कश्मीरी पंडितों की सामूहिक हत्या की जांच कराने से इंकार

Kashmiri Pandits’ killings: Supreme Court refuses to reopen 215 cases
[email protected] । Jul 24 2017 1:22PM

पीठ ने कहा कि करीब 27 साल बीत गए हैं और हत्या, आगजनी एवं लूटपाट के उन मामलों में सबूत एकत्र करना बहुत मुश्किल होगा जिनके कारण घाटी से कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था।

उच्चतम न्यायालय ने उस याचिका की सुनवाई करने से आज इनकार कर दिया जिसमें वर्ष 1989-90 में घाटी में आतंकवाद के चरम पर होने के दौरान 700 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या समेत अन्य अपराधों के लिए अलगाववादी नेता यासीन मलिक समेत विभिन्न लोगों के खिलाफ जांच करने और उन पर मुकदमे चलाने का अनुरोध किया गया था। प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि करीब 27 साल बीत गए हैं और हत्या, आगजनी एवं लूटपाट के उन मामलों में सबूत एकत्र करना बहुत मुश्किल होगा जिनके कारण घाटी से कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था।

पीठ ने कहा, ‘‘आप (याचिकाकर्ता) पिछले 27 वर्षों तक बैठे रहे। अब हमें बताइए कि सबूत कहां से आएंगे?’’ ‘रूट्स ऑफ कश्मीर’ संगठन की ओर से पेश हुए वकील विकास पडोरा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को घाटी से अपने घर छोड़कर जाना पड़ा और वे जांच में शामिल नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि देरी हुई लेकिन न तो केंद्र, न राज्य सरकार और न ही न्यायपालिका ने आवश्यक कार्रवाई करने की ओर पर्याप्त ध्यान दिया। संगठन ने आरोप लगाया है कि 700 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या के संबंध में 215 प्राथमिकियां दर्ज की गईं और एक भी मामला उचित निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा। कश्मीरी पंडितों को आतंकवाद के चरम पर होने के दौरान धमकियों एवं हमलों की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर 1990 के दशक की शुरूआत में घाटी से पलायन करना पड़ा था।

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