15 जुलाई विशेष: नेहरू का 67 साल पुराना सच, क्या खुद के लिए की थी भारत रत्न की सिफारिश, जानें पूरा मामला

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अभिनय आकाश । Jul 15 2022 12:59PM

यूरोप और सोवियत के दौरे से 13 जुलाई को वापस दिल्ली लौटे जवाहर लाल नेहरू। लेकिन जब वो एयरपोर्ट पर उतरे तो प्रोटोकॉल तोड़ते हुए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद खुद उनका स्वागत करने पहुंचे थे। राजेंद्र प्रसाद के अलावा काफी लोग नेहरू के स्वागत के लिए मौजूद थे।

आज 15 जुलाई है और इस तारीख का संबंध भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिलने के किस्से से है। 15 जुलाई देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 15 जुलाई को ही देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान करने का ऐलान किया गया था। उन्हें यह वर्ष 1955 में प्रदान किया गया। वर्ष 1954 में स्थापित यह सम्मान किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्ठ योगदान के लिए प्रदान किया जाता है। जवाहरलाल नेहरू के बाद इंदिरा गांधी दूसरी ऐसी शख्सियत रहीं, जिन्हें प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भारत रत्न से सम्मानित किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के  बाद दुनिया के समीकरण तेजी से बदल रहे थे। भारत नया-नया आजाद हुआ था। विश्व में अपनी जड़ें ढूंढ़ रहा था। अधिकतर क्षेत्र में भारत अभी भी दूसरे देशों पर निर्भर था। अमेरिका खाद्य पदार्थों से लेकर अन्य क्षेत्रों में भारत की मदद करता था। जवाहर लाल नेहरू चाहते थे कि इंडस्ट्रिलाइजेशन की शुरुआत हो। तब की जियोपॉलिटिक्स ऐसी थी कि अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की तरफ ज्यादा था। वो पाकिस्तान से अपने सैन्य रिश्ते मजबूत करता जा रहा था। पाकिस्तान के साथ रिश्ते अनबैलेंस न हो इसके लिए जरूरी था कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत अपनी मौजूदगी दर्ज कराए। 1954 में भारत ने चीन के साथ तिब्बत पर सिनो इंडियन एग्रीमेंट साइन किया। इसके बाद नेहरू ने यूएसएसआर और यूरोप का दौरा किया। 

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भारत ने अपनाई गुटनिरपेक्ष नीति  

जब वर्ल्ड वॉर टू के बाद कोल्ड व़ॉर का दौर चल रहा था और दुनिया के अधिकतर देश दो धरों में साम्यवादी सोवियत संघ और पूंजीवादी अमेरिका के नेतृत्व में बंट गया था। इसके साथ ही उस दौर में विश्व के अधिकाशं हिस्सों में औपनिवेशिक शासन का अंत होना शुरू हो गया और एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका व अन्य क्षेत्रों में कई नए देश दुनिया के नक्शे पर उभरने लगे। इसी दौर में गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने इन देशों के लिये दोनों गुटों से अलग रहकर एक स्वतंत्र विदेशी नीति रखते हुए आपसी सहयोग बढ़ाने का एक मज़बूत आधार प्रदान किया। जिसकी स्थापना में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी। 

नेहरू पर बरसाए गए गुलाब के फूल 

7 जून 1955 को नेहरू यूएसएसआर पहुंचे। याल्टा में जब वो सड़क से यात्रा कर रहे थे। लोगों ने उनके तरफ कुछ गुलाब के फूल फेंके। नेहरू ने एक गुलाब का फूल पकड़ लिया और उसका एक कांटा उनकी ऊंगली में चुभ गया। ऊंगली से खून निकलने लगा तो नेहरू बोले देखिए मैंने रशिया के लिए खून बहाया है। ये एक उन लोगों पर एक तरह का तंज था जो उन्हें कम्युनिस्ट देशों से हमदर्दी रखने वाला मानते थे। विदेश नीति के हिसाब से ये दौरा भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ। सोवियत संघ ने भारत में बड़े उद्योग स्थापित करने में मदद की। ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत को सहायता प्रदान की।  

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डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बताया सही मायने में भारत का रत्न

यूरोप और सोवियत के दौरे से 13 जुलाई को वापस दिल्ली लौटे जवाहर लाल नेहरू। लेकिन जब वो एयरपोर्ट पर उतरे तो प्रोटोकॉल तोड़ते हुए राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद खुद उनका स्वागत करने पहुंचे थे। राजेंद्र प्रसाद के अलावा काफी लोग नेहरू के स्वागत के लिए मौजूद थे। एयरपोर्ट पर नेहरू को एक छोटा सा भाषण देने के लिए भी कहा गया। बाद में राष्ट्रपति भवन में एक भोज का आयोजन किया गया। तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को लेकर कहा कि ये हमारे समय के शांति के सबसे बड़े वास्तुकार हैं। इसके साथ ही उन्होंने जवाहर लाल नेहरू को भारत रत्न पुरस्कार के लिए चुने जाने की जानकारी भी दी। डॉ. प्रसाद ने कहा कि जवाहर सचमुच एक भारत रत्न है। ऐसे में औपचारिक रूप से उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं दिया जाए?  

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