साथ रहने का आदेश यौन संबंधों के लिए नहीं: अदालत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि साथ रहने का निर्देश अलग रह रहे दंपति के बीच यौन संबंधों पर लागू नहीं होता और यह आदेश ‘‘ज्यादा से ज्यादा’’ उन्हें साथ रहने के लिए मजबूर कर सकता है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि साथ रहने का निर्देश अलग रह रहे दंपति के बीच यौन संबंधों पर लागू नहीं होता और यह आदेश ‘‘ज्यादा से ज्यादा’’ उन्हें साथ रहने के लिए मजबूर कर सकता है। न्यायमूर्ति प्रदीप नांद्राजोग और न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि अगर पति या पत्नी में से कोई एक साल तक साथ रहने के आदेश का उल्लंघन करता है तो यह आदेश तलाक मंजूर करने का आधार हो सकता है।

अदालत ने कहा कि दाम्पत्य अधिकार बहाल करने के आदेश का उद्देश्य पक्षों को साथ लाना है ताकि वे वैवाहिक घर में मिलजुलकर रहे सकें। अगर एक साल की अवधि में दाम्पत्य अधिकार के फैसले का पालन नहीं किया जाता है तो यह हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के तहत तलाक का आधार बन जाता है। अदालत ने कहा कि कानूनी स्थिति यह है कि दाम्पत्य अधिकार बहाल करने के आदेश से ज्यादा से ज्यादा यह किया जा सकता है कि कानून सहजीवन के लिए मजबूर कर सकता है, यौन संबंधों के लिए नहीं। अदालत ने यह टिप्पणी 58 साल की एक महिला की परिवार अदालत के उस आदेश के क्रियान्वयन के खिलाफ याचिका पर की जिसमें साथ रहने का निर्देश दिया गया था। दरअसल महिला अपने पति के साथ यौन संबंध बनाना नहीं चाहती।

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