EVM Hacking Reality: क्या EVM को हैक करना है बहुत आसान? आम आदमी कैसे करे इस पर भरोसा, सारे सवालों के जवाब यहां जानें

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अभिनय आकाश । Feb 12 2024 6:45PM

ईवीएम और वीवीपैट पर तमाम तरह के आरोपों और सवालों के बीच आज हमने सोचा कि क्यों न ऐसे शख्स से बात की जाए जो देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। 6 साल तक चुनाव आयोग में रहे। जिनके चुनाव आयोग में रहने के दौरान देश मे लोकसभा चुनाव भी हुए।

"If Independence is granted to India They will fight amongst themselves for power and India will be lost in political squabbles." विन्स्टर्न चर्चिल ने जिस देश के बारे में ऐसे विचार रखे थे कैसे उस देश ने आजादी के 76वें साल में भी इस लोकतंत्र की अवधारणा को कायम रखा है। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थापना हुई। इस डेमोक्रेसी का फंक्शन था फ्री एंड फेयर इलेक्शन। सभी के मन में ये सवाल थे कि अभी अभी आजाद हुए इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में सफलतापूर्वक चुनाव कैसे कराए जाएंगे। लेकिन सभी आशंकाओं को झुठलाते हुए भारत ने न केवल चुनावों का सफल आयोजन किया बल्कि कई ऐतिहासिक कदम भी उठाए। 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग को स्थापित किया गया। मार्च 1950 में सुकुमार सिंह को देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किये गए। दो साल बाद 1952 में एक साथ राज्यों और लोकसभा के चुनाव करवाये गए। तब से आज तक देश में होने वाले हर छोटे बड़े चुनाव कराने की जिम्मेदारी इलेक्शन कमीशन की होती है। लेकिन चुनाव आते ही कई सवाल और आरोप भी लगते रहते हैं। 

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ईवीएम और वीवीपैट पर तमाम तरह के आरोपों और सवालों के बीच आज हमने सोचा कि क्यों न ऐसे शख्स से बात की जाए जो देश के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे। 6 साल तक चुनाव आयोग में रहे। जिनके चुनाव आयोग में रहने के दौरान देश मे लोकसभा चुनाव भी हुए। दर्ज़नो राज्यों में विधान सभा चुनाव हुए। हाल ही में इनकी इंडियाज एक्सपेरिमेंट विद डेमोक्रेसी: द लाइफ ऑफ ए नेशन थ्रू इट्स इलेक्शन' नामक किताब में चुनाव आयोग की भूमिका, चुनावी, कानूनी और नियामक मुद्दों का एक ठोस विश्लेषण प्रदान किया गया। 1971 बैच के आईएएस अधिकारी और भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी सर आज हमारे साथ जुड़ रहे हैं। एस वाई कुरैशी सर आपका बहुत बहुत स्वागत है। 

सवाल: ईवीएम और वीवीपैट को लेकर हर चुनाव के बाद विपक्षी दलों की तरफ से आरोप लगाए जाते हैं। ये जो आरोप है उसकी कोई बुनियाद भी है, या बीजेपी के शब्दों में कहे तो हार की हताशा में लगाए गए आरोप हैं और वाकई में ईवीएम को टैम्पर नहीं किया जा सकता है? इसे थोड़ा आसान भाषा में हमारे दर्शकों को समझाएं।

जवाब: पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि ईवीएम जब से शुरू हुई है उसके ऊपर हर पार्टी ने कभी ना कभी अटैक किया है। बीजेपी ने सबसे बड़ा अटैक इसके ऊपर किया था। 2009 में इन्होंने इसके ऊपर एक किताब भी लिखी थी। हर पार्टी इस पर अटैक करती रही है। लेकिन इलेक्शन कमिशन की कोशिश होती है कि लोगों को एक्सप्लेन करें कि यह हैकिंग के आरोप पूरी तरह से गलत है। यह संभव नहीं है। मैं 2010 में के इलेक्शन कमिश्नर बना था। उसे वक्त मैंने पहले काम किया था कि सारी राजनीतिक पार्टियों को बुलाया। उसे समय एवं पर बीजेपी का अटैक पीक पर था। मैंने जो पार्टी मीटिंग बुलाकर यह जानना चाहा कि आपको क्या शिकायत है। चंद्रबाबू नायडू की लीडरशिप में सारे आए। उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कह रहे कि ईवीएम हैक हुए हैं। हम ट्रांसपेरेंसी की बात कर रहे हैं यानी जब हम बटन दबाते हैं तो मशीन में वोट चला जाता है। अब वह मशीन में ठीक जगह गया या नहीं वह आम आदमी को तो दिखाई नहीं देगा। इस वजह से लोगों के अंदर पारदर्शिता वाली बात आती है तो हमने इसका हल उन्हीं से पूछा। तो उन्होंने कहा की वीवीपैट अगर शुरू कर दे तो बात खत्म हो जाएगी। वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल में दो बातें संलग्न है। वाटर वेरी फाइबर यानी वाटर फीडिंग वेरीफाई करें कि हां यही आदमी मैं चुना है। पेपर ऑडिट ट्रेल यानी एक सबूत रहे पेपर की शक्ल में जब चाहे आप उसे गिन लें कि मशीन में जितने कैंडिडेट के वोट दिखाए गए थे उतने ही पर्ची में भी है या नहीं। उनका यह आइडिया इतना ठीक था कि हमने इस मीटिंग में वीवीपैट शुरू करने का फैसला किया। हमने दोनों कंपनियों को वीवीपैट डेवलप करने का आदेश दिया। हमारी पांच लोगों की इंडिपेंडेंस एक्सपर्ट कमेटी है। यह पांच अलग-अलग आईआईटी के इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर के प्रोफेसर हैं। जब तक वह सर्टिफाई नहीं करते तब तक हम कोई टेक्नोलॉजी अडॉप्ट नहीं करते। हमने उनसे भी कहा कि आप कंपनी के ऊपर सुपरवाइज कीजिए। एक साल लगा और वीवीपैट डेवलप होकर आई। फिर टेस्ट हुआ। पहली बार में काफी नाकामी हुई। फिर दूसरे टेस्ट में कामयाबी मिली। फिर उसके बाद से 2012 से वीवीपैट का इस्तेमाल हो रहा है। 2013 में यह केस सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट में हमने बताया कि हम 20 हजार मशीन बना चुके हैं। दो-तीन चुनाव जिसमें शीला दीक्षित का दिल्ली चुनाव और नागालैंड का चुनाव करा चुके हैं। यह ट्रेड टेस्टेड है। सुप्रीम कोर्ट ने फिर इसकी सराहना करते हुए भारत सरकार को फंड उपलब्ध कराने के आदेश दिए। पूरे देश के चुनाव उससे हो सके। वीवीपैट बनने के बाद से जिसकी मांग राजनीतिक दलों ने ही कि थी। उसके बाद से ये शिकायत खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन अब जो शिकायतें हैं वो वीवीपैट की काउंटिंग को लेकर है। कितनी वीवीपैट काउंट होनी चाहिए। इसको लेकर मुद्दा है। चुनाव आयोग ने कहा कि हर विधानसभा क्षेत्र में जिसमें 250 से 300 बूथ होते हैं। उनमें से एक का अकाउंट कर ले तो उसे एक सैंपल हो जाएगा की मशीन ठीक चल रही है। केस सुप्रीम कोर्ट में गया। राजनीतिक दलों ने कहा कि 10% से 20% होने चाहिए। फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर विधानसभा क्षेत्र की पांच मशीन काउंट कर लीजिए। वही प्रेक्टिस चली आ रही है। लाखों मशीन अकाउंट की गई, लाखों पर्ची अकाउंट की गई है। कोई गड़बड़ी कभी नहीं निकली।

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सवाल: 2009 में बीजेपी ही ईवीएम का विरोध करती नजर आई थी। भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने ‘डेमोक्रेसी एट रिस्क’ नाम से किताब भी लिखी थी। खुद लालकृष्ण आडवाणी ने किताब की प्रस्तावना लिखी थी। ऐसे में वो क्या रास्ता हो सकता है जिससे देश के लोग या कहे कि असंतुष्ट वर्ग ईवीएम पर भरोसा करें? 

जवाब: पेपर बैलेट पर वापस जाने वाली बात बिल्कुल गलत है। हम भूल गए कि पेपर बैलेट क्यों खत्म किया गया था। बूथ कैपचरिंग का दौर सबको याद होगा। अपने ताजा चंडीगढ़ का मामला देखा। सिर्फ 34 बैलट पेपर थे जिसमें धांधली कर दी गई। ब्लैक पेपर में धांधली कैसे की जा सकती है कि आप 34 में से 8 वोट अमान्य कर दिए गए। ईवीएम में कोई वोट अमान्य नहीं होता। अपने बटन दबाया तो सीधा मशीन में जाता है। 0 अमान्य वोट होते हैं।चंडीगढ़ प्रकरण के बाद कुछ लोग कहते हैं कि ईवीएम से करना चाहिए। तो भाई, आप फैसला कर लीजिए की बैलेट पेपर सही है या ईवीएम। मैं समझता हूं कि बैलेट पेपर पर जाने का कोई मतलब नहीं। वीवीपैट को सुधारने की जरूरत है। दो सुधार उसमें है। पहला वोटर वारीबलिटी यानी जब आपने बटन दबाया तो उसके ऊपर एक स्क्रीन है। उसके स्क्रीन के ऊपर जो कैंडिडेट को आपने चुना है। उसका सिंबल और नाम सामने आ जाता है। आप संतुष्ट हो जाते हैं कि हां इसी को मैंने चुना था। 7 सेकंड के अंदर वह ऑटोमेटिक सील बॉक्स में चली जाती है। मैं इसके अंदर एक सुझाव देता हूं कि 7 सेकंड में वोटर उसे रजिस्टर नहीं कर पाता। उसका ध्यान इधर-उधर रहता है। वहां दो बटन ले जा सकते हैं एक लाल और एक हरा बटन। अगर आप संतुष्ट है कि हां यही मैंने उम्मीदवार चुना है तो हरा बटन दबा कर वेरीफाई कर दीजिए। लेकिन अगर वह गलत निकल गया यानी मैंने किसी और को बटन दबाया और यहां कुछ और दिख रहा है। लाल बटन दबा दीजिए अलार्म बजने के बाद मशीन की जांच होगी। यह रिफॉर्म लाया जा सकता है। इलेक्शन कमीशन ने पहले से ही अपनी वेबसाइट पर FAQ डाला है। उसमें 60-70 सवाल है और उनके जवाब है। जिसमें से 5-6 तो ईवीएम और वीवीपीएटी को लेकर ही है। कितने लोगों ने से पढ़ा है। बल्कि जो ईवीएम को कोस रहे हैं उनसे पहले पूछे कि FAQ पढ़ें अगर नहीं पढ़ें तो आप चुप रहिए। पहले तो वह पढ़िए उसमें कोई गलती नजर आए तो उसको प्वाइंट आउट करके उसे उठाएं। जिससे चुनाव आयोग आपके ऐतराज़ का जवाब दे। आपने इलेक्शन कमीशन के जवाब तो पढ़े ही नहीं बस ईवीएम को बुरा भला कहना फैशन हो गया।

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