आरसीपी को कमान तो कुशवाहा को थमाया तीर, जानें लवकुश की जोड़ी के साथ चेक एंड बैलेंस की इनसाइड स्टोरी

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अभिनय आकाश । Mar 16 2021 1:01PM

साल 2021 आते-आते उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार एक-दूजे के हो गए। कहा गया कि अब कभी अलग नहीं होंगे। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर दिया।

लोकसभा चुनाव से ठीक एक वर्ष पूर्व 2013 की बात है। बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाया गया था और खुद को पीएम मैटेरियल मानने वाले नीतीश कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नाता तोड़ अलग ही रहकर चुनाव में उतरने का मन बना चुके थे। लेकिन तभी बिहार के दो नेताओं की नरेंद्र मोदी से मुलाकात होती है। जिसके परिणाम स्वरूप बिहार में एक नई पार्टी का उदय होता है और नाम रखा जाता है राष्ट्रीय लोक समता पार्टी। उस वक्त उपेंद्र कुशवाहा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं और उनके साथी अरुण कुमार बिहार प्रदेश के अध्यक्ष बनाए जाते हैं। इसके बाद ही बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा की तीन सीटों पर चुनाव लड़कर इस नयी नवेली पार्टी ने 100 प्रतिशत रिजल्ट के साथ क्लीन स्वीप किया। उपेंद्र कुशवाहा काराकाट लोकसभा सीट से जबकि अरुण कुमार जहानाबाद से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचते हैं और तीसरी सीट सीतामढ़ी से राजकुमार वर्मा के खाते में आती है। उपेंद्र कुशवाहा को राज्यमंत्री बनाया जाता है। लेकिन नीतीश की एनडीए में घर वापसी के बाद कुशवाहा का गठबंधन से मनमुटाव बढ़ता गया। 2019 के लोकसभा चुनाव में अलग राह पकड़ रालोसपा चुनावी समर में उतरती है तो पांच वर्ष पूर्व 100 प्रतिशत रिजल्ट लाने वाली पार्टी का खाता बी नहीं खुल पाता है और आलम ये रहा कि खुद पार्टी के मुखिया कुशवाहा दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं और दोनो हीं जगह उन्हें हार ही मिलती है। 2020 से पहले वो महागठबंधन छोड़ तीसरा मोर्चा बनाते हैं और पार्टी शून्य पर सिमटकर रह जाती है।

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लेकिन साल 2021 आते-आते उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार एक-दूजे के हो गए। कहा गया कि अब कभी अलग नहीं होंगे। उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जदयू में कर दिया। ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो गई कि आखिर उपेंद्र कुशवाहा की ऐसी क्या मजबूरी हो गई कि उन्होंने नीतीश से गठबंधन करने की बजाय अपनी पार्टी का ही विलय जदयू में कर दिया। नीतीश को बिना सांसद, विधायक और विधान परिषद वाली पार्टी का अपने में विलय कराने की क्या जरूरत आन पड़ी और वो भी पार्टी में एंट्री के साथ उन्हें पॉर्लियामेंट्री बोर्ड का अध्यक्ष भी बना दिया। उपेंद्र कुशवाहा को जदयू में शामिल कराते समय नीतीश ने कहा कि उपेंद्र जी ने तो कह दिया कि वे साथ आकर काम करेंगे। उनकी कोई ख्वाहिश नहीं है लेकिन हम तो सोचेंगे ना आपकी भी प्रतिष्ठा है, आपकी भी इज्जत है। नीतीश ने कहा कि भाई उपेंद्र जी तत्काल प्रभाव से जनता दल यूनाइटेड के संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। 

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पहले के दिनों में कुशवाहा उपेंद्र प्रसाद सिंह के नाम से जाने जाते थे। बिहार में जाति सूचक नाम होने से भाव बढ़ जाता है इसलिए बाद के वर्षों में उन्होंने अपने नाम के साथ कुशवाहा सरनेम जोर लिया और उपेंद्र कुशवाहा हो गए। 2003 में जब सुशील मोदी सांसद बने तो नीतीश कुमार ने कुशवाहा को नेता प्रतिपक्ष बनाया। उस वक्त जनता दल और समता पार्टी का विलय हुआ था। 2020 में जब बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ और नीतीश कुमार तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। उन्हें यह महसूस हुआ कि उनका आधार वोट घटा है। नीतीश की राजनीति का आधार वोट लव कुश समीकरण रहा है। लेकिन इसके आगे वे सुशासन बाबू के नाम से जाने जाने लगे। वहीं उपेंद्र कुशवाहा की पहचान पिछले कुछ वर्षों से शकुनी चौधरी और दूसरे कुशवाहा नेताओं की तुलना में अधिक बढ़ी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। लेकिन वे कुशवाहा जाति के नेता के रूप में बिहार में जरूर स्थापित हो गए। 

नीतीश राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं और 2020 के चुनावी नतीजों के बाद उन्होंने पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा की फिर पुराने साथियों को जोड़ने का प्लान बनाया। लेकिन एक बड़ा सवाल की नाीतीश कुमार ने कुछ महीने पूर्व ही आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय पद की जिम्मेदारी दी गई। लेकिन जब आरसीपी सिंह को जिम्मेदारी दी गई तो फिर कुशवाहा को क्यों बुलाया गया? 

चेक एंड बैलेंस के लिए लाए गए कुशवाहा

नीतीश कुमार गैर यादव पिछड़ी जातियों को जदयू के साथ लामबंद करना चाहते हैं। इसके लिए सबसे पहले अपने आधार वोट कोईरी-कुर्मी को सही करना था। ऐसे में कुशवाहा के सामने मजबूरी ये थी कि 2024 तक कोई चुनाव नहीं होना था। इसके साथ ही नीतीश कुमार को चेक एंड बैलेंस की राजनीति के लिए जाना जाता है। कुशवाहा की जदयू में एंट्री के वक्त आरसीपी सिंह दिल्ली में रहे और वो उपस्थित नहीं रहे। वहीं नीतीश ने कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया मतलब जिसके पास टिकट वितरण का निर्णय करने का अधिकार होता है। नीतीश ने अपने खासमखास आरसीपी सिंह को अध्यक्ष भले ही बना दिया लेकिन वो कहावत है न कि दूध का जला छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीता है। जीतन राम मांझी को सीएम बनाकर एक बार धोखा खाए नीतीश पावर गेम में बैलेंस बनाए रखने के लिए कुशवाहा को आरसीपी के मुकाबिल रखा। उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ मंत्रिमंडल में रखने के बजाए नीतीश ने उन्हें संगठन में रखा। कहा तो ये भी जा रहा है कि कुशवाहा आरसीपी के अंदर में काम करने को राजी नहीं हो रहे थे। लेकिन उन्हें बताया गया कि यहां वे आरसीपी सिंह के अंदर नहीं बल्कि उनके समकक्ष रहना होगा तो वे राजी हो गए। 

राज्यसभा जाएंगे कुशवाहा?

सूत्रों के अनुसार शरद यादव वाली राज्यसभा सीट जो मामला कोर्ट में चल रहा है। उससे उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा भेजा जा सकता है। इसके साथ ही उनकी पार्टी के किसी नेता को राज्यपाल के द्वारा चुने जाने वाले विधान परिषद सदस्य में से माधव आनंद, फजल इमाम अहमद और धीरज कुशवाहा किसी एक-दो को चुना जा सकता है। 

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