'न्यूनतम समर्थन मूल्य' या 'मुक्त बाजार व्यवस्था' क्या है किसानों की समस्या का समाधान

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किसानों को खेती की उपज के व्यापार की आजादी देश में स्वतंत्रता के बाद अपनी तरह की पहली शुरुआत थी, लेकिन अब इससे जुड़े कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय किया गया है, जो सही नहीं है। ऐसा लगता है कि एक साल से जारी किसान आंदोलन और कुछ राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनाव का उन पर (प्रधानमंत्री पर) दबाव था जिसके कारण यह निर्णय लिया गया।

तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद इस विषय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित समिति के सदस्य एवं शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घनवट से ‘के पांच सवाल’ और उनके जवाब : सवाल : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृषि कानून को वापस लेने की घोषणा को आप कैसे देखते हैं ? जवाब : किसानों को खेती की उपज के व्यापार की आजादी देश में स्वतंत्रता के बाद अपनी तरह की पहली शुरुआत थी, लेकिन अब इससे जुड़े कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय किया गया है, जो सही नहीं है। ऐसा लगता है कि एक साल से जारी किसान आंदोलन और कुछ राज्यों में आसन्न विधानसभा चुनाव का उन पर (प्रधानमंत्री पर) दबाव था जिसके कारण यह निर्णय लिया गया। हम आशा करते हैं कि कृषि सुधारों से संबंधित इन कानूनों के हमेशा के लिये रद्दी की टोकरी में नहीं डाला जायेगा और सभी पक्षकारों के साथ व्यापक चर्चा तथा संसद में विचार विमर्श करके कृषि सुधारों को लाया जायेगा। सवाल : कृषि क्षेत्र में आने वाले समय में किस प्रकार के सुधार कदम उठाये जाने की जरूरत है? जवाब :आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश में व्यापक कृषि नीति नहीं है और अभी तक हम अंग्रेजों की बनाई नीतियों पर ही चल रहे है जो किसानों को लूटने वाली थी। ऐसे में देश में कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार वाले कदमों की जरूरत है। किसानों को कृषि उपज के व्यापार की आजादी होनी चाहिए। किसान जहां चाहें और देश के जिस हिस्से में चाहे, वहां अपनी फसलों को बेच सकें। इसके साथ, किसानों को प्रौद्योगिकी सम्पन्न बनाये जाने की जरूरत है ताकि उन्हें दुनिया के किसी हिस्से में उपलब्ध उन्नत बीज सहित श्रेष्ठ कृषि पद्धति एवं तंत्र के बारे में जानकारी मिल सके। भारत में किसान नकारात्मक सब्सिडी प्राप्त कर रहा है और उसे व्यापक सब्सिडी मिलने की धारणा सही नहीं है। साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में किसानों को -14 प्रतिशत (नकारात्मक 14) सब्सिडी मिल रही है। ऐसे में किसानों को मिलने वाले सब्सिडी से जुड़े सभी आयामों पर व्यापक विचार किया जाए और किसानों को कर्ज मुक्ति दी जाए। किसानों को अच्छे उपकरण, खेत तक अच्छी सड़के, उद्योगों तक पहुंच, शीत भंडार गृह, प्रसंस्करण उद्योग सहित कृषि क्षेत्र में व्यापक आधारभूत ढांचे का विकास किया जाए। सवाल : उच्चतम न्यायालय ने समिति की रिपोर्ट जारी नहीं की है, इस रिपोर्ट में क्या प्रमुख सिफारिशें की गई हैं ? जवाब : यह रिपोर्ट गोपनीय दस्तावेज हैं हालांकि इसमें कृषि कानूनों में शामिल किये गए विवाद निवारण प्रणाली के संबंध में राजस्व अदालत को अधिकार दिये जाने के संबंध में भी सिफारिश की गयी है। समिति ने किसानों की शिकायतों एवं विवादों के निपटारे के लिये न्यायाधिकरण या परिवार अदालत की तर्ज पर एक व्यवस्था तैयार करने का सुझाव दिया है जहां सिर्फ किसानों से जुड़े मुद्दों की ही सुनवाई हो। हमने मंडी से संबंध में उपकर को लेकर भी सुझाव दिये हैं कि उपकर किससे लेना है। इसके अलावा कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) को लेकर भी कुछ सुझाव दिये हैं जहां हमारा मानना है कि प्रत्येक राज्य की परिस्थितियां और उपज भिन्न-भिन्न होती हैं। इसके अलावा वैकल्पिक फसल के संबंध में भी सुझाव दिये हैं। सवाल : न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिये किस प्रकार के कदम उठाने की जरूरत है जैसा कई किसान संगठन मांग कर रहे हैं। जवाब : आज की स्थिति में 23 फसलों के लिये ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिया जाता है। इसके अलावा सब्जियों, कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन, दुग्ध उत्पादन जैसे क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं है जबकि ये क्षेत्र सबसे तेज गति से बढ़ने वाले क्षेत्र हैं। यह देखना महत्वपूर्ण है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण माल की खरीद सरकार को करनी होगी। देश में 41 लाख टन अनाज के बफर स्टॉक की जरूरत होती है जबकि 110 लाख टन की खरीद करनी पड़ रही है। इतने खद्यान्न को रखने के लिये भंडारण क्षमता की कमी है जिसके कारण अनाज चूहे खा जाते है या सड़ जाते है और इसमें भ्रष्टाचार के मामले भी सामने आते हैं। ऐसे में किसानों की समस्या का समाधान ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ नहीं बल्कि ‘मुक्त बाजार व्यवस्था’ है जहां वे निर्बाध रूप से अपने उत्पादों को बेच सकें। सवाल: प्रधानमंत्री ने इस विषय पर एक नई समिति बनाने की बात कही है। इसका स्वरूप कैसा हो और क्या बिना संवैधानिक दर्जे के यह प्रभावी होगी? जवाब : सरकार को कृषि सुधारों के सम्पूर्ण आयामों पर विचार करने के लिये एक ऐसी समिति बनानी चाहिए जिसे संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो। इस समिति में कृषि विशेषज्ञ, मंत्रालयों के प्रतिनिधि, किसानों सहित किसान संगठनों के नेता, राजनीतिक दलों के नेता, विपक्ष के नेता सहित सभी पक्षकारों को शामिल किया जाए। इस समिति को तीन कृषि कानूनों सहित कृषि एवं किसानों से जुड़े सम्पूर्ण आयामों पर व्यापक विचार विमर्श करना चाहिए और इसकी रिपोर्ट पर संसद में विस्तृत चर्चा करने के बाद व्यापक कृषि सुधार की ओर बढ़ना चाहिए।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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