Shaurya Path: Russia-Ukraine, India-US, India-Germany, Canada-Khalistan, Jaishankar Africa-Namibia Visit और PM Modi US Visit से जुड़े मुद्दों पर Brigadier DS Tripathi (R) से बातचीत

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने यूक्रेन मुद्दे पर कहा कि दुनिया सोच रही थी कि कहीं यूक्रेन पर परमाणु हमला नहीं हो जाये। वह तो हुआ नहीं लेकिन इस वॉटर बम ने जो बर्बादी की है वह एक बड़ी त्रासदी है। इस घटना ने दुनिया भर की सेनाओं को कई सबक भी दिये हैं कि ऐसा भी किया जा सकता है।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात, अमेरिका और जर्मनी के रक्षा मंत्रियों की भारत यात्रा, कनाडा में चरमपंथियों को मिलते महत्व, विदेश मंत्री एस. जयशंकर की दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया की यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से जुड़े मुद्दों पर बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. रूस-यूक्रेन युद्ध के ताजा हालात क्या हैं। बमबारी से दहला यूक्रेन अब पानी-पानी भी हो चुका है। एक खबर यह भी है कि रूस को अपने कब्जाये इलाके में से कुछ को छोड़ना भी पड़ा है। यह सब क्या दर्शाता है?

उत्तर- दुनिया सोच रही थी कि कहीं यूक्रेन पर परमाणु हमला नहीं हो जाये। वह तो हुआ नहीं लेकिन इस वॉटर बम ने जो बर्बादी की है वह एक बड़ी त्रासदी है। इस घटना ने दुनिया भर की सेनाओं को कई सबक भी दिये हैं कि ऐसा भी किया जा सकता है। इस घटना के बाद अरुणाचल सीमा पर चीन ने जो डैम बनाये हुए हैं उसको लेकर हमें सावधान हो जाना चाहिए। जहां तक यूक्रेन में बांध टूटने से आई बाढ़ की बात है तो उससे सर्वाधिक नुकसान यूक्रेन को ही उठाना पड़ा है। रूस के कब्जे वाले क्षेत्र में भी कई लोगों की मौत की खबर है। यह यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद 15 महीनों से अधिक समय में एक बड़ा पर्यावरणीय संकट है। रूस के नियंत्रण वाला नोवा कखोव्का शहर उस स्थान से पांच किलोमीटर दूर है जहां कखोव्का बांध टूटा है। बताया जा रहा है कि नाइपर नदी के पास रूस और यूक्रेन नियंत्रित इलाकों से छह हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा गया है तथा कई शहर और गांव पानी में डूब गए हैं। यह नदी लड़ाई का मोर्चा बनी हुई है। वहीं, राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने भी बांध के टूटने से हुए नुकसान का जायजा लेने के बाद कहा है कि वह नागरिकों को निकालने के प्रयासों का आकलन करने में मदद कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि बाढ़ का स्तर सामान्य से 5.6 मीटर ज्यादा था और क्षेत्र का करीब 600 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा पानी में डूबा हुआ है जो रूसी नियंत्रण वाले पूर्वी तट का दो-तिहाई से ज्यादा हिस्सा है। इस घटना को लेकर वैश्विक नेताओं के बयान आना भी शुरू हो गये हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि बांध को नष्ट करना एक ‘हमला’ है और ‘अत्याचारी कृत्य’ है। यूक्रेन के अधिकारियों ने रूस पर जानबूझकर बांध को तबाह करने का आरोप लगाया है, क्योंकि यह रूस के बलों वाले इलाके में स्थित था जबकि रूस ने बांध टूटने के लिए यूक्रेन की गोलाबारी को जिम्मेदार ठहराया है। कौन इस घटना के लिए जिम्मेदार है और कौन नहीं, यह सच शायद ही सामने आ पाये लेकिन इसने यूक्रेनी जनता पर मुश्किलों का एक बड़ा पहाड़ तो तोड़ ही दिया है।

प्रश्न-2. हाल ही में अमेरिका और जर्मनी के रक्षा मंत्री भारत आये। इस दौरान रक्षा संबंधों को क्या मजबूती मिली और भारत किस लिहाज से लाभ में रहा? इसके अलावा जर्मनी के रक्षा मंत्री ने कहा है कि रूसी हथियारों पर भारत की निर्भरता सही नहीं है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

उत्तर- चीन की बढ़ती चुनौतियों के बीच भारत और अमेरिका ने रक्षा क्षेत्र में अपनी साझेदारी को और मजबूत करते हुए कई बड़े ऐलान किये हैं। खास बात यह है कि दोनों देश सिर्फ चीन ही नहीं बल्कि आगे आने वाली सभी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भी अपने रक्षा संबंधों को नई दिशा दे रहे हैं। अमेरिकी रक्षा मंत्री का भारत का यह दौरा इस मायने में भी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि 15 दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा पर जाने वाले हैं। अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भारत के अपने समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ व्यापक चर्चा के बाद कहा कि भारत और अमेरिका ने रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिए एक महत्वाकांक्षी रूपरेखा तैयार करने का फैसला किया है। ऑस्टिन ने भारत-अमेरिका वैश्विक सामरिक साझेदारी को मुक्त एवं खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ‘‘आधारशिला’’ भी बताया। अमेरिकी रक्षा मंत्री ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी सार्थक चर्चा की। देखा जाये तो भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी तेजी से बढ़ रही है और हम रक्षा औद्योगिक सहयोग का विस्तार करने पर विचार कर रहे हैं।

वहीं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के मुद्दे पर अमेरिका के रक्षा मंत्री के साथ रणनीति बनाने के बाद भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जर्मनी के रक्षा मंत्री के साथ द्विपक्षीय और क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अहम वार्ता की। दोनों देशों के बीच गहराती रक्षा साझेदारी चीन के लिए नींद उड़ाने वाली बात तो है ही साथ ही इससे रूस के भी कान खड़े हो गये हैं। भारत और जर्मनी ने अहम रक्षा मंचों को साथ मिलकर विकसित करने के तरीकों पर तो विचार विमर्श किया ही है साथ ही छह स्टील्थ पनडुब्बी खरीदने के लिए भारतीय नौसेना के 43,000 करोड़ रुपये के अनुबंध को ध्यान में रखते हुए जर्मन रक्षा कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) और सरकारी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) ने इस परियोजना की बोली लगाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए। इस परियोजना को ‘मेक इन इंडिया’ की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक बताया जा रहा है। जून 2021 में रक्षा मंत्रालय ने भारतीय नौसेना के लिए छह पारंपरिक पनडुब्बियों को देश में ही बनाने की इस बड़ी परियोजना को मंजूरी दी थी। ये पनडुब्बियां रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत बनायी जाएंगी जो घरेलू रक्षा निर्माताओं को आयात पर निर्भरता कम करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले सैन्य मंच बनाने के वास्ते प्रमुख विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की अनुमति देता है।

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जहां तक जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस का यह कहना है कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है। यह उनका अपना मत हो सकता है। भारत किससे हथियार खरीदता है और किससे नहीं यह भारत ही अपने सामरिक और आर्थिक हितों को देखते हुए तय करेगा। जहां तक जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस की अपने भारतीय समकक्ष राजनाथ सिंह के साथ मुलाकात की बात है तो इसके बारे में बताया गया है कि यह वार्ता प्रमुख सैन्य मंचों के संयुक्त विकास और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग पर केंद्रित रही। वार्ता से परिचित अधिकारियों ने कहा है कि भारतीय पक्ष ने पिस्टोरियस को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की आक्रामकता के बारे में अवगत कराया और पश्चिमी देशों से पाकिस्तान को महत्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियां मिलने के संभावित जोखिमों पर नयी दिल्ली की आशंकाओं से भी अवगत कराया। वार्ता के बाद, पिस्टोरियस ने संवाददाताओं से कहा कि नयी दिल्ली के साथ बर्लिन के रणनीतिक संबंध हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अप्रत्याशित स्थिति के संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। उन्होंने भारत के साथ रक्षा संबंधों को और मजबूत करने के लिए जर्मनी के दृष्टिकोण का भी संकेत दिया। उन्होंने कहा कि भारत को हथियार देने के लिए यूरोप की अनिच्छा के मद्देनजर नयी दिल्ली ने रूस की ओर देखा। पिस्टोरियस ने भारत के साथ रक्षा संबंधों पर एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, "हम अब महसूस कर रहे हैं कि रूस का सितारा डूब रहा है।" उन्होंने कहा, "निश्चित रूप से हमने रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के बारे में भी बात की थी। युद्ध का प्रभाव यहां तक, दुनिया के हर कोने में है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है और भारत हथियारों के लिए रूस पर अपनी निर्भरता को महत्वपूर्ण रूप से तथा जल्द कम करने की बहुत कोशिश कर रहा है जो वर्तमान में 60 प्रतिशत पर है।’’

प्रश्न-3. कनाडा में लगातार चरमपंथियों को महत्व दिया जा रहा है। हाल में ब्रैम्पटन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाते हुए झांकी निकाले जाने की घटना सामने आई है। इसको कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- कनाडा में जो कुछ हो रहा है वह उस देश के लिए भी ठीक नहीं है। कनाडा में कभी हिंदू मंदिरों पर हमला होता है, कभी भारत से जुड़े संस्थानों को निशाना बनाया जाता है तो कभी खालिस्तान के समर्थन में नारेबाजी की जाती है और अब जो कुछ हुआ है वह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इसलिए भारत सरकार ने बड़े कठोर शब्दों में इस मामले को लेकर कनाडा के समक्ष अपनी आपत्ति भी दर्ज कराई है। भारत ने ब्रैम्पटन में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को दर्शाते हुए झांकी निकाले जाने की घटना के दृश्य सोशल मीडिया पर आने के बाद कनाडा पर अलगाववादियों एवं चरमपंथियों को महत्व देने को लेकर निशाना साधा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सही कहा है कि कनाडा का अपनी जमीन से भारत विरोधी तत्वों को काम करने की अनुमति देना न केवल उसके लिए बल्कि द्विपक्षीय संबंधों के लिए भी ठीक नहीं है। इसके अलावा, भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके ने भी ट्वीट किया है कि हिंसा या घृणा के महिमामंडन के लिए कनाडा में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा है कि कनाडा में एक कार्यक्रम की खबरों से मैं स्तब्ध हूं जिसमें दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का उत्सव मनाया गया। कनाडा में हिंसा या घृणा का महिमामंडन करने के लिए कोई स्थान नहीं है। 

प्रश्न-4. विदेश मंत्री एस. जयशंकर का दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया का दौरा किन मायनों में भारत के लिए सार्थक रहा?

उत्तर- विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया की अपनी यात्रा के दौरान क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रम, वैश्विक आर्थिक सुधार, द्विपक्षीय संबंधों तथा ब्रिक्स सहित बहु पक्षीय संस्थाओं के कामकाज के बारे में चर्चा की और भारत का पक्ष रखा। इस यात्रा से दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के साथ उच्च स्तरीय संवाद का अवसर प्राप्त हुआ। साथ ही इन देशों के साथ पहले से मजबूत दोस्ताना संबंधों को प्रगाढ़ बनाने पर चर्चा करने का मौका मिला। जयशंकर ने 1-6 जून तक दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया की यात्रा की थी। दक्षिण अफ्रीका की यात्रा के दौरान केप टाउन में जयशंकर ने ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक और फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया था। विदेश मंत्री जयशंकर ने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स की बैठक के दौरान क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाक्रम, वैश्विक आर्थिक सुधार, तथा ब्रिक्स सहित बहु पक्षीय संस्थाओं के कामकाज के बारे में चर्चा की और भारत का पक्ष रखा। बैठक की समाप्ति पर एक जून को ब्रिक्स समूह के विदेश मंत्रियों का संयुक्त बयान जारी किया गया। ब्रिक्स समूह में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।

जयशंकर ने दक्षिण अफ्रीका की विदेश मंत्री नालेदी पैंडोर और बैठक में हिस्सा लेने वाले ब्रिक्स समूह के कुछ अन्य विदेश मंत्रियों के साथ अलग अलग बातचीत की। जयशंकर ने ब्रिक्स के अन्य मंत्रियों के साथ दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति से भी भेंट की। इसके अलावा, केप टाउन में विदेश मंत्री ने भारतीय समुदाय के लोगों के साथ संवाद किया जहां उन्होंने लोगों को दक्षिण अफ्रीका के साथ 30 वर्षों के राजनयिक संबंधों और ब्रिक्स की 15 वर्षों की यात्रा तथा वर्तमान सरकार के नौ वर्षों की उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा, विदेश मंत्री जयशंकर ने 4-6 जून तक नामीबिया की यात्रा की जो विदेश मंत्री के रूप में उनकी नामीबिया की पहली यात्रा थी। इस दौरान जयशंकर ने राष्ट्रपति हेज गिनगॉब से भेंट की तथा उप प्रधानमंत्री/विदेश मंत्री नेतुम्बो नांदी दैतवाह के साथ संयुक्त आयोग के उद्घाटन सत्र की सह अध्यक्षता की। वहां विदेश मंत्री ने भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया और भारतीय हीरा कारोबारी समुदाय के साथ बैठक की। विदेश मंत्री ने उप प्रधानमंत्री की मौजूदगी में विंडहोक में सूचना प्रौद्योगिकी में भारत नामीबिया उत्कृष्ठता केंद्र का औपचारिक उद्घाटन भी किया।

प्रश्न-5. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा पर जाने वाले हैं। दोनों देशों के गहराते रिश्तों और चीन की बढ़ती चुनौतियों के बीच यह यात्रा किन उद्देश्यों को पूरा करने वाली है?

उत्तर- प्रधानमंत्री की इस अमेरिका यात्रा पर पूरे विश्व की नजरें लगी हुई हैं। भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा पर जा रहे मोदी अमेरिकी संसद को भी संबोधित करेंगे जोकि हर भारतीय के लिए गौरव का अवसर होगा। प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को लेकर जो उत्साह अमेरिका में देखा जा रहा है वह भी भारत की बढ़ती ताकत को प्रदर्शित कर रहा है। इसके अलावा, वर्तमान में अमेरिका-भारत सहयोग काफी मायने रखता है क्योंकि हम सभी तेजी से बदलती दुनिया का सामना कर रहे हैं। हम चीन की दादागिरी और जबरदस्ती तथा यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता देख रहे हैं। देखा जाये तो दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के रूप में, भारत और अमेरिका की नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को संरक्षित करने में एक अनूठी भूमिका भी है। दुनिया देख रही है कि कैसे दो महान शक्तियों के बीच तकनीकी नवाचार और बढ़ता सैन्य सहयोग वैश्विक कल्याण के लिए एक शक्ति हो सकता है। इसके अलावा, अमेरिका-भारत साझेदारी हिंद-प्रशांत और व्यापक दुनिया के लिए एक मुक्त और समृद्ध भविष्य सुरक्षित करने में मदद करेगी।

अमेरिका ने जून, 2016 में भारत को एक ‘बड़े रक्षा साझेदार’ का दर्जा दिया था, जिससे अहम रक्षा उपकरणों एवं प्रौद्योगिकी को साझा करने का मार्ग प्रशस्त हुआ। पिछले साल मई में एक बड़े कदम के तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी तथा रक्षा औद्योगिक सहयोग बढ़ाने के लिए ‘अमेरिका-भारत अहम एवं उभरती प्रौद्योगिकी पहल’ की घोषणा की थी। आईसीईटी से दोनों देशों की सरकार, शिक्षा जगत और उद्योग के बीच कृत्रिम मेधा (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी और 6जी, बायोटेक, अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध स्थापित होने की उम्मीद है।

इसके अलावा, मोदी और बाइडन के रिश्तों का जिक्र करें तो यह बेहद शानदार हैं। विभिन्न मंचों पर मोदी और बाइडन जब मिलते हैं तो उनकी मित्रता देखते ही बनती है। सबसे खास बात यह है कि अगले साल मोदी और बाइडन, दोनों को ही चुनावों का सामना करना है, इसलिए मोदी की इस यात्रा का रणनीतिक के साथ ही राजनीतिक महत्व भी है। मोदी अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर तो जा ही रहे हैं साथ ही इसी साल सितंबर में जब जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक नई दिल्ली में होगी तब अमेरिकी राष्ट्रपति भी उसमें शामिल होंगे।

जहां तक मोदी की अमेरिका यात्रा का वहां की राजनीति के हिसाब से महत्व है तो आपको बता दें कि अमेरिका इस समय महंगाई और मंदी के दौर से गुजर रहा है, ऐसे में उसे भारत की मदद की जरूरत है ताकि बाडइन अगले साल होने वाले चुनावों के दौरान मतदाताओं के कोप से बच सकें। इसी प्रकार मोदी भी भारत को तकनीक और निवेश दिलाने, भारत के सेमीकंडक्टर अभियान के लिए दोनों देशों के कार्यबल के लिए सहयोग बढ़ाने तथा अनिवासी भारतीयों के तमाम मुद्दों को सुलझाने के लिए बाइडन का सहयोग ले सकते हैं।

इसके अलावा, इस साल की शुरुआत में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान कई महत्वपूर्ण तकनीकी समझौते भी किये थे जिससे भारत को सैन्य रणनीतिक रूप से भी कई लाभ होंगे। उसी दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका की राजकीय यात्रा का निमंत्रण दिया था। डोभाल की यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका तीन अरब डॉलर से अधिक की लागत वाले 30 ‘एमक्यू 9बी प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन’ के सौदे को अंतिम रूप देने के एकदम करीब पहुँच गये थे। माना जा रहा है कि मोदी की यात्रा के दौरान इस सौदे पर हस्ताक्षर किये जा सकते हैं। इन ड्रोन्स की मदद से भारत को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और हिंद महासागर के आसपास अपने समग्र निगरानी तंत्र को मजबूत करने में मदद मिलेगी। एमक्यू 9बी प्रीडेटर आर्म्ड ड्रोन को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा तथा रक्षा जरूरतों के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन जल्द से जल्द इस सौदे को अमली जामा पहनाना चाहता है, क्योंकि इससे अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और राजनीतिक रूप से भी यह सौदा फायदेमंद होगा।

मोदी की अमेरिका यात्रा के रणनीतिक महत्व पर गौर करें तो आपको बता दें कि इस दौरान इस बात पर जोर रहेगा कि ‘क्वाड’ जैसे समूहों को कैसे मजबूत किया जाये। बताया जा रहा है कि इस यात्रा के दौरान दोनों नेताओं को कारोबार, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, उद्योग, स्वच्छ ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, अनुसंधान, लोगों के बीच सम्पर्क सहित साझा हितों से जुड़े द्विपक्षीय मुद्दों की समीक्षा करने का अवसर प्राप्त होगा। यह भी बताया जा रहा है कि मोदी और बाइडन भारत-अमेरिका गठजोड़ को मजबूत बनाने और जी-20 सहित बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग बढ़ाने के रास्ते तलाशेंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से प्रधानमंत्री मोदी के लिए 22 जून को राजकीय भोज का आयोजन भी किया जायेगा जिसमें शामिल होने के लिए अमेरिका की बड़ी हस्तियों के बीच जो मारामारी मची हुई है उसका जिक्र तो खुद अमेरिकी राष्ट्रपति कर ही चुके हैं।

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