुरू करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, जिसकी चीन ने सराहना की।

प्रश्न-2. सेना ने चीन से लगती सीमा के पास हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना क्यों बनाई है? इसके अलावा विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर ने कहा है कि लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है लेकिन स्थिति तनावपूर्ण है। आने वाले समय में आप दोनों देशों के संबंधों को कैसे देखते हैं? इसके अलावा एक खबर में दावा किया गया है कि अमेरिका ने पिछले साल भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी जिससे उसे चीनी घुसपैठ से सफलतापूर्वक निपटने में मदद मिली। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

उत्तर- सेना ने उत्तरी सीमाओं से लगे अग्रिम क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन आधारित माइक्रो ग्रिड ऊर्जा संयंत्र परियोजना की स्थापना के लिए एक प्रक्रिया शुरू की है। यह कदम चीन के साथ पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद के बीच आया है। यह परियोजना उन अग्रिम क्षेत्रों में क्रियान्वित की जा रही है, जो राष्ट्रीय या राज्य पावर ग्रिड से नहीं जुड़े हैं। सेना ने कहा है कि उसने पहल के लिए ‘नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड’ (एनटीपीसी आरईएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। दरअसल भारत ने चार जनवरी को राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को 2030 तक प्रतिवर्ष 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करने के लिए 19,744 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ मंजूरी दी थी। सेना का इस बारे में कहना है कि राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत, भारतीय सेना ने उत्तरी सीमाओं के साथ लगे उन अग्रिम क्षेत्रों में हरित हाइड्रोजन आधारित माइक्रो ग्रिड ऊर्जा संयंत्र परियोजना की स्थापना की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जो राष्ट्रीय/राज्य ग्रिड से जुड़े नहीं हैं। बयान में कहा गया है कि अपेक्षित भूमि बिजली खरीद समझौते के जरिये उत्पादित बिजली खरीदने की प्रतिबद्धता के साथ 25 साल के लिए पट्टे पर प्रदान की जा रही है। सेना ने कहा है कि प्रस्तावित परियोजनाएं एनटीपीसी द्वारा पूर्वी लद्दाख में संयुक्त रूप से चिह्नित स्थान पर ‘बनाओ, चलाओ और सौंप दो (बीओओ)’ मॉडल पर स्थापित की जाएंगी।

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दूसरी ओर, व्हाइट हाउस ने उस खबर की पुष्टि करने से इंकार कर दिया है जिसमें दावा किया गया है कि अमेरिका ने पिछले साल भारतीय सेना को महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी मुहैया कराई थी जिससे उसे चीनी घुसपैठ से सफलतापूर्वक निपटने में मदद मिली। व्हाइट हाउस में रणनीतिक संचार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के समन्वयक जॉन किर्बी ने खबर के बारे में पूछे जाने पर एक दैनिक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि नहीं, मैं इसकी पुष्टि नहीं कर सकता। दरअसल यूएस न्यूज ने एक विशेष खबर में दावा किया था कि भारत, अमेरिकी सेना के अभूतपूर्व खुफिया सूचना साझा करने के कारण पिछले साल के अंत में हिमालय के ऊंचाई वाले सीमा क्षेत्र में चीन की सैन्य घुसपैठ का जवाब दे पाया। उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास नौ दिसंबर को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच संघर्ष और टकराव में दोनों पक्षों के कुछ सैनिक मामूली रूप से घायल हो गए थे।

वहीं भारत और चीन के संबंधों की बात करें तो विदेश मंत्री जयशंकर के बाद अब उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है और विभिन्न स्तरों पर बातचीत की जा रही है। देखा जाये तो एलएसी पर चीन के साथ यथास्थिति बरकरार है। विभिन्न स्तरों पर बातचीत की जा रही है और हमारी सभी टुकड़ियां उच्च स्तर पर तैयार हैं।

प्रश्न-3. वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने कहा है कि भारतीय रक्षा उद्योग को उन्नत निर्देशित ऊर्जा और हाइपरसोनिक हथियारों पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा है कि भारतीय वायुसेना के लिए "एयरोस्पेस फोर्स" बनाने का समय आ गया है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- देखा जाये तो वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने एकदम सही कहा है। भारतीय रक्षा उद्योग को उन्नत निर्देशित ऊर्जा और हाइपरसोनिक हथियारों पर काम करने की जरूरत है। भारतीय वायुसेना के लिए "एयरोस्पेस फोर्स" बनने का समय वाकई आ गया है। वायुसेना को भविष्य की तकनीकों को अपनाना ही चाहिए क्योंकि भविष्य में युद्ध जमीन, हवा और समुद्र के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी लड़े जाएंगे। देश जब आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तो उसके हथियार अलग होंगे। निर्देशित ऊर्जा और हाइपरसोनिक हथियारों जैसे हथियारों का पहले ही अन्य देशों द्वारा "परीक्षण और उपयोग" किया जा चुका है। देश की आजादी के 100 साल होने पर भारत के हथियार देश की आजादी के 75 साल के दौर के हथियारों से बहुत अलग दिखेंगे। निर्देशित ऊर्जा हथियार (डीईडब्ल्यू) और हाइपरसोनिक हथियारों का पहले ही परीक्षण और उपयोग किया गया है। डीईडब्ल्यू, विशेष रूप से लेजर, पारंपरिक हथियारों पर महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं। हमारे रक्षा उद्योगों को इन हथियारों के विकास को आगे बढ़ाने की जरूरत है और वांछित मारक क्षमता और सटीकता प्राप्त करने के लिए उन्हें हवाई ‘प्लेटफॉर्म’ पर एकीकृत करने की भी जरूरत है।

प्रश्न-4. भारत-अफ्रीका का नौ दिवसीय सैन्य अभ्यास पुणे में चल रहा है। इसके क्या व्यापक प्रभाव देखते हैं आप?

उत्तर- यह अभ्यास बहुत जरूरी है। भारत और अफ्रीका के 23 देशों ने पुणे में नौ दिवसीय सैन्य अभ्यास शुरू किया उसका उद्देश्य समग्र सैन्य सहयोग का विस्तार करना है। इस अभ्यास में भारत में निर्मित नयी पीढ़ी के कई उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि शामिल देशों के सैनिकों को उनके प्रभाव से अवगत कराया जा सके। अफ्रीका-भारत फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास में भाग लेने वाले अफ्रीकी देशों में बोत्सवाना, कैमरून, मिस्र, घाना, केन्या, लेसोथो, मलावी, मोरक्को, नाइजर, नाइजीरिया शामिल हैं। कांगो गणराज्य, रवांडा, सेशेल्स, सेनेगल, सूडान, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, युगांडा, जाम्बिया और जिम्बाब्वे भी इस सैन्य अभ्यास में भाग ले रहे हैं। भारत की अफ्रीका तक पहुंच को ध्यान में रखते हुए भारतीय सेना संयुक्त अभ्यास की मेजबानी कर रही है।

प्रश्न-5. सेनाध्यक्ष ने कहा है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष से ‘हार्ड पावर’ की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा है कि रूस-यूक्रेन से भविष्य की लड़ाई छोटी और तेज होने की धारणा गलत साबित हुई है और ‘हार्ड पावर’ की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है। उन्होंने इसके साथ ही रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर दिया है। हम आपको बता दें कि ‘हार्ड पावर’ का अभिप्राय राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति से है जिसका इस्तेमाल प्रभावित करने के लिए किया जाता है। हमें जनरल पांडे का भाषण पूरा सुनना चाहिए उन्होंने भारत की ‘विवादित सीमा की विरासत’ के प्रति आगाह किया और ‘ग्रे जोन आक्रमकता’ के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि यह संघर्ष समाधान के लिए सबसे अधिक अपनाई जाने वाली रणनीति बनती जा रही है। ‘ग्रे जोन आक्रमकता’ सहयोग व सैन्य संघर्ष की बीच की स्थिति है जिसमें में राज्य और गैर राज्यीय शक्तियां मिलकर कार्रवाई करती हैं जो पूर्ण सैन्य कार्रवाई से नीचे का क्रम है। देखा जाये तो मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष कुछ मूल्यवान सीख देता है। हार्ड पावर की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि जमीन युद्ध का निर्णायक स्थान है और विजय का भाव भूमि केंद्रित है। युद्ध की अवधि को लेकर बनी धारणा पर पुन: मूल्यांकन करने की जरूरत है। कुछ समय पहले जो हम छोटी और तेज गति से होने वाले युद्ध की बात कर रहे थे लगता है कि गलत धारणा साबित हुई है और हमें लंबी अवधि के लिए पूर्ण संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है।

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