संसदीय समिति ने मनरेगा में निधि जारी होने में विलंब सहित अन्य पहलुओं की निगरानी की सिफारिश की

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समिति ने बताया कि मनरेगा के पहलुओं की निगरानी करने की सिफारिश इसलिए भी की गई है कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार गारंटी से जुड़े इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के तहत पर योजनाएं अधूरी न रह जाए या उसमें विलंब न हो। लोकसभा में मंगलवार को पेश ‘‘महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का समालोचनात्मक मूल्यांकन’’

नयी दिल्ली| संसद की एक समिति ने ग्रामीण विकास विभाग को प्रत्येक स्तर पर मनरेगा के पहलुओं की निगरानी करने की सिफारिश की है ताकि समय पर निधि जारी करने के लिए सभी पूर्व आवश्यकताएं और औपचारिकताएं पूरी हो जाये।

समिति ने बताया कि मनरेगा के पहलुओं की निगरानी करने की सिफारिश इसलिए भी की गई है कि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार गारंटी से जुड़े इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के तहत पर योजनाएं अधूरी न रह जाए या उसमें विलंब न हो। लोकसभा में मंगलवार को पेश ‘‘महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का समालोचनात्मक मूल्यांकन’’

विषय पर ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना की वित्तपोषण पद्धति स्पष्ट रुप से रेखांकित करती है कि केंद्र सरकार कुशल और अकुशल श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान सहित योजना की सामग्री लागत की तीन चौथाई तक वहन करेगी जबकि राज्य सरकार कुशल और अर्धकुशल श्रमिकों को मजदूरी के भुगतान सहित योजना सामग्री लागत का एक चौथाई खर्च वहन करेगी। इसमें कहा गया है, ‘‘निधियों के स्रोत और उसके अनुमानित प्रवाह के स्पष्ट सीमांकन के बावजूद उक्त घटकों को जारी करने में विलंब होता रहा है।

यह विलंब अंततः मनरेगा के कार्यों को पूरा करने में देरी का कारण बनता है जिसके कारण मनरेगा के तहत शुरू की गई परियोजनाएं समय पर पूरी नहीं होती और अक्सर लंबे समय तक लटकी रह जाती है।’’ रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा के तहत टिकाऊ परिसंपत्ति के निर्माण की पूरी कवायद इन्हीं कारणों से विफल हो जाती है। विभाग से जब इस पहलू के बारे में पूछा गया तो निधि की अगली किस्तों को जारी करने के लिए दस्तावेजी प्रक्रियाओं का पुराना होना जैसे कारण बताए गए। इसके अनुसार समिति को लगभग अधिकांश अवसरों पर एक की तरह का बहाना सुनने को मिलता है जिससे दोषारोपण चलता रहता है लेकिन निवारण नहीं होता है। रिपोर्ट के अनुसार, समिति ग्रामीण विकास विभाग को प्रत्येक स्तर पर इन पहलुओं की निगरानी करने की सिफारिश करती है ताकि समय पर निधि जारी करने की सभी औपचारिकताएं पूरी हो जाए और निधि जारी नहीं होने के कारण योजना अधूरी न रह जाएं या उसमें विलंब न हो।

इसमें कहा गया है कि, ‘‘समिति यह देखकर चकित और स्तब्ध है कि मनरेगा 2005 की धारा 7 (1) के माध्यम से और निर्देशित बेरोजगारी भत्ते के प्रावधान का घोर उल्लंघन किया जा रहा है।’’ रिपोर्ट के अनुसार, इसमें परिकल्पना की गई है यदि योजना के तहत रोजगार के लिए आवेदन करने वाले किसी आवेदक को 15 दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता तो वह दैनिक बेरोजगारी भत्ते का हकदार होगा जो वित्तीय वर्ष के दौरान पहले 30 दिनों के लिए मजदूरी दर के एक चौथाई से कम नहीं होगा तथा वित्तीय वर्ष की अवधि के लिए मजदूरी दर के आधे से भी कम नहीं होगा।

इसके अनुसार, ‘‘ कानून में इस बारे में स्पष्ट उल्लेख किया गया है लेकिन इसके विपरीत मंत्रालय के आंकड़े निराशाजनक तस्वीर को दर्शाते है।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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