मायावती का दलित वोट अमित शाह ने ऐसे दरकाया
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भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हालांकि कुछ अलग सोचा और आश्चर्यजनक रूप से केवल 21 जाटव प्रत्याशियों को टिकट दिये जबकि ऐसी सीटों की संख्या 85 है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में ‘दलित वोट’ के साथ का दम भरने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती को शायद पहली बार विधानसभा चुनाव में करारा झटका लगा है। प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में उनकी पार्टी केवल 19 सीटें ही जीत पायी है। भाजपा और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए दलित सीटों पर जीत दर्ज करना बड़ी चुनौती थी। मायावती जाटव समुदाय की हैं और 2011 की जनगणना के मुताबिक दलित आबादी में जाटव 55 प्रतिशत हैं। जैसा चुनावी गणित कहता है कि इन सीटों पर जीतना है तो उसी समुदाय का प्रत्याशी खड़ा करना होगा। अमित शाह ने हालांकि कुछ अलग सोचा और आश्चर्यजनक रूप से केवल 21 जाटव प्रत्याशियों को टिकट दिये जबकि ऐसी सीटों की संख्या 85 है।
दलित में अन्य समुदायों के लिए भाजपा ने 49 सीटें अलग कर दीं। इनमें पासवान, कोरी, बाल्मीकि, धोबी और खटिक आते हैं। दलित वोट बैंक के सहारे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बन चुकी मायावती ने हालांकि 87 ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे। चुनावी नतीजों से साफ है कि इन सीटों पर बसपा इस बार औंधे मुंह गिर गयी। बसपा जहां 2012 में 80 विधायकों वाली पार्टी थी, वहीं इस बार केवल 19 विधायकों वाली पार्टी रह गयी है। यानी मायावती की अपील पर आंख बंद कर वोट देने वाले दलितों ने इस दफा दूसरे विकल्प की ओर ध्यान केन्द्रित किया।
मायावती ने इस बार चुनावी रैलियों में ऐसा जतलाया कि दलित वोट बैंक उनके ही कब्जे में है। मसलन वह जब मुसलमानों से बसपा को वोट देने की अपील करती थीं तो ये अवश्य कहती थीं कि बसपा का अपना ‘बेस वोट’ मजबूत है और वह भाजपा जैसी सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए सक्रिय और तत्पर है। इस बेस वोट में मुसलमान का वोट जुड़ जाए तो भाजपा कभी उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं बना सकेगी और बसपा की सरकार बनेगी। दलितों को ‘अपने घर की खेती’ मानने की भूल मायावती को भारी पड़ गयी। चुनाव हारने के बाद मायावती ने तर्क दिया कि मुसलमान वोट भी भाजपा को पड़ने का मतलब है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी थी। ये एक ऐसे नेता का बयान है, जो खुद को ‘दलित की बेटी’ कहती हैं और शनिवार को बसपा की शर्मनाक हार के बाद उनके सम्मान को भारी धक्का पहुंचा। इस बार के चुनाव में जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर मतदान किया, जिसका नतीजा है कि भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 325 सीटें हासिल हुईं जो अपने आप में एक रिकार्ड और ऐतिहासिक जीत है।
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