उच्चतम न्यायालय की पीठ ने निजता के अधिकार पर सुनवाई शुरू की

Nine bench judge to decide on Right to Privacy inclusion
[email protected] । Jul 19 2017 2:08PM

उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज दलीलें सुननी शुरू कीं जिनके आधार पर यह तय किया जाएगा कि निजता का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार है या नहीं।

उच्चतम न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आज दलीलें सुननी शुरू कीं जिनके आधार पर यह तय किया जाएगा कि निजता का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार है या नहीं। वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम ने प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष बहस शुरू की और कहा कि जीने का अधिकार और स्वतंत्रता का अधिकार पहले से मौजूद नैसर्गिक अधिकार हैं।

नौ न्यायाधीशों की पीठ में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल, न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं। यह पीठ निजता के अधिकार के सीमित मुद्दे पर विचार कर रही है, और आधार योजना को चुनौती देने वाले अन्य मुद्दों को लघु पीठ के पास ही भेजा जाएगा।

सुब्रमण्यम ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में कुछ मूल्य वर्णित हैं जिन्हें मूलभूत अधिकारों के साथ ही पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना में विविध अभिव्यक्तियां हैं जिनमें से कुछ अमेरिकी संविधान से ली गई हैं और कुछ अन्य महाद्वीपीय देशों से ली गई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘स्वतंत्रता हमारे संविधान का मूलभूत मूल्य है। जीवन और स्वतंत्रता प्राकृतिक रूप से मौजूद अधिकार हैं जो हमारे संविधान में शामिल हैं। क्या निजता के बगैर स्वतंत्रता हो सकती है। क्या संविधान के मूलभूत अधिकारों के संबंध में स्वतंत्रता को निजता के बगैर पाया जा सकता है।’’

सुनवाई अभी जारी है। पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस मामले को बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया था जिसके बाद शीर्ष अदालत ने मंगलवार को संविधान पीठ का गठन किया था। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आधार योजनाओं की वैधता और इससे संबंधित निजता के अधिकार को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार कर रही है। पीठ के समक्ष पिछले दो फैसलों की मिसालें हैं जो वृहद पीठों ने दिए थे। एक फैसला वर्ष 1950 में जबकि दूसरा वर्ष 1962 में दिया गया था और इनमें कहा गया था कि निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि नौ सदस्यीय पीठ केवल निजता के अधिकार के मुद्दे को देखेगी और यह तय करेगी कि पहले के फैसले सही थे या नहीं।

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