केंद्र ने SC से कहा- निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार नहीं

Right to privacy not fundamental right: Centre to SC
[email protected] । Jul 27 2017 4:12PM

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ के समक्ष दलीलें पेश करते हुए कहा कि निजता कोई मूलभूत अधिकार नहीं है।

केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि चूंकि निजता के कई आयाम हैं, इसलिए इसे मूलभूत अधिकार के तौर पर नहीं देखा जा सकता। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ के समक्ष दलीलें पेश करते हुए कहा कि निजता कोई मूलभूत अधिकार नहीं है। वेणुगोपाल ने पीठ से कहा, ‘‘निजता का कोई मूलभूत अधिकार नहीं है और यदि इसे मूलभूत अधिकार मान भी लिया जाए तो इसके कई आयाम हैं। हर आयाम को मूलभूत अधिकार नहीं माना जा सकता।’’

उन्होंने कहा कि ‘‘सूचना संबंधी निजता’’ को निजता का अधिकार नहीं माना जा सकता और इसे मूलभूत अधिकार भी नहीं माना जा सकता। अटॉर्नी जनरल ने बुधवार को पीठ से कहा था कि निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार हो सकता है लेकिन यह ‘‘असीमित’’ नहीं हो सकता। निजता का अधिकार मूलभूत अधिकार है या नहीं, यह मुद्दा वर्ष 2015 में एक वृहद पीठ के समक्ष भेजा गया था।

इससे पहले केंद्र ने उच्चतम न्यायालय के वर्ष 1950 और 1962 के दो फैसलों को रेखांकित किया था, जिनमें कहा गया था कि यह मूलभूत अधिकार नहीं है। शीर्ष न्यायालय ने पूर्व में कहा था कि सरकार किसी महिला के बच्चों की संख्या जैसी जानकारी मांग सकती है लेकिन वह उसे यह जवाब देने के लिए विवश नहीं कर सकती कि उसने कितने गर्भपात करवाए। न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल से निजता के अधिकार को आम कानूनी अधिकार और मूलभूत अधिकार माने जाने के बीच का अंतर पूछा था। उन्होंने जवाब में कहा कि आम कानूनी अधिकार दीवानी मुकदमा दायर करके लागू किया जा सकता है और यदि इसे मूलभूत अधिकार माना जाता है तो अदालत इसे किसी अन्य रिट की तरह लागू कर सकती है।

गैर-भाजपा शासित राज्यों- कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और पुडुचेरी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने बुधवार को कहा था कि ये राज्य इस दावे का समर्थन करते हैं कि प्रौद्योगिकी की प्रगति के इस दौर में निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए। जीपीएस का उदाहरण देते हुए सिब्बल ने कहा कि इससे किसी व्यक्ति के आने-जाने के बारे में पता लगाया जा सकता है और सरकारी या गैर सरकारी तत्व इसका पता लगाकर इसका दुरूपयोग कर सकते हैं। पांच सदस्यीय पीठ द्वारा यह मामला एक वृहद पीठ को स्थानांतरित किए जाने के बाद पीठ ने 18 जुलाई को संवैधानिक पीठ का गठन किया था। याचिकाओं में दावा किया गया था कि आधार योजना की अनिवार्यता के तहत बायोमीट्रिक जानकारी एकत्र एवं साझा किया जाना निजता के ‘‘मूलभूत’’ अधिकार का हनन है। केंद्र ने 19 जुलाई को शीर्ष न्यायालय में कहा था कि निजता का अधिकार इस श्रेणी में नहीं आ सकता क्योंकि वृहदतर पीठों के बाध्यकारी फैसले कहते हैं कि यह एक आम कानूनी अधिकार है।

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