कानूनी सहायता प्रदान नहीं की गई, अदालत ने बलात्कार, हत्या मामले को वापस निचली अदालत को भेजा

Karnataka High Court
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उसने कहा, ‘‘ निचली अदालत के लिए उन्हें जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना अनिवार्य था। निचली अदालत की ऐसी विफलता से, आरोपियों को प्रभावी बचाव या निष्पक्ष सुनवाई के बिना दोषी ठहराया गया जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।’’ मामले को निचली अदालत में वापस भेजते हुए, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि ‘‘निचली अदालत मामला पेश होने की तारीख से तीन महीने के भीतर जितनी जल्दी हो सके मुकदमे की सुनवायी पूरी करेगी।

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार एवं हत्या के लिए दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को वापस निचली अदालत में सुनवायी के लिए भेज दिया है क्योंकि उन्हें उस समय कानूनी सहायता प्रदान नहीं की गई थी। उच्च न्यायालय ने पाया कि आरोपियों ने जिस वकील को अपनी पैरवी के लिए रखा था वह नियमित रूप से अदालत में पेश नहीं होता था और वह गवाहों से जिरह करने में भी विफल रहा जिससे मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अदालत ने पाया कि ऐसे परिदृश्य में, आरोपियों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए थी जो कि निचली अदालत द्वारा प्रदान नहीं की गई, जिसने दूसरी ओर उन्हें दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी। नौ साल जेल में बिताने के बाद उन पर एक बार फिर मुकदमा चलाया जाएगा।

दो आपराधिक अपील बिहार की प्रतिमा देवी और मोहम्मद मुन्ना आलम द्वारा दायर की गईं। एक अन्य आरोपी, सुरेश कुमार, जो प्रतिमा देवी का पति है, को निचली अदालत ने बरी कर दिया था। प्रतिमा और सुरेश कुमार किरायेदार थे जो बेंगलुरु में पीड़िता के घर के बगल में रहते थे। मोहम्मद का प्रतिमा देवी के साथ कथित तौर पर अवैध संबंध था। वह (प्रतिमा देवी) नाबालिग लड़की को फुसलाकर घर पर ले आयी जहां मोहम्मद ने कथित तौर पर पीड़िता का यौन उत्पीड़न किया। जब लड़की ने शोर मचाया तो प्रतिमा देवी और मोहम्मद ने लड़की की गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। उसका शव चारपाई के नीचे छुपा दिया गया था। जब सुरेश कुमार घर लौटा और शव देखा, तो गिरफ्तारी के डर से वह और प्रतिमा देवी घर में ताला लगाकर भाग गए।

पीड़ित के माता-पिता ने किसी गड़बड़ी का संदेह होने पर दो दिन बाद अपने पड़ोसी का दरवाजा तोड़ा जहां उन्हें उनकी बेटी का शव मिला। मामले की जांच 2014 में महादेवपुरा पुलिस ने की थी। तीनों आरोपियों पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो), अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे। अतिरिक्त शहर दीवानी एवं सत्र न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई की और 10 अक्टूबर, 2018 को प्रतिमा देवी और मोहम्मद को बलात्कार और हत्या सहित चार मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सुरेश कुमार को केवल एक आरोप (अन्य दो के साथ मिलकर सबूत छिपाना और नष्ट करना) में दोषी पाया गया।

उसने चार वर्ष के कठोर कारावास की सजा पूरी कर ली। उच्च न्यायालय में, दोनों दोषियों के वकील ने दलील दी कि उनके बचाव पक्ष के वकील ने गवाह से जिरह नहीं की और इसलिए ‘‘उनकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई, इसलिए, दोषसिद्धि का निर्णय और सजा का आदेश दूषित हो गया।’’ न्यायमूर्ति के एस मुद्गल और न्यायमूर्ति के वी अरविंद की खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में आरोपी की ओर से दी गई दलीलों को वैध पाया। उच्च न्यायालय ने कहा कि यह निचली अदालत की विफलता है।

उसने कहा, ‘‘ निचली अदालत के लिए उन्हें जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के माध्यम से मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना अनिवार्य था। निचली अदालत की ऐसी विफलता से, आरोपियों को प्रभावी बचाव या निष्पक्ष सुनवाई के बिना दोषी ठहराया गया जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।’’ मामले को निचली अदालत में वापस भेजते हुए, उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि ‘‘निचली अदालत मामला पेश होने की तारीख से तीन महीने के भीतर जितनी जल्दी हो सके मुकदमे की सुनवायी पूरी करेगी।

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