Loksabha Election: 2007 में मायावती की यह रणनीति हुई थी सुपरहिट, क्या 2024 में दिला पाएगी जीत
मायावती के दलित और पिछड़ों की वोट पर अच्छी पकड़ रही है। दलित वोटों और दलित राजनीति की वजह से वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में शिखर पर पहुंचीं थीं। दलित, पिछड़ा, मुसलमान और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को वह एक बार फिर से एकजुट करने की कोशिश में जुट गई हैं। इसका नजारा मायावती के जन्मदिन पर मिला।
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती हमेशा प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखती हैं। हालांकि, यह बात भी सच है कि वर्तमान में उनकी पार्टी की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है। एक दौर था जब मायावती राजनीति के शिखर पर थीं। राजनीति के लिहाज से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में उनकी तूती बोलती थी। हालांकि, 2012 में चुनावी हार के बाद से उनकी पार्टी लगातार कमजोर होती गई। वर्तमान में स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सिर्फ एक सीट पर ही जीत सकी। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मायावती अब अपने पुराने फार्मूले पर काम कर रही हैं। यह वही फार्मूला है जो 2007 में सुपरहिट हो चुका है। 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती को पूर्ण बहुमत मिली थी और वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनी थीं।
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दरअसल, मायावती के दलित और पिछड़ों की वोट पर अच्छी पकड़ रही है। दलित वोटों और दलित राजनीति की वजह से वह उत्तर प्रदेश की राजनीति में शिखर पर पहुंचीं थीं। दलित, पिछड़ा, मुसलमान और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को वह एक बार फिर से एकजुट करने की कोशिश में जुट गई हैं। इसका नजारा मायावती के जन्मदिन पर मिला। उन्होंने दलित और मुस्लिम समाज को एकजुट होने की अपील की। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मैं अपने जन्मदिन के मौके पर दलित, आदिवासियों, पिछड़े, मुस्लिम और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समाज के लोगों को यह याद दिलाना चाहती हूं कि भारत के संविधान के मूल निर्माता एवं कमजोर, उपेक्षित वर्ग के मसीहा बाबा साहब अंबेडकर ने जातिवाद व्यवस्था के शिकार अपने लोगों के स्वाभिमान व उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए कानूनी अधिकार दिलाए थे। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि हमें आपस में भाईचारा पैदा कर केंद्र और राज्य की राजनीति की सत्ता की मास्टर चाबी अपने हाथों में लेनी होगी।
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मायावती की इस रणनीति से भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है। वर्तमान में देखें तो दलित और ओबीसी वोट लगातार भाजपा के पक्ष में जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर मायावती उत्तर प्रदेश में मजबूत होती हैं तो कहीं ना कहीं भाजपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है। दूसरी ओर अखिलेश यादव भी अब दलित और ओबीसी को साधने की कोशिश में लगे हैं। ऐसे में कहीं ना कहीं मायावती का यह प्लान उन्हें भी झटका दे सकता है। मायावती और अखिलेश यादव दोनों ही मुस्लिम वोट पर भी लगातार नजर रख रहे हैं। ऐसे में मुस्लिम वोट को लेकर दोनों में कंपटीशन की स्थिति पैदा हो सकती है। भले ही लोकसभा चुनाव में 1 साल से ज्यादा का वक्त है। लेकिन मायावती ने अपने संबोधन से अपनी रणनीति का खुलासा तो जरूर कर ही दिया है।
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